यूक्रेन जंग के कारण रूस (Russia) और पश्चिमी देशों के बीच टकराव यदि बढ़ गया तो भारत के साथ रिश्ते नए मोड़ पर पहुंच गए। इस जंग के दौरान ही रूस ने भारत को तेल बेचना शुरू किया। भारत, रूसी तेल का टॉप खरीददार बन गया। यही नहीं रूस और भारत के रिश्ते काफी एतिहासिक हैं मगर अब इन रिश्तों पर रुपया भारी पड़ रहा है। रूस ने अमेरिकी डॉलर में होने वाले पेमेंट सिस्टम को हटा दिया था और अब उसके पास रुपए का ढेर लग गया है। फिलहाल रूस के पास इस समय करीब 147 अरब डॉलर की कीमत वाला रुपया पड़ा हुआ है। मगर उसे समझ नहीं आ रहा है कि इसका फायदा कैसे उठाया जाए।
हर महीने लग रहा ढेर
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में इस बात का दावा किया गया है कि मॉस्को के पास वर्तमान समय में हर महीने एक अरब डॉलर की कीमत वाली रुपए की संपत्ति इकट्ठा हो रही है। लेकिन यह एकतरफा व्यापार संबंधों के कारण देश के बाहर फंसे हुई है। हर तिमाही में, व्यापार असंतुलन के दो अरब डॉलर से तीन अरब डॉलर तक पहुंचने की आशंका है और रूस इनका उपयोग भी नहीं कर सकता है। वहीं साल 2022 के दौरान, विदेशों में निर्मित शुद्ध विदेशी संपत्ति में अनुमानित 147 बिलियन डॉलर की राशि जुड़ गई होगी। जो रकम रूस के पास अटकी है, वह काफी बड़ी है। इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि रूस ने साल 2022 में रक्षा पर 5.51 खरब रूबल या 68 अरब डॉलर खर्च किए यह जानकारी रॉयटर्स की तरफ से दी गई है।
भारत-रूस विकल्प तलाशने में असफल
इसका विकल्प तलाशने के लिए दोनों देश रूस और भारत असफल रहे हैं। एक तरीका यह है कि रूस की संस्थाओं की तरफ से भारत के पूंजी बाजार में निवेश सहित विभिन्न भुगतान तंत्र स्थापित किए जाएं। हालांकि इसका समाधान आसान नहीं है क्योंकि रूस पूरी किश्त का प्रयोग नहीं कर सकता है। भारत में अभी विदेशी निवेशकों की तरफ से पूंजी प्रवाह पर प्रतिबंध है। दूसरा विकल्प यह है कि किसी तीसरे देश की मुद्राओं जैसे चीन के युआन या यूएई के दिरहम का प्रयोग किया जाए।
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क्या बैंक स्वीकारेंगे रुपया
ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स में जुड़े रूस के अर्थशास्त्री अलेक्जेंडर इसाकोव ने कहा, ‘भारत के साथ रूस का व्यापार तेजी से असंतुलित हो रहा है। रूस की तरफ से भारत को निर्यात तो बढ़ा है लेकिन आयात में उतनी तेजी नहीं आई है। रूस में अपने चालू खाते के अधिशेष को रुपए में बचाने की सीमा है। अगर भारत अपने तेल आयात में इजाफा भी करना चाहता हो तो भी मास्को ने तेल की कीमतों पर छूट कम करके उस भावना को मजबूत करने का कोई काम नहीं किया है। एक रिपोर्ट में हाल ही में दावा किया गया है कि चीनी मांग और तेल उत्पादकों की तरफ से अंत में कटौती की वजह से नई दिल्ली को वित्तीय वर्ष 2023 के दौरान भारी छूट मिली है।
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