राणा बनर्जी
यह खुलासा करने के अलावा कि 09 मई, 2023 को देशव्यापी हिंसा के दौरान चूक या कर्तव्य में लापरवाही के लिए सेना की अपने ही अधिकारियों और अन्य रैंकों के ख़िलाफ़ जवाबदेही प्रक्रिया तेज़ी से आगे बढ़ रही थी, इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस महानिदेशक, मेजर जनरल अहमद शरीफ़ चौधरी ने कहा 26 जून (इस्लामाबाद) की प्रेस कॉन्फ़्रेंस ने पाकिस्तान की उच्च न्यायपालिका को एक कड़ा संदेश दिया कि सैन्य अदालतें वैसे ही काम करती रहेंगी और अतीत में भी नागरिकों के आरोप पर सज़ा देने से निपटती रही हैं।
इस “स्व-जवाबदेही प्रक्रिया” के एक भाग के रूप में एक लेफ्टिनेंट जनरल सहित तीन सैन्य अधिकारियों को उनकी नौकरियों से बर्ख़ास्त कर दिया गया था। इनमें लाहौर के तत्कालीन फोर्थ कोर कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल सलमान फ़ैयाज़ ग़नी, उनके चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ और कई अन्य वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं। तीन मेजर जनरलों और सात ब्रिगेडियरों के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्यवाही पूरी हो चुकी है। गिरफ़्तार किए गए लोगों में एक सेवानिवृत्त फ़ोर-स्टार जनरल की पोती(प्रख्यात फ़ैशन डिज़ाइनर,मिस खदीजा शाह), एक सेवानिवृत्त फ़ोर-स्टार जनरल की पत्नी का दामाद(जनरल यूसुफ़ के दामाद रिज़वान) शामिल थे। एक सेवानिवृत्त थ्री-स्टार जनरल (शबनम जहांगीर), एक सेवानिवृत्त टू-स्टार जनरल की पत्नी और दामाद(रुबीना जमील और मेहबूब), ये सभी “अकाट्य सबूतों के कारण जवाबदेही की इस प्रक्रिया का सामना कर रहे हैं।” इन दंडों से पता चला कि पाकिस्तानी सेना में जवाबदेही रैंक या सामाजिक स्थिति की परवाह किए बिना भेदभाव की जाती थी।
आईएसपीआर के डीजी ने इस बात पर बल दिया है कि अब तक हुई जांच से साबित हुआ है कि 9 मई की घटनाओं की योजना कई महीनों पहले बनायी गयी थी, पहले अनुकूल माहौल बनाया गया और लोगों को सेना के ख़िलाफ़ भड़काया गया। देश के अंदर और बाहर सोशल मीडिया पर झूठ और अतिशयोक्ति पर आधारित एक शैतानी कहानी फैलाई गयी। सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर द्वारा हाल ही में संपन्न 81वीं फॉर्मेशन कमांडर्स कॉन्फ्रेंस (रावलपिंडी, 07 जून) में ‘योजनाकारों और मास्टरमाइंडों पर शिकंजा कसने’ के बारे में पहले ही बतायी जा चुकी बात की पुष्टि करते हुए मेजर जनरल शरीफ़ ने कहा कि अधिकारियों ने इसमें शामिल लोगों के ख़िलाफ़ स्पष्ट सबूत प्राप्त कर लिया है।
<blockquote class=”twitter-tweet”><p lang=”en” dir=”ltr”>Director General of Inter-Services Public Relations (ISPR) Major General Ahmed Sharif is holding an important press conference to apprise the nation after the dark events that occurred on May 9. <a href=”https://twitter.com/hashtag/DGISPR?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw”>#DGISPR</a> <a href=”https://twitter.com/hashtag/PakistanArmy?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw”>#PakistanArmy</a> <a href=”https://t.co/u3Nd1KxShd”>pic.twitter.com/u3Nd1KxShd</a></p>— Pakistan Observer (@pakobserver) <a href=”https://twitter.com/pakobserver/status/1673304588211081216?ref_src=twsrc%5Etfw”>June 26, 2023</a></blockquote> <script async src=”https://platform.twitter.com/widgets.js” charset=”utf-8″></script>
