Pakistan Economic Crisis: आर्थिक तौर पर पाकिस्तान चरमरा चुका है। आयात करने के लिए विदेशी मुद्रा की कमी है। पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ मदद की गुहार भी काम नहीं आई। आईएमएफ से वो मदद की आस में हैं लेकिन उसकी शर्तें माननी होंगी। आईएमएफ के सुझाव के मुताबिक शरीफ जो भी एक्शन लेंगे उसमें जनता को पीसना है। लेकिन कोई दूसरा विकल्प नहीं उस दिशा में पाकिस्तान सरकार ने अपनी जनता पर एक के बाद एक बम फोड़ रही है। ऐसे में पाकिस्तान में आर्थिक संकट और भी कई मुश्किलों को जन्म दे सकता है। देश में राजनीतिक अस्थिरता और गहरा सकती है, चरमपंथ और बढ़ सकता है, विद्रोही सुर उग्र हो सकते हैं। दरअसल, पाकिस्तान की सीमाएं भारत, अफगानिस्तान, ईरान और चीन से मिलती हैं। मुल्क चार प्रांतों में बंटा हुआ है- पंजाब, सिंध, खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान। इसके अलावा पाक अधिकृत कश्मीर (POK) और गिलगित-बाल्टिस्तान पर उसका अवैध कब्जा है।
एक समय था जब पाकिस्तान के इन सभी प्रांतों और क्षेत्रों में विविध संस्कृति, भाषाओं और मान्यताओं का पालन करने वाले लोग रहते थे। लेकिन कट्टरपंथ और आतंकवाद को पालने वाला देश इन्हें एकजुट रखने में विफल हो गया। गंभीर आर्थिक और राजनीतिक संकट ने पाकिस्तान में सांप्रदायिक और अलगाववादी हिंसा को बढ़ावा दिया है। पाकिस्तानियों का शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार पर से काफी हद तक भरोसा उठ गया है। महंगाई जैसे मुद्दों पर इमरान खान को घेर कर सत्ता में आए शहबाज खुद देश पाकिस्तान में ठोस आर्थिक सुधार लागू करने में विफल हो रहे हैं।
तेज हो गया है बलूच आंदोलन
अब इन सब पाकिस्तान के विशेषज्ञ नवीद बसीर कहते हैं, ‘पाकिस्तान में जो भी सरकार, सेना या अदालतें कर रही हैं, लोग उससे खुश नहीं हैं। वे ऐसे आंदोलनों की तलाश में हैं जो उनका नेतृत्व कर सकें।’ पाकिस्तान में बलूच अपनी ही जमीन पर अल्पसंख्यक के रूप में रह रहे हैं। पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई उनका उत्पीड़न कर रहे हैं। जैसे-जैसे पाकिस्तान पर कर्ज बढ़ रहा है और विदेशी मुद्रा भंडार घट रहा है, आर्थिक संकट से बलूचों की स्थिति और भी गंभीर होती जा रही है। बलूचिस्तान में लंबे समय से जारी अलगाववादी आंदोलन अब और तेज हो गया है।
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पाकिस्तान में हर किसी को चाहिए आजादी
पाकिस्तान में सिंधियों को अब महसूस हो रहा है कि पाकिस्तान के साथ जुड़कर रहने से, उनका भविष्य अनिश्चित और खतरनाक हो सकता है। इसलिए एक अलग मुल्क के लिए आवाजें तेज हो गई हैं। भेदभाव, गरीबी और अपनी सिंधी संस्कृति और भाषा का पतन झेल रहा पाकिस्तान का यह हिस्सा आजादी के लिए लड़ने की खातिर दृढ़ है।
मुल्क के हो जाएंगे टुकड़े-टुकड़े?
पाकिस्तान के बाकी नागरिकों की तरह पश्तून भी लगातार बिगड़ती आर्थिक स्थिति की वजह से सरकार में विश्वास खो चुके हैं। भेदभाव और उत्पीड़न की मार झेल रहे पीओके और गिलगित-बाल्टिस्तान के लोग तो पहले से ही पाकिस्तान सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते रहे हैं। आसमान छू रही महंगाई, खाने-पीने और दवा की कमी, बेरोजगारी और सरकार के प्रति बढ़ते अविश्वास ने पाकिस्तान विरोधी प्रदर्शनों को और तेज कर दिया है। इन सबके बीच अब सवाल यह है कि क्या आर्थिक संकट से जन्मा विद्रोह पाकिस्तान के कई टुकड़ों के साथ शांत होगा?
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