चीन (China) उन देशों में से एक है जो अपनी हरकतों से कभी भी बाज नहीं आ सकता। आलम यह है चीन अक्सर किसी भी देश को नुक्सान पहुंचने के लिए कोई न कोई नया प्लान बनाने की फिराक में लगा रहता है। वहीं अब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग मंगलवार को अमेरिका के साथ तनाव के बीच सऊदी अरब (Saudi Arab) की यात्रा पर आ रहे हैं। सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को चीनी राष्ट्रपति की यात्रा का बेसब्री से इंतजार है। वैसे तो सऊदी अरब खाड़ी देशों में अमेरिका का सबसे करीबी सहयोगी रहा है लेकिन पिछले दिनों तेल को लेकर प्रिंस सलमान और बाइडन प्रशासन के बीच तनाव काफी बढ़ गया है।
यही एक बड़ी वजह भी है कि अमेरिका के नाराज होने की परवाह किए बिना सऊदी प्रिंस अब चीन के साथ अपनी नजदीकी बहुत तेजी से बढ़ा रहे हैं। यही नहीं विश्लेषकों का कहना है कि सऊदी प्रिंस खुद को खाड़ी देशों का खलीफा बनाना चाहते हैं और उन्हें चीन से इसमें मदद की उम्मीद है। वहीं चीनी राष्ट्रपति सऊदी अरब जैसे रणनीतिक रूप से अहम देश को शंघाई सहयोग संगठन का सदस्य बनाना चाहते हैं जिसे वह नाटो की टक्कर के लिए आगे बढ़ा रहे हैं।
इससे अमेरिका और सऊदी अरब के बीच संबंध रसातल चले गए। सऊदी अरब के प्रधानमंत्री बन चुके प्रिंस ने बाइडन की धमकी के बाद भी तेल के उत्पादन को घटा दिया, वहीं रूस को अलग थलग करने के अमेरिका दबाव के आगे नहीं झुके। सऊदी प्रिंस अब चीनी राष्ट्रपति की यात्रा को एक मौके के रूप में ले रहे हैं। खुद को खाड़ी देशों का खलीफा बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यही वजह है कि प्रिंस ने खाड़ी देशों और उत्तरी अफ्रीका के देशों के नेताओं को चीन-अरब शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित कर बड़ा दांव खेला है।
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सऊदी अरब के लिए खून की तरह से है तेल
यूरोसिया ग्रुप में मिडिल ईस्ट और उत्तरी अफ्रीका समूह के प्रमुख अयहम कामेल ने कहा, ‘सऊदी अरब रणनीतिक गुणा गणित पर काम कर रहा है जिसमें उसे चीन को निश्चित रूप से शामिल करना ही होगा और वह अब अभिन्न आर्थिक सहयोगी बन गया है।’ विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका अभी भी खाड़ी देशों के लिए सुरक्षा में सबसे बड़ा सहयोगी बना रहेगा। इसके बाद भी सऊदी अरब अब एक ऐसी विदेश नीति बना रहा है जिससे उसका राष्ट्रीय आर्थिक सुधार हो सके। वह भी तब जब दुनिया तेल जैसे हाइड्रोकार्बन से हट रही है जो सऊदी अरब के लिए खून की तरह से है।
वहीं कुछ अन्य विश्लेषकों का कहना है कि शी जिनपिंग यूं ही सऊदी अरब की यात्रा पर नहीं आ रहे हैं। उनका मकसद शंघाई सहयोग संगठन का विस्तार करना है। चीन एससीओ को नाटो के खिलाफ एक मजबूत गठबंधन के रूप में विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं। यही वजह है कि सऊदी अरब को भी चीन एससीओ में शामिल करा सकता है। चीन बड़े पैमाने पर सऊदी अरब के ऊर्जा बाजार में निवेश कर रहा है।
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