अमेरिका के साथ फरवरी में हुए शांति समझौते के टूटने के बाद तालिबान के वरिष्ठ नेता पहली बार पाकिस्तान के विदेश मंत्री और सेना के आला अधिकारियों के साथ बातचीत कर रहे हैं। पिछले सप्ताह चीन से लौटने के बाद पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने आनन-फानन में यह बैठक बुलाई थी। पाकिस्तान का एक विशेष विमान तालिबान के प्रतिनिधिमंडल को कतर के राजधानी दोहा से लेकर सोमवार को इस्लामाबाद पहुंचा था।
तालिबान के प्रवक्ता सुहेल शाहिन के मुताबिक, " तालिबान के पॉलिटिकल डेलीगेशन की पाकिस्तान की सरकार और पाकिस्तानी आर्मी के साथ अफगानिस्तान में शांति बहाली की कोशिशों पर बातचीत होगी। साथ ही अफगानिस्तान के अंदरुनी हालात पर भी चर्चा होगी।"
इस साल फरवरी में अमेरिका और तालिबान के बीच दोहा में शर्तों के साथ शांति समझौता हुआ था। जिसमें अमेरिका की तरफ से कहा गया था कि तालिबान अब अफगानिस्तान में कोई हमला नहीं करेगा और अमेरिकी फौज अगले 14 महीनों में अफगानिस्तान छोड़ देगी। तालिबान की शर्त थी कि अफगानिस्तान की सरकार जेल में बंद उसके 4000 लड़ाकों को रिहा करेगी और उसके एवज में तालिबान 1500 अफगान सैनिकों को छोड़ देगा।
अफगानिस्तान में लोया जिरगा की बौठक में भी तालिबान कैदियों को रिहा करने का फैसला किया गया। लेकिन अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने इन कैदियों को नहीं छोड़ा। तालिबान ने समझौते को तोड़ते हुए अमरिकी फौज और दूसरे ठिकानों पर हमला करना शुरु कर दिया।
पाकिस्तान का कहना है कि तालिबान से इस मीटिंग का मकसद उनकी बातों को सुनना है कि आखिर उनकी शिकायतें क्या हैं? विदेश मंत्री कुरैशी के मुताबिक,"तालिबान से हमारे करीबी रिश्ते रहे हैं। हम तो उनकी बात सुनना चाहते हैं, उनकी मदद करना चाहते हैं । पाकिस्तान तो अफगानिस्तान में शांति के लिए हर पक्ष की सहायता कर रहा है।अंतिम फैसला तो वहां की जनता को करना है।"
पिछले दिनों पाकिस्तान के विदेश मंत्री कुरैशी चीन गए थे और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ उनकी लंबी बातचीत हुई थी। समझा जाता है चीन ने ही कुरैशी को तालिबान के साथ मुलाकात करने सलाह दी थी।
इस बीच पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के आदेश का पालन करते हुए तालिबान, हक्कानी नेटवर्क, जैश-ए-मोहमम्द सहित कई संगठनों और उनके कई आतंकियों के खिलाफ पांबदी लगा दी। इसमें उनकी संपत्ति सीज करना, बैंक एकाउंट फ्रीज करना, आने-जाने पर रोक लगाना शामिल हैं। इनमें तालिबान डेलिगेशन के नेता मुल्लाह अब्दुल गनी बरादर का नाम भी शामिल है। तालिबान के प्रवक्ता के मुताबिक मुल्लाह बरादर, शांति समझौते के लिए पाकिस्तान गए हैं, यूएन के तहत इन नियमों से उन्हें छूट मिली हुई हुई है।
लेकिन जानकारों का मानना है शांति समझौता तो बहाना है, दरअसल पाकिस्तान की पांबदियों से नाराज इन तालिबानियों को समझाना है, शांत करना है। मुल्लाह बरादर को लेकर पाकिस्तान हमेशा शंकित रहा है। अमेरिका के कहने पर पाकिस्तान ने बरादर को 2010 में गिरफ्तार किया था और अमेरिका के कहने पर ही, अमेरिका और तालिबान के बीच शांति के लिए 2018 में बरादर को रिहा किया गया था। बरादर का कहना है कि पाकिस्तान की जेल में उनको काफी यातना दी गई थी।
गौरतलब है कि इस बातचीत के लिए पाकिस्तान ने अफगानिस्तान की चुनी हुई सरकार को नहीं बुलाया है, न ही अमरिका का कोई नामुइंदा इसमें शामिल है। लेकिन जानकारों की मानें तो बिना अमेरिका की हामी के पाकिस्तान यह कदम नहीं उठा सकता।
बहरहाल बार-बार पूछे जाने पर भी पाकिस्तान के विदेश मंत्री कुरैशी ने इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि क्यों इस मीटिंग में न तो अमेरिका है और न ही अफगानी सरकार ? जल्दीबाजी में मिटिंग बुलाने की वजह क्या है ? कुरैशी के मुताबिक पाकिस्तान सरकार के निमंत्रण पर अफगानस्तान में शाति की संभावनाओं के लिए तालिबान के इन नेताओं को बुलाया गया है और यूएन के नियमों के तहत यह गैरकानूनी नहीं है। कुरैशी ने यह भी कहा कि तालिबान के नेताओं के साथ बातचीत के बाद चीन के अफगानिस्तान मामलों के विशेष राजदूत लिउ जियान इस्लमाबाद आ रहे हैँ।
कुरैशी के इस बयान से साफ जाहिर है कहीं न कहीं, चीन के कहने पर ही तालिबान से यह मीटिंग बुलाई गई है। जो बात साफ नहीं है वो ये कि चीनी राजदूत कब आ रहे हैं, क्या वो इन तालिबानी नेताओं से मुलाकात करेंगे।
