China को काबू में करने के लिए PM Modi के पास पहुंचा Taiwan, कहा- यहां सिर्फ आप ही मदद कर सकते हैं

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चीन इस वक्त ताइवान पर कब्जा करने के लिए पूरी तरह से तैयार बैठा हुआ है। ये जंग अगर हुई तो ताइवान के बीच नहीं बल्कि चीन और अमेरिका बीच होगी। क्योंकि, अमेरिका का साफ कहना है कि अह ड्रैगन ने ताइवान पर हमला किया तो वो उसकी रक्षा करेगा। चीन पहले से कहते आ रहा है कि अमेरिका, ताइवान के मामलों पर बोलना बंद करे क्योंकि, वो उसका हिस्सा है और वो जब चाहेगा तब ताइवान को अपने में मिला लेगा। इधर ताइवान का कहना है कि उसकी अपनी आजादी है वो इसके लिए अंत तक लड़ेगा। इस बीच दुनिया के बड़े से बड़े देश ताइवान के साथ है। ताइवान के लिए भारत भी काफी अहम रखता है। क्योंकि, इन दिनों विश्व में भारत की जो छवी उभर कर आई है उसे विश्व गुरु के रूप में देखा जा रहा है। अमेरिका हो या फिर जर्मनी, जापान हर कोई भारत संग रिश्ते मजबूत करने पर लगा हुआ है। जिसे साफ देखा जा सकता है कि दुनिया के बड़े नेताओं की जब भी मीटिंग होती है तो उसमें पीएम मोदी को खास तवज्जो दी जाती है। अब ताइवान ने भी बड़ी आस के साथ भारत को लेकर बयान दिया है कि वो इंटरपोल में एंट्री के लिए उसे इंडिया की जरूरत है।</p>
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ताइवान ने भारत से मदद की गुहार लगाई है। ताइवान इंटरनेशनल क्रिमिनल पुलिस ऑर्गेनाइजेशन यानी इंटरपोल में शामिल होना चाहता है। जिसके लिए वह भारत से मदद मांग रहा है। एक न्यूज चैनल से बात करते हुए क्रिमिन इन्वेस्टिगेशन ब्यूरो के आयुक्त ने कहा है कि, ताइवान इंटरपोल का सदस्य नहीं है। हम आम सभा में हमारा प्रतिनिधिमंडल नहीं भेज सकते। भारत मेजबान देश है, जिसके पास हमे आमंत्रित करने की शक्ति है। हम पर्यवेक्षक के तौर पर ताइवान को बुलाने की भारत और अन्य देशों से उम्मीद करते हैं।</p>
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बता दें कि, 90वीं इंटरपोल आमसभा अक्टूबर में भारत में आयोजित होगी। ऐसे में ताइवान का यह बयान काफी खास मायने रखता है। मीडिया रिपोर्टों की माने तो,बढ़ते दबदबे के साथ चीन पर अपने फायदे के लिए इंटरपोल के गलत इस्तेमाल के आरोप लगते रहे हैं। खबर है कि वह आर्थिक ताकत का इस्तेमाल कर साल 2016 से इंटरपोल पर अपना प्रभाव दिखा रहा है। उधर अमेरिकी सरकार ने ताइवान के साथ व्यापार वार्ता शुरू करने की भी घोषणा की जिसे द्वीपीय देश के लिए समर्थन के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है।</p>
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चीन ताइवान पर अपना दावा करता है और उसने चेतावनी दी है कि यदि आवश्यक हुआ तो वह ''अपनी संप्रुभता की रक्षा'' के लिए कार्रवाई करेगा। ताइवान को डराने के लिए बीजिंग द्वारा समुद्र में मिसाइल दागे जाने के बाद यह घोषणा की गई है। वहीं, यूरोप के एक छोटे से देश लिथुआनिया ने एक चीन नीति को चुनौती देते हुए गुरुवार को ताइवान के लिए अपना पहला प्रतिनिधि नियुक्त किया है। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि, ताइवान ने कहा है कि वह ताइपे में नवनियुक्त लिथुआनियाई दूत के साथ मिलकर काम करेगा।</p>
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आईएन ब्यूरो

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