नेपाल में बड़ी गड़बड़ी करने वाला है चीन! सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले चीनी राजदूत 'हाइपर एक्टिव'

ऐसा लग रहा है कि चीन नेपाल में कुछ बड़ी गड़बड़  करने वाला है। कूटनीतिक मर्यादाओं को ताक पर रखते हुए चीन नेपाल के आंतरिक मामलों में सीधा हस्तक्षेप कर रहा है। नेपाल में चीनी गतिविधियां बहुत तेज हो चुकी हैं। दो दिन पहले पीएम केपी ओली और राष्ट्रपति बिद्या देवी भण्डारी से मुलाकात करने वाली चीनी राजदूत होऊ यांकी ने गुरुवार को प्रचण्ड से मुलाकात की है। विदेशी मीडिया में जैसे ही प्रचण्ड और यांकी की मुलाकात की खबरें आई तो वैसे ही प्रचण्ड का सचिवालय हरकत में आया और मीडिया को बताया कि यांकी और प्रचण्ड की मुलाकात हुई थी। यह एक सद्भावना मुलाकात थी। प्रचण्ड की यांकी से मुलाकात पर कोई और विवरण मीडिया को नहीं दिया गया।

गंभीर सियासी संकट के दौर से गुजर रहे नेपाल में चीन के इस तरह के हस्तक्षेप से नेपाली जनता में बेहद आक्रोश है। ऐसा भी बताया जाता है कि चीनी राजदूत यांकी ने नेपाल सरकार के कुछ अन्य मंत्रियों और अफसरों से भी मुलाकात की है। यांकी ने जिन नेताओं से मुलाकात की है उनमें केपी ओली के अलावा माधव नेपाल, जगन्नाथ खनाल और वामदेव गौतम भी शामिल हैं।

ध्यान रहे, इस इलाके में भारत पर दबाव बनाने के लिए चीन, नेपाल को एक टूल की तरह इस्तेमाल कर रहा है। ऐसा भी बताया जाता है कि तीन साल पहले चुनाव से पहले ही नेपाल में चीन सक्रिए हो गया था। चीन के दबाव के चलते ही प्रचण्ड और ओली एक साथ आए थे। दोनों की पार्टियों का विलय हुआ और साथ-साथ चुनाव लड़कर दो तिहाी बहुमत हासिल किया था।

इसके बाद बीजिंग से कम्युनिस्ट पार्टी के डेलिगेशन एक निश्चित समय पर काठमाण्डू आते और नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओँ को ट्रेनिंग भी देते थे। आखिरी बार सितंबर में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का डेलीगेशन काठमाण्डु आया था। चीन के प्रभाव को नेपाली सरकार से कम करने के लिए इंडियन आर्मी चीफ, रॉ चीफ और फिर विदेश सचिव ने काठमाण्डू दौरा किया था।

बहरहाल, स्थिति यह है कि एक बार फिर से ओली और प्रचण्ड दोनों ने अलग-अलग रहा पकड़ ली है। प्रचण्ड के सबसे भरोसेमंद माने जाने वाले राम बहादुर थापा ने पाला बदलकर ओली खेमा ज्वाइन कर लिया है। हालांकि राम बहादुर थापा के प्रेस सलाहकार ने कहा है कि उन्होंने किसी भी गुट को ज्वाइन नहीं किया है। वो अभी सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का इंतजार कर रहे हैं। उसके बाद वो दोनों गुटों को फिर से एक साथ लाने की कोशिश करेंगे।

रामबहादुर थापा का इतिहास जानने वाले बताते हैं कि उन्होंने 2012 में प्रचण्ड का साथ छोड़ दिया था। लेकिन चार साल 2016 में वो फिर से प्रचण्ड के साथ आ गए थे।.

सतीश के. सिंह

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