जिस तरह चीन ने दक्षिण चीन सागर में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए पश्चिमी जगत  की कोविड-19 से संबंधित आंतरिक उथल-पुथल का लाभ उठाया है, ठीक उसी तरह तुर्की भी पूर्वी भूमध्य सागर में ऊर्जा प्रतिस्पर्धा और लीबिया में बढ़ते एक बड़े संघर्ष के छद्म युद्ध में शामिल होने के लिए अपने कदम खतरनाक तरीके से बढ़ा रहा है।
अरब जगत में 2011 से शुरू होने वाली  उथल-पुथल के बाद से मिस्र और सीरिया में अंतर्राष्ट्रीय चरमपंथी रूढ़िवादी सुन्नी मुस्लिम ब्रदरहुड को तुर्की और कतर ने समर्थन दिया। इसके कारण सऊदी अरब, यूएई और मिस्र जैसे अमेरिकी साझेदारों के नेतृत्व वाले परंपरागत अरब जगत के नेतृत्व के साथ 2013 के बाद से तुर्की के तनावों के बढ़ने की शुरुआत हुई।
जब यह क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता कठोर हो रही थी, उसी समय एक नए जटिल कारक का उदय हुआ। इजरायल, साइप्रस और मिस्र द्वारा बड़े पैमाने पर भूमध्य सागर में अपतटीय प्राकृतिक गैस की खोजें की गईं। अपने इन समुद्री पड़ोसियों के विपरीत तुर्की ने कभी भी सी-कन्वेंशन के कानून को स्वीकार नहीं किया जो सभी देशों-जिसमें साइप्रस जैसे द्वीप शामिल हैं-को ऊर्जा अन्वेषण के लिए एक विशेष आर्थिक क्षेत्र का अधिकार देता है।
इसका सबसे बड़ा कारण है कि तुर्की की सत्ता साइप्रस की सरकार को मान्यता नहीं देती है। हाल के वर्षों में तुर्की ने भूमध्य सागर में उन इलाकों में प्राकृतिक गैस की खोज शुरू की, जिसके बारे में लगभग सभी का मानना है कि वह इलाका साइप्रस का है। इसके जवाब में ग्रीस, साइप्रस, इजरायल और मिस्र अपने स्वयं के अपतटीय गैस भंडार की खोज और निर्यात करने में सहयोग करने के लिए तेजी से आगे आए। 2019 में उन्होंने संयुक्त रूप से पूर्वी भूमध्यसागरीय गैस फोरम बनाया और तुर्की को विशेष तौर पर इससे बाहर रखा गया।
इसके तुरंत बाद तुर्की ने लीबिया में हस्तक्षेप किया। जिससे उसे ऊर्जा संसाधनों पर बढ़ती क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा में प्रभावी स्थिति हासिल हो सके और अरब जगत के साथ परंपरागत प्रतिद्वंद्विता के कारण लीबिया की अस्थिर सरकार उसके बहकावे में आ गई। त्रिपोली स्थित फ़ायज़ अल-सर्राज की इस्लामवादी-झुकाव वाली सरकार की बेंगाज़ी-आधारित लीबियाई राष्ट्रीय सेना द्वारा हार को रोकने में तुर्की और कतर के सैन्य समर्थन ने बड़ी मदद की। तुर्की के आगमन से पहले यूएई, मिस्र और फ्रांस ने उसे समर्थन दिया था।
अपनी अमूल्य सैन्य सहायता के बदले में तुर्की ने सर्राज सरकार को पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्रों को लीबिया और तुर्की के विशेष आर्थिक क्षेत्रों (ईईजेड) में विभाजित करने के लिए सहमत होने के लिए मजबूर किया। जो क्रीट और रोड्स जैसे आसपास के द्वीपों के पूर्वी भूमध्य सागर के इलाके पर वैध यूनानी दावों को अनदेखा कर रहा है। यह सौदा इजरायल और साइप्रस तट की गैस को ग्रीस के माध्यम से यूरोप तक पहुंचाने के लिए अमेरिका समर्थित एक प्रमुख पाइपलाइन के लिए प्रस्तावित मार्ग को जानबूझकर अवरुद्ध करता है।
अपने नए समुद्री दावों को मजबूत करने के लिए 2020 में तुर्की ने  पूर्वी भूमध्य सागर में अपनी आक्रामक ऊर्जा की खोज शुरू की, जिस इलाके को हर कोई साइप्रस से संबंधित मानता है। इस कार्य की मई 2020 में न केवल पूर्वी भूमध्यसागरीय ग्रीस, साइप्रस और मिस्र के बल्कि फ्रांस और यूएई जैसे देशों के विदेश मंत्रियों ने भी संयुक्त रूप से निंदा की।
विशेष रूप से साइप्रस के आसपास पूर्वी भूमध्यसागर में गैस के बड़े अप्रयुक्त भंडार में फ्रांस की बड़ी कंपनियों के हित के लिए फ्रांस की रूचि को समझा जा सकता है। लेकिन संयुक्त अरब अमीरात की रूचि मुख्य रूप से लीबिया में है। जबकि तुर्की की बढ़ती क्षेत्रीय मुखरता यह बताती है कि इस क्षेत्र में बढ़ते विवादों को राजनीतिक और ऊर्जा संबंधों से अलग नहीं किया जा सकता है। प्रभावी रूप से रूढ़िवादी अरब जगत के साथ अपनी प्रतिद्वंद्विता को शामिल करके तुर्की अब लीबिया की जमीन पर खेल रहा है। पूर्वी भूमध्यसागरीय अपतटीय गैस प्रतिद्वंद्विता के साथ तुर्की अब दोनों संघर्षों को हल करना कठिन बना रहा है।
यह अमेरिका के लिए एक नई चुनौती है। वाशिंगटन ने ग्रीस, साइप्रस और इजरायल के बीच सहयोग का समर्थन करके तुर्की की महत्वाकांक्षाओं को रोकने की कोशिश किया है। मिस्र में ट्रम्प प्रशासन ने संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब की तरह राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सीसी का समर्थन किया है। लेकिन अमेरिका की लीबिया नीति एक सीमा तक असंगत है। तकनीकी रूप से अमेरिका सर्राज सरकार का समर्थन करता है जबकि विदेश और रक्षा विभाग लीबिया में रूस की बढ़ती भूमिका से सबसे ज्यादा चिंतित हैं।
हालांकि पिछले साल वाशिंगटन ने त्रिपोली के खिलाफ खलीफा हफ़्तार के हमले का समर्थन किया। जब वह हमला विफल हो गया, तो व्हाइट हाउस का जोश ठंडा पड़ हो गया, और मामला वापस विदेश विभाग को वापस सौंप दिया गया, जो वहां और सीरिया में तुर्की समर्थक नीति का अनुसरण करता है।
इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में अमेरिका की नीति से रूस और तुर्की के लाभ हो सकता है और अमेरिका के सामने अप्रासंगिक होने का खतरा पैदा कर सकता है। सबसे अच्छा होगा कि तुर्की की आक्रामकता और मुस्लिम ब्रदरहुड के प्रसार को रोकने पर अमेरिका लगातार ध्यान केंद्रित करे। क्योंकि दोनों ही लीबिया से मिस्र और सीरिया से कतर तक पूर्वी भूमध्यसागर में स्थिरता और ऊर्जा सुरक्षा को खतरे में डालते हैं।.
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