गुलाम कश्मीर में औरतों की अस्मत लूट रही है बाजवा की बलात्कारी फौज

भारत के हमले का खौफ दिखाककर पाकिस्तानी फौज गुलाम कश्मीर (पीओके) की महिलाओं-बच्चियों को अपनी हवश का शिकार बना रहे हैं। पाकिस्तानी आर्मी के जुल्म की शिकायत लेकर जब ये महिलाएं स्थानीय पुलिस के पास जाती हैं या अदालत का दरवाजा खटखटाती हैं तो उन्हें संरक्षण देने के बजाए अपमानित किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र कमीशन ने गुलाम कश्मीर (पीओके) में पाकिस्तानी फौजों की मौजूदगी पर गंभीर चेतावनी भी जारी की है।

खास बात यह है कि गुलाम कश्मीर (पीओके) में संयुक्त राष्ट्र के कार्यालय से लीक हुई जानकारी के मुताबिक गुलाम कश्मीर (पीओके) के ही कथित प्रधानमंत्री के गृहनगर में पाक आर्मी महिलाओं से बलात्कार करते हैं और वहां का कानून उनको छूता भी नहीं है। सोफिया बानो के साथ सामूहिक बलात्कार इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। सोफिया बानो अपना केस पुलिस और फिर अदालत लेकर पहुंची लेकिन उन्हें इंसाफ के बदले धमकियां मिलने लगीं। हारकर उन्होंने अपने साथ हुए बलात्कार के केस की पैरवी करना ही छोड़ दिया। इतना ही नहीं पीओके में ही चेहला बंदी से सामूहिक बलात्कार तथा हुसैनकोट का सामूहिक बलात्कार जैसे तमाम मामले हैं जहां  पीड़ित परिवार सिर्फ चुप रहने के अलावा कुछ कर नहीं सकते। उनके सामने दो ही रास्ते बचते हैं पहला कि वो घुट-घुटकर मरते रहें या फिर शहर छोड़ कर कहीं चले जाएं। 1990 के दशक से चल रहा ये क्रम अभी तक जारी है।

गुलाम कश्मीर (पीओके) के क जर्नलिस्ट जलालुद्दीन मुगल ने कहा है कि भारत के हमले से बचने के नाम पर बनाए गये बंकर बलात्कार के ठिकाने हैं। पाकिस्तानी फौजी इन्ही बंकरों में भारतीय फौजों की बमबारी से बचाने का बहाना बनाकर महिलाओं और बच्चियों को ले जाते हैं और बलात्कार के बाद छोड़ देते हैं। एक अन्य पॉलिटिकल एक्टिविस्ट का राजा सईम मंजूर के मुताबिक रात में मोर्टार-फायरिंग के दौरान महिलाएं इन्हीं बंकरों में यहीं शरण लेती हैं। इन बंकरों में कश्मीरी महिलाओं और बच्चियों के शारीरिक शोषण की कहानी लाइलाज बीमारी बन गयी है।

जलाललुद्दीन और राजा सईम के मुताबिक बलात्कारी पाकिस्तानी फौजियों के खिलाफ गुलाम कश्मीर (पीओके) के पास सजा देने का अधिकार नहीं है। मतलब यह कि पाकिस्तानी फौजियों को जब अय्याशी का मन होता है वो यहां की बहन-बेटियों की इज्जत के साथ खिलबाड़ कर अपना मन भरते हैं और उन्हें ठोकर मार कर निकल जाते हैं। क्यों कि गुलाम कश्मीर (पीओके) तो गुलाम है,  ' बलात्कारी आकाओं' के खिलाफ कोई कार्रवाई का अधिकार उसे मिला ही नहीं है।

गुलाम कश्मीर में औरतों-बच्चियों की नरक भरी जिंदगी की कहानी एक बार पाकिस्तान के ही अखबार डॉन में भी छप चुकी हैं। डॉन के मुताबिक अनम जकारिया ने दो कश्मीरी महिलाएं मेहनाज और नसरीन का किस्सा छापा था। नसरीन ने गोलाबारी से जान बचाने के लिए उसने अपने बच्चों के साथ बंकर में जाने की गलती की थी। वहां एक उम्रदराज आदमी ने उसकी 13 साल की बेटी, आयशा, का बलात्कार उसकी आंखों के समाने किया गया। आयशा गर्भवती हो गई और काउंसिल ने इज्जत बचाने के नाम पर बलात्कारी से उसका निकाह कराने का फैसला सुना दिया। इतनी कम उम्र में प्रसव की पीड़ा को झेलने में असमर्थ आयशा ने दम तोड़ दिया। कुछ महीने बाद उसके बच्चे की भी मौत हो गई। कई परिवार बलात्कार संबंधित मामलों में घर पर ही गर्भपात का विकल्प चुन लेते हैं और सामाजिक कलंक से बचने के लिए इसमें डॉक्टरों को शामिल नहीं करते हैं। इससे उनकी जान खतरे में पड़ जाती है।

गुलाम कश्मीर के रहने वाले एक मानवाधिकार कार्यकर्ता अमजद अली अय्यूब के मुताबिक पाकिस्तानी फौज ही नहीं बल्कि गुलाम कश्मीर (पीओके) में आकर बसे दीगर शहरों के पाकिस्तानी भी कश्मीरी महिलाओं के साथ बलात्कार करते हैं और साफ बच जाते हैं। मारिया नाम की एक शादीसुदा महिला ने अपने बलात्कारियों को सजा दिलाने के लिए जिल्लत भी सही और वो अदालत के कटघरे तक बलात्कारियों को ले भी गयी लेकिन इंसाफ करने वाली कुर्सी पर बैठे लोगों ने उसकी अर्जी पढ़ने के बाद जो कहा उसको सुनकर रूह कांप जाएगी। उस न्यायधीश ने मारिया से कहा कि , ‘आप शादीशुदा हैं, आप कुंवारी नहीं हैं। आपको बलात्कार पर आपत्ति नहीं करनी चाहिए। कृपया इस केस को खत्म कर दीजिए।

ध्यान रहे यूएन कमीशन के पीओके ऑफिस ने भी इस बार में गंभीर चेतावनी जारी कि है। इस चेतावनी के मुताबिक पाकिस्तानी फौजियों और भाड़े के इस्लामी लड़ाकों की अवैध मौजूदगी ने गुलाम कश्मीर (पीओके) की औरतों-बच्चियों की इज्जत के लिए गंभीर खतरा पैदा कर दिया है। इसका समाधान तत्काल निकला जाना चाहिए। पाकिस्तानी फौजियों और भाड़े के इस्लामी जिहादियों को गुलाम कश्मीर (पीओके) से बाहर किया जाये और उन्हें उनके मुताबिक जीने का अधिकार मिले।

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सतीश के. सिंह

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