अफगानिस्तान शोक में डूबा है, लेकिन काबुल विश्वविद्यालय के गेट पर पोस्टर और बैनर लगे हैं जिन पर लिखा है, "रिपब्लिक जिंदा रहेगा, हम कल क्लास में आएंगे, हमारी पढ़ाई जारी रहेगी (Republic Will Prevail, We will return to classes Tomorrow, Education will Prevail), आतंकवादियों से बदला लेना है तो पढ़ाई जारी रखो, दोहा में शांति बातचीत बंद करो।" छात्रों का गुस्सा पोस्टरों और सोशल मीडिया पर जारी है।
एक दिन पहले सोमवार को अफगानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में एक आत्मघाती आतंकी हमले में 22 छात्रों और शिक्षकों की मौत हुई और करीब 100 घायल हो गए थे। कोविड-19 के चलते बंद यह विश्वविद्यालय कई महीनों बाद खुला था और वहां पुस्तक मेले का आयोजन भी किया गया था। कक्षाएं शुरू ही हुईं थीं कि तभी तीन फिदायिन गोलियां चलाते हुए कैंपस में घुस आए और 6 घंटे तक वहां गोलियां चलती रहीं।
हमले की जिम्मेदारी आतंकवादी संगठन दाएश यानि इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने ली है। पिछले दो दशकों से अफगानिस्तान का सबसे बड़ा काबुल विश्वविद्यालय हमेशा आतंकवादियों के निशाने पर रहा है। पिछले महीने काबुल के एक शिक्षण संस्थान पर हुए हमले में कम से कम 40 छात्र मारे गए थे। इस्लामिक स्टेट ने ही हमले की ज़िम्मेदारी ली थी। उनका कहना है कि लड़के और लड़कियां एक साथ पढ़ नहीं सकते।
एक घायल छात्र अली वजीर का कहना है,“टेरेरिस्ट, स्टूडेंस को टार्गेट कर रहे हैं क्योकि उन्हें यंगर पढ़ी-लिखी जेनेरेशन से खतरा है। लेकिन हम डरते नहीं।"
एक दूसरे छात्र के मुताबिक,“अफ़ग़ानिस्तान में रोज़ाना होने वाली हिंसा से कोई भी जगह और कोई भी आदमी सुरक्षित नहीं है। किताबें, क़लम और छात्र भी सुरक्षित नहीं हैं। क्या अमेरिका, क्या यूएन किसी को हमारी परवाह नहीं।"
<img class="wp-image-16715" src="https://hindi.indianarrative.com/wp-content/uploads/2020/11/अफगानिस्तान-में-शोक.jpg" alt="National mourning day declared for terrorist attack in Kabul University" width="525" height="296" /> काबुल विवि में आंतकी हमले को लेकर राष्ट्रीय शोक दिवस घोषितगौरतलब है कि ये हमले उस समय हो रहे हैं, जब 12 सितंबर से कतर की राजधानी दोहा में अफगान सरकार और तालिबान के बीच शांति प्रक्रिया को लेकर बातचीत की कोशिशें की जा रहीं हैं। बातचीत तो आगे नहीं बढ़ रही लेकिन अफगानिस्तान नें हिंसा जरूर बढ़ रही है। हालांकि तालिबान ने आनन-फानन में इस घटना में अपना हाथ होने से इंकार किया। उसके प्रवक्ता के मुताबिक,“इस घटना में दूसरे संगठन का हाथ है, तालिबान का नहीं।"
लेकिन अफगानिस्तान के वाईस प्रेसिडेंट अमरुल्लाह सालेह के मुताबिक अफगानिस्तान में मुख्य रुप से चार बड़े संगठन तालिबान, हक्कानी नेटवर्क, अल-कायदा और इस्लामिक स्टेट सक्रिय हैं। भले ही अल-कायदा और तालिबान दावा करें कि वो इस्लामिक स्टेट के खिलाफ हैं, लेकिन पहले तो यह सारे मिल कर हिंसा फैला रहे थे। इस्लामिक स्टेट के आंतकवादी तो तालिबान और अल-कायदा से पहले जुड़े थे। वाईस प्रेसिडेंट सालेह पर सिंतबर में हमला हुआ था, जिसमें वह बाल-बाल बचे थे। सालेह के मुताबिक, भले ही आईएस ही जिम्मेदारी ले लेकिन बिना तालिबान की मदद के वो इस तरह के बड़े हमले नहीं कर सकता।
जानकारों के मुताबिक अमेरिका से हुए समझौते की शर्त के मुताबिक तालिबान किसी भी विदेशी आतंकवादी संगठन जैसे-अलकायदा, इस्लामिक स्टेट को कोई सहयोग नहीं देगा। जबकि संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान और अलकायदा कभी अलग ही नहीं हुए। हां, तालिबान और इस्लामिक स्टेट के बीच वर्चस्व के मुद्दे पर मतभेद जरूर सामने आ गए हैं। आईएस (इस्लामिक स्टेट) पिछले दो सालों से तालिबान के गढ़ नांगरहार और कुनार में सेंध लगाने में सफल रहा है। लेकिन इसके बावजूद दोनों एक-दूसरे के खिलाफ कोई सीधी कार्रवाई करने से बचते रहे हैं।
तालिबान को करीब से जानने वाले पाकिस्तानी पत्रकार रहीमुल्लाह युसुफजई के मुताबिक, कुछ महीने पहले इस्लामिक स्टेट ने अपने चीफ मौलवी अब्दुल्लाह ओरकजई की गिरफ्तारी के बाद उसके नए नेता शबाब अल मुहाजिर ने खुद को स्थापित करने के लिए हमले तेज कर दिए हैं। युसुफजई के अनुसार,“इन संगठनों को लगता है कि अमेरिकी फौज के अफगानिस्तान से हटने के बाद तो उनकी ही चलेगी। लेकिन तालिबान का मानना है कि अल कायदा और इस्लामिक स्टेट विदेशी ऑर्गनाइजेशन हैं और पहले भी अफगानिस्तान पर तालिबान की हुकूमत थी। तो उसमें वो किसी दूसरे को बर्दाश्त नहीं करेगा।".
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