पाकिस्तान आतंकवाद का केन्द्र है, यह बात किसी से छिपी नहीं है। तमाम आंतकवादी संगठनों के ट्रेनिंग कैंप यहां चलते हैं, आंतकवादियों की पनाहगाह भी पाकिस्तान में ही है। पाकिस्तान लगातार ऐसे आतंकियों को पनाह देता रहा है, जिनके निशाने पर भारत और अफगानिस्तान हैं। लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों के आतंकवादी वहां खुलेआम घूमते हैं और उन्हें पाकिस्तानी सरकार और आर्मी का पूरा संरक्षण मिला हुआ है। यही वजह है कि पाकिस्तान 2018 से एफएटीएफ (Financial Action Task Force-FATF) की ग्रे लिस्ट से निकल नहीं पाया है, क्योंकि वो अपनी जमीन पर आतंकवाद की फैक्ट्री चला रहा है।
आतंकवाद की फैक्ट्री की शुरुआत होती है मदरसों से, जहां बचपन से ही बच्चों का ब्रेनवॉश किया जाता है। उसके बाद उनका दाखिला होता है-दारूल उलूम हक्कानिया जैसी यूनिवर्सिटी में, जहां से उन्हें जिहाद की डिग्री मिलती है। <strong>समाचार एजेंसी एएफपी (AFP) की एक रिपोर्ट (‘University Of Jihad’ proud of Taliban alumni)</strong> के मुताबिक, दारूल उलूम हक्कानिया की यह यूनिवर्सिटी पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा के पेशावर से सिर्फ 60 किमी. दूर अकोरा खटक में स्थित है। यहां पर चार हजार छात्र पढ़ते हैं। सभी यहीं रहते हैं, जहां उन्हें खाना, कपड़े और शिक्षा, सब कुछ मुफ्त मिलता है।
यहां पढ़ने वाले बच्चों में बहुत से पाकिस्तानी और अफगान शरणार्थी रहे हैं। मौलाना युसूफ शाह इस संस्थान के संचालक हैं। <strong>एएफपी को दिए एक इंटरव्यू में मौलाना ने बड़े फख्र से बताया कि किस तरह "दारूल उलूम हक्कानिया के जिहादी छात्रों ने रूस को टुकड़ों-टुकड़ों में बांट दिया और अफगानिस्तान से अमेरिका का बोरिया-बिस्तर बांध कर उसे भी दफा कर रहे हैं। हमें इस पर गर्व है।"</strong>
पिछले दिनों दारूल उलूम हक्कानिया ने बड़े गर्व के साथ अपने जिहादी छात्रों की लिस्ट जारी की है, जिसमें तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के कई बड़े आतंकवादियों के नाम शामिल हैं। इनमें कई ऐसे तालिबानी नेता भी हैं, जो कतर की राजधानी दोहा में अफगानिस्तान सरकार के साथ जारी शांति प्रक्रिया में तालिबान का नेतृत्व कर रहे हैं। पिछले दिनों इसी दारूल उलूम हक्कानिया ने एक वीडियो जारी किया था, जिसमें अफगानिस्तान में तालिबनी आतंकवादियों का समर्थन करते हुए उनके हमलों को जायज ठहराया गया है।
इन आतंकवादी हमलों में कई हजार बेकसूर अफगानी नागरिक मारे जा चुके हैं। इस यूनिवर्सिटी के आका मौलवी शाह का कहना है कि तालिबान की स्थापना में उनका काफी अहम रोल था और बाद में तालिबान के सुप्रीम लीडर मुल्ला उमर के सलाहकार भी रहे। मुल्ला उमर के बाद उसके बेटे मुल्ला याकूब को भी तालीम यहीं से मिली। याकूब इन दिनों अफगानिस्तान में तालिबान का सेनापति है।
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति के प्रवक्ता सादिक सिद्दीकी के मुताबिक "हक्कानिया जैसे मदरसे कट्टरपंथी जिहाद को जन्म देते हैं और फिर तालिबान और दूसरे आतंकवादी पैदा होते हैं। जिनसे हमारे देश को खतरा है। यह मदरसे पाकिस्तानी सपोर्ट पर चल रहे हैं।"
<img class="wp-image-18251" src="https://hindi.indianarrative.com/wp-content/uploads/2020/11/crowds-gathered-in-Darul-Uloom-Haqqania-1024×680.png" alt="crowds gathered in Darul Uloom Haqqania" width="452" height="300" /> दारूल उलूम हक्कानिया में जुटी भीड़तालिबान के साथ साथ खूंखार हक्कानी नेटवर्क के आतंकवादियों ने भी यहीं से तालीम पायी थी और अपने संगठन का नाम इस मदरसे के नाम से जोड़ कर रखा था। हालांकि यह संस्थान 1947 से चल रहा है। लेकिन 80 के दशक में यह सुर्खियों में आया, जब यहां के जिहादी छात्रों ने अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ लड़ाई छेड़ी थी। तब इसे पाकिस्तान के साथ-साथ अमेरिका, सऊदी अरब और दूसरे खाड़ी देशों से करोड़ों डॉलर मिले थे। जानकारों के मुताबिक हक्कानिया मदरसा सुन्नियों का सबसे अहम और प्रभावशाली सेंटर है।
