नाटो (NATO) दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य गठबंधन है। इस बार शिखर सम्मेलन 11 से 12 जुलाई तक लिथुआनिया की राजधानी विनियस में आयोजित होगा। सन् 1949 से नाटो उत्तरी अमेरिका और यूरोपियन देशों का एक रक्षा गठबंधन है। कई लोग इसे शीत युद्ध में बना सैन्य गठबंधन भी कहते हैं। रूस और यूक्रेन की जंग के बीच ही इस गठबंधन का सम्मेलन आयोजित हो रहा है और इस पर दुनियाभर की नजरें हैं। वहीं इस शिखर सम्मेलन के बीच ही कई विशेषज्ञों को भारत और नाटो के बीच पूर्व में हुए कुछ सहयोगों और वार्ताओं की भी याद आ रही है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि पहले जिस तरह से दोनों के बीच आपसी सहयोग हुआ है, उसके बाद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के खिलाफ एक मजबूत घेराबंदी संभव हो सकती है।
नाटो में भारत का जिक्र
नाटो में भारत के शामिल होने को लेकर कई बार बातें हुई हैं। कुछ महीने पहले संगठन में अमेरिका का प्रतिनिधित्व करने वाली जूलियन स्मिथ ने भी कहा था कि नाटो के दरवाजे भारत के लिए खुले हैं। भारत नाटो का हिस्सा बनेगा या नहीं, यह फैसला आने वाले समय में होगा। लेकिन विदेश नीति के जानकार ध्रुव जयशंकर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखे एक आर्टिकल में कहा है कि नाटो में भले ही अर्मेनिया, कजाख्स्तान और सर्बिया जैसे रूस के साझीदार देश शामिल हैं लेकिन भारत 39 देशों वाले इस संगठन का हिस्सा फिलहाल नहीं है। मगर हाल के कुछ समय तक रूस और चीन, भारत की तुलना में नाटो से करीबी संपर्क में थे। साल 2019 में भारत और नाटो के बीच राजनीतिक वार्ता भी हुई थी। साल 2009 में भारत और नाटो के बीच लगातार सहयोग बना रहा। साल 2013 में दोनों देशों के बीच समुद्री डकैतों का खात्मा करने के लिए आपसी सहयोग हुआ। साल 2009 से 2011 के बीच भारत और नाटो के अधिकारी अदन की खाड़ी में समुद्री डैकेतों की घेराबंदी में लगे रहे। भारतीय नौसेना ने स्पेन के वालेंसिया में नाटो की रैपिड डेप्लॉयबल कोर के साथ संपर्क बढ़ाया।
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भारत-नाटो का दुश्मन है चीन
भारत-नाटो साझीदारी में अफगानिस्तान, साइबर सिक्योरिटी और कुछ और क्षेत्र भी शामिल हैं। साल 2007 में एस्टोनिया पर साइबर हमलों के बाद भारत के सीईआरटी ने फिनलैंड और नाटो के साथ सहयोग बढ़ाया। नाटो की साल 2022 की रणनीतिक अवधारणा चीन पर जोर देने वाली है। नाटो की तरफ से इस बात का ऐलान किया जा चुका है कि चीन की महत्वाकांक्षाएं और जबरन की नीतियां आपसी हितों, सुरक्षा और मूल्यों को चुनौती देने वाली हैं। साथ ही इसमें यूरो-अटलांटिक सुरक्षा के लिए चीन की तरफ से पैदा चुनौतियों का भी जिक्र किया गया है।
भारत को झिझक छोड़ने की सलाह
वहीं कुछ और विशेषज्ञों का मानना अब नाटो को भारत के सामने औपचारिक साझेदारी की पेशकश कर देनी चाहिए। भारत को भी अपनी झिझक छोड़कर इसका हिस्सा बनना चाहिए। दोनों के सामने भारत को साझेदारी का औपचारिक प्रस्ताव देना एक समान चुनौती है। मगर अब इस बाधा को दूर करने का समय आ गया है। चीन जिस तरह से आक्रामक हो रहा है उसके बाद समान विचारधारा वाले देशों के साथ मजबूत रिश्ते बहुत जरूरी है।
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