आज के समय में भारत की एक अलग अपनी पहचान है। भारत सुपरपावर के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर क़दम बढ़ा रहा है। पहले जो देश भारत के खिलाफ थे आज वही देश हर तरफ भारत की तारीफों के पुल बाँध रहे हैं। भारत, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और सऊदी अरब के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (NSA) की एक खास मीटिंग हुई है। रियाद में भारत के एनएसए अजित डोभाल ने अपने समकक्ष अमेरिका के जेक सुलिवन और यूएई के शेख तहनून बिन जायद अल नाहयान के साथ ही सऊदी प्रधानमंत्री और क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ मुलाकात की। इस मीटिंग का मकसद मजबूत सऊदी-भारत संबंधों के साथ ही साथ I2U2 के फॉर्मेट के तहत मध्य पूर्व क्षेत्र को भारत और दुनिया के साथ जोड़ना था। ऐसा माना जा रहा है कि चार देशों का यह गठबंधन भूमध्य सागर से लेकर भारत-प्रशांत तक यूरेशियाई किनारे के करीब आपसी रणनीतिक तालमेल तैयार करना है।
तालमेल हो सकेगा कायम
पिछले कुछ वर्षों में कई घटनाओं की वजह से और बदलते गठजोड़ ने मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया को बिल्कुल पश्चिम एशिया की तर्ज पर पुनर्परिभाषित करने के लिए एक मजबूत आधार तैयार कर दिया है। दोनों ही क्षेत्रों की अर्थव्यवस्थाएं बहुत हद तक उनके साझा समुद्री क्षेत्र के बीच तालमेल पर आधारित है। इसके अलावा अंतरिक्ष, यूरेशिया के साथ संपर्क और दोनों क्षेत्रों की सभ्यताओं के अलावा इनके साझा इतिहास भी काफी महत्वूपर्ण है। वर्तमान स्थितियों की अगर बात करें तो भारत, इजरायल, और सुन्नी अरब देशों जैसे यूएई, सऊदी अरब और मिस्र के बीच एक असाधारण गठजोड़ के लिए एक जरूरी ढांचा मौजूद है। अगर ह गठजोड़ सफल होता है तो फिर यूरेशियन शक्तियों के बीच एक तालमेल कायम हो सकेगा।
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अरब देशों और इजरायल के बीच जारी संघर्ष के अलावा भारत-पाकिस्तान (Pakistan) के बीच तनाव भी इसकी सबसे बड़ी बाधा मानी जा रही थी। मगर जैसे-जैसे दुनिया एक बहुध्रुवीय व्यवस्था की ओर बढ़ रही है, व्यावहारिकता भी अपना असर दिखाने लगी है। ऐसे रिश्ते जो किसी भी रणनीतिक मकसद पर कायम नहीं है, वो खत्म हो रहे हैं। इसके अलावा साल 2020 में हुए अब्राहम समझौते ने एक नया रास्ता खोल दिया है। अब इसी रास्ते पर भारत, सऊदी अरब, यूएई और मिस्र के बीच नई तरह से रिश्ते बन रहे हैं। कुछ समय पहले तक इन्हीं देशों खासकर तुर्की के आगे पाकिस्तान (Pakistan), कश्मीर का रोना रोता था।