आज यह माना जाता है कि यहां पढ़ने वाले लोग तालिबान और दूसरे कट्टरपंथी संगठनों में बड़ी जिम्मेदारियां संभालेंगे। यह एक तरह का "जिहादी कैरियर बनाने वाला इंस्टीट्यूट" बन गया है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के सुन्नी समुदाय में इसकी काफी पैठ है। पाकिस्तान की हर राजनीतिक पार्टी उसका फायदा उठाती रही है। 2018 में खैबर पख्तूनख्वा की प्रांतीय सरकार ने इस मदरसे को 2.5 मिलियन डॉलर की फंडिंग की थी। यही नहीं इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) ने भी 2017 में दारूल उलूम हक्कानिया को 2.7 मिलियन डॉलर दिए थे, ताकि वो अपने समर्थकों से इमरान खान को वोट दिलवाए।
पाकिस्तानी लेखक जाहिद हुसैन की किताब <strong>'Frontline Pakistan: The Path to Catastrophe and the Killing of Benazir Bhutto'</strong> के मुताबिक इस मदरसे का गहरा ताल्लुक अलकायदा और ओसामा बिन लादेन से था। 9/11 से कुछ हफ्ते पहले लादेन और तालिबानी नेताओं ने पाकिस्तान के कई मदरसों के मुल्लाओं के साथ इस दारूल उलूम में कई बैठकें की थीं। जहां सबने लादेन की अमेरिका के खिलाफ लड़ाई का खुलकर  समर्थन किया था।
2007 में पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या करने वाले इसी मदरसे के छात्र थे। जो पाकिस्तानी तालिबानी आतंकवादी संगठन तहरीक-ए-तालिबान (TTP) पाकिस्तान के आत्मघाती दस्ते थे। "दारूल उलूम हक्कानिया में कोई हथियारों की ट्रेनिंग नहीं होती, यहां सिर्फ जिहाद के बारे में पढ़ाया जाता है और कोई जिहाद के लिए किसी तंजीम में जाता है तो बेशक जा सकता है।" मौलाना शाह को इस बात पर गर्व है उनके मदरसे से कट्टरपंथी पैदा होकर निकल रहे हैं। इनमें से कइयों ने अपना आतंकवादी संगठन भी बनाया।
पहले तो पाकिस्तानी की फौजी हुकूमत से दारूल उलूम हक्कानिया को काफी सहायता मिली। मौलाना शाह कहते हैं कि उनका इरादा आतंकवादियों को भारत के कश्मीर में इस्तेमाल करना था। लेकिन बात बनी नहीं और खूंखार पाकिस्तानी तहरीक-ए-तालिबान ने पाकिस्तानी सरकार और आर्मी के खिलाफ जंग छेड़ दी। बेनजीर की हत्या के बाद 2014 में इस ग्रुप ने पेशावर के आर्मी स्कूल पर हमला कर 132 बच्चों को मार डाला था । पाकिस्तानी आर्मी ने आपरेशन चलाकर टीटीपी को खत्म करने की कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हुए।
तिलमिलाई सरकार ने मदरसों पर नकेल डालने की कोशिश की, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। 2017 के पाकिस्तानी आंकड़ों के मुताबिक 10 हजार से ज्यादा मदरसे हैं, जहां करीब 25 लाख छात्रों को साईंस या गणित नहीं बल्कि कट्टरपंथ का पाठ पढ़ाया जा रहा है। पाकिस्तानी आर्मी चीफ अब इस सोच में डूबे हैं कि "ये बच्चे मौलवी बनेंगे या आतंकवादी?" पाकिस्तानी लेखक-पत्रकार जाहिद हुसैन के मुताबिक, "पानी सिर के ऊपर से निकल चुका है। कभी भी इन मदरसों को रिफार्म करने की कोशिश नहीं की गई है। सोचिए क्या होगा इस पाकिस्तान का।"
उधर जानकारों की चिंता यह है कि जब अमेरिकी और नाटो सेनाएं अफगानिस्तान से हट जाएंगी, तब कट्टरपंथी इसे अपनी जीत समझेंगे। जिहाद की इस यूनिवर्सिटी ने अपने छात्रों का कैरियर तो तय कर दिया है।.
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