इस साल दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच हुए शांति समझौते के दौरान अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी नजर नहीं आए थे। वहीं, इस समझौते से पाकिस्तान बेहद खुश दिख रहा था। इसकी वजह थी कि पाकिस्तान इस समझौते में अपना फायदा देख रहा था। पाकिस्तान और अफगान तालिबान के बीच करीबी रिश्ते रहे हैं, जबकि अफगानिस्तान की अशरफ गनी सरकार से पाकिस्तान की तनातनी हमेशा से रही है।
हाल के दिनों में चीन की दिलचस्पी अफगानिस्तान में काफी बढ़ी है। चीन को लगता है कि अमेरिका के अफगानिस्तान से हटने के बाद, चीन के लिए वहां पैर जमाना आसान हो जाएगा। मौजूदा गनी सरकार ने चीन के वन वेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। चीन का मानना है किअशरफ गनी पर भारत का काफी प्रभाव है। पिछले साल चीन के नेताओं ने दोहा में तालिबानी नेताओं से मुलाकात की थी। बाद में तालिबानी नेता, चीन के बुलावे पर चीन भी गए थे।
पाकिस्तान और चीन को लगता है कि आने वाले समय में तालिबान ही अफगानिस्तान पर शासन करेगा क्योंकि अमेरिका के हटते ही कमजोर और लड़खड़ाती गनी की सरकार भी टिक नहीं पाएगी। पाकिस्तान इस बात को भली-भांति जानता है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी फौज के मौजूद रहने तक तालिबान की मनमानी चलने वाली नहीं हैं। साथ ही पाकिस्तान के नापाक मंसूबे भी अफगानिस्तान में ज्यादा सफल नहीं हो पाएंगे।अफगानिस्तान की सत्ता से तालिबान को बाहर करने वाला अमेरिका ही है। चीन के विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता के मुताबिक , हमारा मकसद शांति को बढ़ावा देना है। हम चाहते हैं अपगानिस्तान में राजनैतिक स्थिरता बने और इसके लिए अगर किसी को हमारी जरुरत है, तो हम सहायता करेंगे।
पाकिस्तानी आर्मी की तरफ से तालिबान के साथ कई बैठकें करने वाले पाकिस्तान के पूर्व एयर मार्शल शाहिद लतीफ के मुताबिक पाकिस्तान तालिबान को समर्थन दे रहा है, उन्हें सहयोग भी दे रहा है। तालिबान की सरकार अफगानिस्तान में रही है, उन्हें तो मौजूदा सरकार में होना चाहिए था। और रही बात पाकिस्तान की भूमिका के बारे में, यह तो पाकिस्तान और तालिबान के बीच तय होना है।तालिबान ही तय करे कि पाकिस्तान का क्या रोल वो चाहते हैं। तालिबान का भी यही कहना है मौजूदा अफगानिस्तान की सरकार तो अमेरिका ने बनवाई है और यह समझौता तो अमेरिका ही करवा रहा है। तो ऐसे में अफगानिस्तान के ऱाष्ट्रपति का समझौते में होना जरूरी नहीं है।
दोहा में दिए गए एक इंटरव्यू में तालिबान के नेता और नेगोशियटिंग टीम के सदस्य मुल्लाह अब्दुल सलाम जईफ का कहना है कि अमेरिका समझौता, तालिबान अमीरात के साथ करना चाहता है..यानि वो मानता है कि सरकार तो तालिबान है.., समझौते के बाद, हम अफगानिस्तान में हर पार्टी से बातचीत कर अंदरुनी मसले को सुलझाने की कोशिश करेंगे। यह एक बहुत बड़ा चैलेंज है।
पाकिस्तान के एक पूर्व आर्मी जनरल के मुताबिक पहले पाकिस्तान की सरकार और आर्मी को तालिबान से बात कर क आम राय बनानी चाहिए और उसके बाद जो भी फैसला हो, अमेरिका को बताना चाहिए।
अफगानिस्तान की मौजूदा सरकार शुरू से ही तालिबान के साथ हुई बैठकों में शामिल नहीं रही है। अमेरिका और तालिबान के बीच बातचीत को लेकर राष्ट्रपति अशरफ गनी, अफगान सरकार और दूसरे अफगान नेता समय-समय पर नाराजगी और चिंताएं प्रकट करते रहे हैं। राष्ट्रपति अशरफ गनी आतंकवाद के लिए हमेशा पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं। अफगानिस्तान में होने वाले हमलों के लिए अशरफ गनी पाकिस्तान को ही जिम्मेदार बताते आ रहे हैं।
अमेरिका और तालिबान का समझौता टूटने से एक बार फिर अफगानिस्तान में सरगर्मियां बढ़ गई हैं। पाकिस्तान, रूस, चीन सभी सक्रिय हो गए हैं। सबकी निगाहें अमेरिका पर हैं। रही बात पाकिस्तान और तालिबान के बीच बातचीत की, तो पाकिस्तान की पूरी कोशिश उन्हें समझा कर शांत रखने की होगी। पाकिस्तानी सरकार और तालिबान के करीबी रहीमुल्लाह यूसुफ़ज़ई कहते हैं, " ऐसा नहीं होगा कि तालिबान पाकिस्तान के फ़ायदे के लिए काम करेंगे। वो अपने फ़ायदे के लिए काम करेंगे। वो अफगान हैं, वो अफगानिस्तान की बात करेंगे, पाकिस्तान की नहीं।".
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