दिलचस्प बात यह है कि अनुशासित सेना के कुछ अधिकारियों की पेशेवर प्रतिष्ठा और पाकिस्तान के मज़बूत नागरिक-सैन्य अभिजात वर्ग के बीच ऊंचे संबंध रहे हैं। जिन ब्रिगेडियरों को दंडित किया गया या संदिग्ध रूप से स्थानांतरित किया गया, उनमें ब्रिगेडियर मेहर उमर ख़ान, बलूच रेजिमेंट, पाकिस्तान के कुख्यात “तख्तापलट ब्रिगेड”, 111 ब्रिगेड, रावलपिंडी के कमांडिंग ऑफ़िसर शामिल हैं, जो सीधे सेना प्रमुख को रिपोर्ट करते थे। 111 ब्रिगेड की कमान संभालने वाले ब्रिगेडियरों को आमतौर पर थ्री स्टार की हैसियत तक आसानी से यात्रा करनी होती है। मेजर रहते हुए उन्होंने यूएस वेस्ट पॉइंट अकादमी में पाकिस्तानी अधिकारियों के लिए एक अत्यंत महत्वाकांक्षी प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग लिया था। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक हाई प्रोफ़ाइल ट्विटर अकाउंट चलाया, जिसमें अन्य लोगों के अलावा भारतीय प्रधानमंत्री भी शामिल थे।
अब बर्खास्त हो चुके लाहौर स्थित पूर्व चतुर्थ कोर कमांडर, लेफ़्टिनेंट जनरल सलमान फ़ैयाज़ ग़नी भी अत्यधिक संपर्क वाले थे। उनके पिता ब्रिगेडियर के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। विडंबना यह है कि उनके ससुर, कैप्टन (सेवानिवृत्त) नावेद रसूल मिर्ज़ा को मार्च, 1973 के अटॉक षड्यंत्र मामले (जहां सैन्य अदालत के मुकदमे में न्यायाधीश मेजर जनरल जिया उल हक़ थे) में शामिल होने के बाद बदनामी के कारण सेना छोड़नी पड़ी थी। अब लाहौर में रहते हुए वह मुख्य न्यायाधीश बंदियाल की पत्नी के अंकल (“मामू”) हैं।
सेना अधिनियम के तहत मुकदमों के बारे में बात करते हुए मेजर-जनरल शरीफ़ ने कहा कि स्थायी सैन्य अदालतें काम कर रही हैं, जिसमें “102 उपद्रवियों पर मुकदमा चल रहा है और यह प्रक्रिया जारी रहेगी”। एक सवाल के जवाब में डीजी आईएसपीआर ने कहा कि सैन्य अदालतों में जिन संदिग्धों पर मुकदमा चलाया जा रहा है, उनके पास पूर्ण कानूनी अधिकार हैं, जिसमें उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में अपील का अधिकार भी शामिल है। इन संदिग्धों को उनके अपराध के अनुसार दंडित किया जायेगा, उन्होंने कहा कि “पाकिस्तानी सेना ने बार-बार संकल्प लिया है कि संविधान हमारे लिए पवित्र है और राष्ट्र की इच्छाओं का प्रतिबिंब है”। विशेष रूप से ये कार्रवाइयां आवश्यक थीं, क्योंकि सेना के शहीदों के परिवारों का भारी दबाव था, जिन्होंने 09 मई को पाकिस्तान तहरीक़ ए इंसाफ़ (पीटीआई) की हिंसक भीड़ द्वारा ‘शुहादा’ के स्मारकों के अपमान को बर्दाश्त नहीं किया था।
डीजी (आईएसपीआर) की ओर से यह ‘चेतावनी’ पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट में सैन्य अदालतों में नागरिकों के मुकदमे को चुनौती देने वाली तीन वकीलों की याचिकाओं के मद्देनजर आयी है। वरिष्ठ वकील ऐतज़ाज़ अहसन, लतीफ़ खोसा (पंजाब के पूर्व राज्यपाल) और पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजे) ख़्वाज़ा का प्रतिनिधित्व करने वाले एक अन्य वकील द्वारा सीजे उमर अता बंदियाल से उनके चैंबर में मुलाक़ात के बाद इन याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट केस रोस्टर के माध्यम से तेज़ी से आगे बढ़ाया गया और सुनवाई के लिए रखा गया
