खत्म नहीं होने वाली जंग! यूक्रेन के बाद अब इन दो देशों से लड़ेगा रूस, NATO के चक्कर में होगा महायुद्ध

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यूक्रेन में रूस के सैन्य अभियान के शुरु करने के पीछे बहुत बड़ा कारण रहा है। वो यह कि डोनबास में यूक्रेन ने कत्लेआम मचा दिया था। यहां पर बच्चों तक को यूक्रेन जान से मार रहा था। पश्चिमी मीडिया या फिर बाकी के खबरिया चैनल यह नहीं दिखा रहे हैं कि, जो व्लोदोमीर जेलेंस्की आज गला फाड़-फाड़ कर चिल्ला रहे हैं उसी ने डोनबास में 15 हजार से ज्यादा लोगों की जान ले ली। रूस के लाख मना करने के बाद भी यूक्रेन जब नहीं माना तो पुतिन को मजबुरन सैन्य अभियान शुरू करना पड़ा। एक और बात यह कि साल 2015 में यूक्रेन ने यह बात मान ली थी कि वो कभी भी NATO में शामिल नहीं होगा लेकिन, 2017 के बाद से अचानक ही वो रट लगाने लगा कि, उसे नाटो में जाना है। ऐसे में रूस के राषट्रपति व्लादिमीर पुतिन एक बार फिर से मिंस्क समझौते की बात सामने लाए लेकिन, यूक्रेन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। यह हमला अगर हुआ है तो इसका कारण यूक्रेन ही रहा है। अब पश्चिमी देश एक बार फिर से यूक्रेन की तरह फिनलैंड और स्वीडन को भी NATO में शामिल करने की योजना बना रहे हैं। ऐसे में साफ है कि जंग इतनी जल्दी खत्म होने वाली नहीं है।</p>
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फिनलैंड और स्वीडन इस हफ्ते फैसला ले सकते हैं कि उन्हें पश्चिमी देशों के सैन्य संगठन नाटो में शामिल होना है या नहीं यदि फिनलैंड के राष्ट्रपति और दोनों देशों में सत्ताधारी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी अगले कुछ दिनों के अंदर शामिल होने का समर्थन करती है, तो उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में जल्द ही रूस की दहलीज पर स्थित दो देश शामिल हो सकते हैं। दोनों नार्डिक देशों के लिए यह एक ऐतिहासिक घटनाक्रम होगा। स्वीडन 200 से अधिक सालों से सैन्य गठजोड़ में शामिल होने से बचता रहा है, तो द्वितीय विश्व युद्ध में रूस के हाथों पराजय के बाद से फिनलैंड ने भी तटस्थ रुख अख्तियार कर रखा है।</p>
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बता दें कि, यूक्रेन पर 24 फरवरी को रूसी हमले के पहले स्टॉकहोम और हेलसिंकी में नाटो सदस्यता पर कभी गंभीरता से विचार तक नहीं किया गया था। लेकिन, रातों-रात दोनों देशों की राजधानियों में चर्चा इस बात पर होने लगी कि इसमें शामिल होने में कितना समय लगेगा। इससे पहले ये चर्चा होती थी हमें क्यों शामिल होना चाहिए। संभव है कि फिनलैंड के राष्ट्रपति सौली निनिस्टो बृहस्पतिवार को नाटो सदस्यता पर अपने रुख की घोषणा कर सकते हैं। दोनों देशों में सत्ताधारी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टियां इस सप्ताह के अंत में अपनी स्थिति स्पष्ट करने की तैयारी में जुटी हैं। सदस्यता को लेकर यदि पार्टी का उत्तर 'हां' रहता है, तो नाटो सदस्यता के लिए दोनों देशों की संसद में मजबूत बहुमत होगा। इससे औपचारिक आवेदन प्रक्रिया को तुरंत शुरू करने का मार्ग प्रशस्त होगा।</p>
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अगर ऐसा होता है तो यह हमला और भी तेज हो जाएगा। क्योंकि, ये दोनों ही देश रूस के पड़ोसी देश हैं और नाटो में शामिल होते ही रूस घिर जाएगा। एक तरह से यह अमेरिका और नाटो का उकसावे वाला भी कदम है। इनकी साजिश ही है कि किसी तरह रूस को तोड़ दें। इन दोनों देशों के शामिल होते ही हो सकता है कि दुनिया में विश्व युद्ध 3 का आसार बढ़ जाए।</p>
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आईएन ब्यूरो

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