नेपाली यूथ पॉवर ने नाकाम कर दी चीन का चालाकी, काठमाण्डू में घड़ियाली आंसू बहा रहा ड्रैगन

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घड़ियाली आंसू वाली कहावत तो आपको याद ही होगी। नेपाल में अपने विरोध से परेशान चीनी हुक्मरानों ने घड़ियाली आंसू बहाना शुरू कर दिया है। चीन नेपाल पर जबरन काबिज होना चाहता है। पिछली सरकारों ने स्कूलों में मंडारिन सीखना, पढ़ना और बोलना अनिवार्य कर दिया था। नेपाल की सांस्कृतिक विरासत को खत्म करना शुरू कर दिया था। नेपाली मार्केट में चीन ही चीन का सामान दिखाई दे रहा था।</p>
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नेपाल में अब धीरे-धीरे सारा सीन बदलना शुरू हो गया है। नेपालियों को पता चल चुका है कि सस्ते कर्ज का भ्रम जाल दिखा कर चीन नेपाल पर वैसे ही कब्जा करने जा रहा है जैसे लाओस के बाद अब श्रीलंका चीन की गुलामी से डर रहा है। इतिहास बताता है दुनिया का हर देश कभी न कभी गुलाम रहा लेकिन नेपाल एक अकेला देश है जो कभी किसी का गुलाम नही बना। चीन को यही बात अखर रही है और वो नेपाल को बीजिंग का गुलाम बनाना चाहता है। नेपाली जनता पहले से कहीं ज्यादा जागरूक हुई है। नेपाल में चीन की अनावश्यक मौजूदगी को लेकर नेपाली सड़कों पर उतर आए हैं।</p>
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नेपाल के बुद्धिजीवियों का मानना है कि चीन बीआरआई (बेल्ट एण्ड रोड इनिशिएटिव) प्रोजेक्ट के भ्रमजाल में दुनिया के डेढ़ दर्जन देशों को जकड़ चुका है। नेपाल सरकार को चीन की इन कुटिल नीतियों से बच कर रहना चाहिए। समय से पहले नेपालियों की आंखें खुल जाने से चीन के कर्ता-धर्ता भौंचक्क हैं। हालात ये हो गए हैं कि चीन को नेपाल में चल रहे विरोध पर बयान जारी करना पड़ा है। काठमांडू में चीनी दूतावास के प्रवक्ता वांग शियाओलिंग ने नेपाल में चीन की उपस्थिति के खिलाफ हालिया विरोध प्रदर्शनों पर एक बयान जारी किया है। उन्होंने कहा है कि चीन नेपाल को बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का एक महत्वपूर्ण भागीदार मानता है और नेपाल की सहायता के लिए कोई राजनीतिक शर्त नहीं रखता। हालांकि चीन की यह भी एक चाल है। क्यों कि चीनी सरकार कभी सीधे कोई कर्जा नहीं देती। चीनी सरकार के नियंत्रण वाले बैंक और वित्तीय संस्थान विदेशों में विकास के नाम पर छल-छद्म भरे एग्रीमेंट करवाते हैं और फिर धीरे-धीरे कर्जदार देशों की जमीन और संपत्तियों पर कब्जा करने लगते हैं।</p>
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घड़ियाली आंसू बहाते हुए चीनी प्रवक्ता ने कहा है कि चीन और नेपाल पारंपरिक पड़ोसी देश हैं। चीन शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों का दृढ़ता से पालन करता है। चीन नेपाल की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करता है और एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में गैर-हस्तक्षेप के आधार पर द्विपक्षीय मैत्रीपूर्ण संबंध विकसित करता है।हालांकि इन घड़ियाली आंसुओँ को दरकिनार करप्रदर्शनकारियों ने चीनी हस्तक्षेप बंद करो, सीमा अतिक्रमण बंद करो और चीन में पढ़ रहे नेपाली छात्रों के लिए सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित करो जैसे नारों के चीन का विरोध कर रहे हैं।</p>
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चीन ने कहा है कि दोनों देशों ने 1960 के दशक की शुरुआत में ही मैत्रीपूर्ण परामर्श के जरिए सीमा मुद्दे को सुलझा लिया है और अब कोई विवाद नहीं है। चीन का यह झूठ भी पिछले साल सामने आ चुका है। नेपाल की उत्तरी सीमा पर चीन लगातार अतिक्रमण कर रहा है। नेपाल के कई गांवों की जमीनों पर चीन ने कब्जा कर लिया है। विकास के नाम पर सीमा पर बहने वाली नदियों के रास्ते बदल कर भी चीन ने नेपाल की सैकड़ों किलोमीटर जमीन हड़प ली है। इसके बावजूद चीन का कहना है कि दोनों देशों के विदेशी अधिकारी बॉर्डर संबंधित मामलों पर संचार बनाए रखते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि नेपाली लोग व्यक्तिगत झूठी रिपोर्टों से गुमराह नहीं होंगे। नेपाल पर लगाए गए नाकेबंदी को लेकर जियाओलिंग ने कहा है कि चीनी पक्ष ने बड़ी मुश्किल से नेपाल के लिए एकतरफा माल परिवहन खोला और बंदरगाहों की कार्गो हैंडलिंग क्षमता को लगातार बढ़ाया है। सच्चाई यह है कि चीन नेपाल की कमजोरियों का नाजायज फायदा उठा रहा है। कोई भी सुविधा-सहायता देने से पहले एक-दो गुना नहीं आठ से 12 गुना दाम वसूल रहा है।</p>
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अब ये सारी सच्चाईयां नेपाल के लोगों के सामने आ चुकी हैं। नेपाली समझ चुके हैं कि चीन उनका भला नहीं लगातार शोषण कर रहा है। नेपाल को विकास की गाजर लटका कर कर्जे का भारी बोझ लादता जा रहा है। इसी लिए राजधानी काठमाण्डू से लेकर सुदूर ग्रामीण इलाकों में भी चीन का विरोध हो रहा है।</p>

Rajeev Sharma

Rajeev Sharma, writes on National-International issues, Radicalization, Pakistan-China & Indian Socio- Politics.

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