नेपाल में लौटेगी राजशाही! काठमाण्डू की सड़कों पर उतरे लाखों लोग

नेपाल (Nepal) की जनता में फिर एक बार तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है। नेपाल (Nepal) की जनता देश में लोकशाही की जगह राजशाही को लागू करने के लिए दबाव बनाने लगी है। पिछले 12 सालों में यह पहली बार है कि लाखों की संख्या में नेपाल (Nepal) सड़कों पर उतरे और लोकशाही को हटाकर <a href="https://en.wikipedia.org/wiki/Kingdom_of_Nepal"><strong><span style="color: #000080;">राजशाही</span></strong></a> की मांग करने लगे। लोगों को इतनी भारी संख्या में देखकर ओली सरकार  और नेपाल (Nepal) कम्युनिस्ट पार्टी की नींद उड़ गई है। कम्युनिस्ट पार्टी के नेता अब आपसी झगड़ों को खत्म करने की राय शुमारी करने लगे हैं।

दरअसल, नेपाल की सत्ताधारी <a href="https://hindi.indianarrative.com/world/china-fails-in-nepal-oli-government-set-to-fall-16581.html"><strong><span style="color: #000080;">नेपाल </span></strong></a>कम्युनिस्ट पार्टी में कलह लंबे वक्त से चलती आ रही है। अभी तक पार्टी के को-चेयर पुष्प कमल दहल प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे की मांग करते आ रहे थे, अब देश में अलग ही मांग जोर पकड़ने लगी है। नेपाल में इस हफ्ते पोखरा और बुटवाल जैसे बड़े शहरों में विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है जहां मांग की जा रही है प्रजातंत्र को खत्म करने की। इन लोगों की मांग है कि दुनिया की आखिरी हिंदू राजशाही को वापस लाया जाए। आखिर ऐसा क्या हुआ कि 12 साल में ही देश वापस सदियों पुरानी परंपरा अपनाना चाहता है

इन दिनों देश के कई शहरों में फेडरल डेमोक्रैटिक रिपब्लिकन सिस्टम के खिलाफ प्रदर्शन चल रहे हैं जिसे नेपाल में 2008 में लागू किया गया था। इसे 240 साल से चल रही राजशाही खत्म करने के बाद लागू किया गया था। राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व तभी से किया है। हालांकि, इस बार हालात अलग हैं। पहले जहां इस आंदोलन के कुछ ही समर्थक होते थे ,अब युवा इसमें बड़ी संख्या में कूद पड़े हैं। नेपाल के पूर्व राजा और हिंदू राजशाही के समर्थन में नारे लग रहे हैं जिनके आज राजनीतिक बयान देने पर नेता आलोचना करने उतर पड़ते हैं।

अब नेपाली कांग्रेस और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के नेता ऐसे प्रदर्शनों को खारिज करते आए हैं और इनके पीछे साजिश को जिम्मेदार बताते रहे हैं। माय रिपब्लिका की एक रिपोर्ट  के मुताबिक अराजशाही की मांग में प्रदर्शन बढ़ रहे हैं क्योंकि आम लोग प्रजातांत्रिक व्यवस्था से नाराज हो चुके हैं। लोगों में इस बात को लेकर आक्रोश है कि पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ लड़कर सत्ता हासिल करने और अंदरूनी कलह में उलझी रहती हैं।

नेपाल के लोग साल 2007 में राजशाही के खिलाफ खड़े हो गए और आखिरकार इसे इतिहास के नाम कर दिया। अब 13 साल बाद नेपाल के लोग उसे वापस लाने की मांग कर रहे हैं। इससे पता चलता है कि कि राजनीतिक दल किस हद तक सरकार चलाने में नाकाम रहे हैं। वह संविधान के मुताबिक केंद्रीय लोकतांत्रिक सरकार चलाने में नाकामयाब रहे हैं।

नेपाल के राजा ज्ञानेंद्र 1769 से चली आ रही राजशाही को संभाल रहे थे। वह 2001 में तब सत्ता में आए थे जब उनके बड़े भाई और राजपरिवार की हत्या कर दी गई थी। चार साल बाद ज्ञानेंद्र ने संसद को खत्म कर दिया और पूरी तरह से सत्ता पर काबिज हो गए। उन्होंने दावा किया कि वह देश के हालात सुधार देंगे लेकिन उनका ये कदम उल्टा पड़ गया और राजशाही के खिलाफ आंदोलन होने लगे।

28 मई 2008 को नेपाल में राजशाही पूर्ण रूप से खत्म हो गई थी। तब सभी पार्टियों को मिलाकर गठित संविधान सभा को देश का एक नया संविधान बनाने का काम सौंपा गया था। नेपाली राजनीतिक दलों को संविधान का मसौदा तैयार करने में सात साल लगे। 2017 के चुनावों ने तत्कालीन सीपीएन-यूएमएल और सीपीएन (माओवादी दलों) के कम्युनिस्ट गठबंधन को स्पष्ट जनादेश मिला। बाद में इन सभी दलों ने मिलकर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी या कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल नाम की एक नई पार्टी बनाई। अब इस पार्टी में झगड़े इतने बढ़ गए हैं कि लोक कल्याण के काम हो ही नहीं पा रहे हैं। ऊपर से नेपाल की संस्कृति को चीनी अतिक्रमण से खतरा होने लगा है।.

सतीश के. सिंह

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