पाकिस्तान सेना अफगानिस्तान (Afghanistan) में घुसकर तहरीक-ए-तालिबान (TTP) के आतंकियों पर कार्रवाई करने की तैयारी में जुटी हुई है। वहीं पिछले कुछ दिनों से देश पर आतंकी हमले ताबड़तोड़ बढ़ रहे हैं। इन हमलों में TTP का हाथ होने की बात कही जा रही है। वहीं अफगानिस्तान की इंटेलीजेंस एजेंसी के मुखिया और देश के पूर्व उप-राष्ट्रपति रहे अमरुल्ला सालेह की मानें तो पाकिस्तान सिर्फ टीटीपी (TTP) का प्रयोग कर रहा है, उसका मकसद अमेरिका (America) की मदद हासिल करना है और इस मदद को हासिल करने के लिए वह इतना बड़ा खेल खेल रहा है। कराची स्थित एक संगठन की मानें तो अब तक टीटीपी ने पाकिस्तान की एजेंसियों को निशाना बनाने के मकसद से 150 आतंकी हमलों को अंजाम दे डाला है।
कैसे बना टीटीपी
सालेह ने कई ट्वीट किये जिनमें उन्होंने पाकिस्तान की मंशा पर सवाल उठाए हैं। सालेह ने अपनी ट्वीट में लिखा है कि अमेरिका पर जब 9/11 हुआ तो कबायली मुखिया जिन्हें मालिक के तौर पर जाना जाता था, उन्होंने फाटा में अमेरिका के साथ हाथ मिलाया। था। उनके अमेरिका के साथ जाने के बाद एक खाली जगह बन गई और फिर पाकिस्तान की इंटेलीजेंस एजेंसी ने टीटीपी को तैयार किया। अमेरिका को यह नहीं बताया गया कि पाकिस्तान आर्मी अफगान तालिबान, हक्कानी और अल कायदा की मदद कर रही है। अमरुल्ला के मुताबिक टीटीपी, अफगानिस्तान तालिबान के कवर के तौर पर प्रयोग की गई।
पाकिस्तान ने बोला झूठ
सालेह की मानें तो टीटीपी के नाम पर पाकिस्तान ने एक जाल बिछाया है। सालेह ने कहा है कि टीटीपी और रावलपिंडी ने हाथ मिलाया हुआ है और खैबर पख्तूनख्वां में इनकी नीतियों को ही आगे बढ़ाया जा रहा है। उन्होंने इस क्षेत्र से गायब हुए उन नेताओं का भी जिक्र किया जो पाकिस्तानी मिलिट्री के अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठा रहे थे।
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पाकिस्तान आर्मी पर हमले
जनवरी से लेकर नवंबर 2022 तक संगठन ने 150 हमलों को अंजाम दे दिया था। इनमें 150 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। ये हमले पाकिस्तान की आर्मी को निशाना बनाकर किए गए थे। वहीं आंकड़ों से साफ है कि सेना और आतंकी संगठनों के बीच दुश्मनी बढ़ती जा रही है। इस स्थिति के बाद पाकिस्तान को सुरक्षा के लिए अमेरिका की तरफ से मिलने वाली रकम में भी इजाफा हुआ है।
पाकिस्तान का असली खेल
साल 2018 में पाकिस्तान को अमेरिका से 424 मिलियन डॉलर की मदद मिली थी। इसमें से 100 फीसदी रकम असैन्य प्रयोग के लिए थी। जबकि साल 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 685 मिलियन डॉलर पर पहुंच गया। इसमें से 54 फीसदी सैन्य प्रयोग के लिए था। जबकि साल 2020 में इसमें गिरावट दर्ज हुई और सिर्फ 197 मिलियन डॉलर ही पाकिस्तान को मिले। इसमें से 19 फीसदी रकम का प्रयोग मिलिट्री मकसद के लिए किया गया था।
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