सुप्रीम कोर्ट के भीतर किसी भी तरह से विभाजन को ख़त्म करने के उद्देश्य से एक स्पष्ट रूप से चतुर सामरिक क़दम के रूप में मुख्य न्यायाधीश बंदियाल ने सैन्य अदालतों में नागरिकों के मुकदमे पर याचिकाओं की सुनवाई के लिए नौ सदस्यीय पीठ का गठन किया, जिसमें इस बार लंबे समय से नज़रअंदाज़ किए गए वरिष्ठ न्यायाधीश क़ाज़ी फ़ैज़ ईसा और अगले वरिष्ठ न्यायाधीश, न्यायमूर्ति सरदार तारिक मसूद भी शामिल थे, जो अब सीजे नामित हैं।
हालांकि, यह क़दम इसलिए उलटा पड़ गया, क्योंकि काज़ी फ़ैज ईसा इस पीठ में शामिल नहीं हुए, जिससे पता चला कि वह इसे बिल्कुल भी पीठ नहीं मानते थे, क्योंकि सीजे ने सुप्रीम कोर्ट प्रैक्टिस एंड प्रोसीजर बिल, 2023 पर फैसला जारी करने से परहेज किया था । नई पीठों के गठन के लिए सीजे के एकतरफ़ा विवेक को हटा दिया गया। न्यायमूर्ति ईसा ने कहा, “अगर मैं अब मामलों की सुनवाई करता हूं, तो मैं अपनी संवैधानिक और क़ानूनी स्थिति का उल्लंघन करूंगा।” उन्होंने कहा कि मुख्य न्यायाधीश ने उन्हें अनिश्चितता की स्थिति में डाल दिया है, जिसे केवल तभी हल किया जा सकता है, जब इसके ख़िलाफ़ याचिकाओं के संबंध में कोई निर्णय लिया जाए या फिर यह क़ानून या स्थगन आदेश वापस लिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर डाले गए 30 पेज के नोट (जिसे तुरंत वहां से हटा दिया गया) में क़ाज़ी फ़ैज़ ईसा ने स्पष्ट किया कि वह सैन्य अदालतों में नागरिकों के मुकदमे के ख़िलाफ़ याचिकाओं की सुनवाई से ख़ुद को अलग नहीं कर रहे । उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की, “मुख्य न्यायाधीश ने बिना किसी कारण के अपने सहयोगियों को अनावश्यक संघर्ष में शामिल कर लिया है। बंदियाल को इस पीठ का दो बार पुनर्गठन करना पड़ा, क्योंकि न्यायमूर्ति सरदार तारिक़ मसूद और मंसूर अली शाह भी इसमें भाग लेने से बचते रहे। 27 जून को एक अन्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति याह्या अफ़रीदी ने पूर्ण अदालत की मांग करते हुए अपना नाम वापस ले लिया। इसने सीजे बैंडियाल को मामले में आगे की सुनवाई जुलाई, 23 के मध्य तक स्थगित करने के लिए मजबूर किया।
ये घटनाक्रम ईद उल अजहा की छुट्टियों के दौरान दुबई में होने वाले नागरिक राजनेताओं के एक दिलचस्प सम्मेलन की पृष्ठभूमि में घटित हुआ है। पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ अपनी बेटी मरियम नवाज़ के साथ लंदन से वहां आये हैं। पीपुल्स पार्टी के नेता आसिफ ज़रदारी और विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी उनसे मिलने वाले हैं। पेरिस क्लब के इस वित्तीय सम्मेलन में भाग लेने के बाद अब लंदन में प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ भी शामिल हो सकते हैं। वहां की बैठकें आगामी कार्यवाहक शासन की संरचना पर चर्चा कर सकती हैं, क्योंकि वर्तमान नेशनल असेंबली का कार्यकाल 13 अगस्त या उससे पहले समाप्त हो रहा है।
सुप्रीम कोर्ट के आसन्न ग्रीष्मकालीन अवकाश से पहले सैन्य अदालतों में नागरिकों के मुकदमे के ख़िलाफ़ त्वरित फ़ैसला जारी करने का सीजे बंदियाल का इरादा, जिससे कि संकटग्रस्त पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान को गिरफ्तारी या अयोग्यता से राहत मिल सके, फिलहाल विफल हो गया लगता है। उनकी ख़ुद की सेवानिवृत्ति 16 सितंबर को होने वाली है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान में न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच मौजूदा टकराव को तेज करने के लिए कोई नई रणनीति तैयार की गयी है, जिसका विस्तार वरिष्ठ सैन्य नेतृत्व तक भी हो सकता है, इसका जवाब मिलना अभी बाक़ी है।
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