अफगानिस्तान पर कब्जा के बाद से तालिबान अब अपने अलग रंग में है, यहां तक कि अब तो वह अमेरिका तक की नहीं सुन रहा। जब अमेरिकी सैनिक अपने नागरिकों को अफगानिस्तान से निकाल रहे थे तभी तालिबान ने 31 अगस्त की डेडलाइन दे दी जिसे अमेरिका एक दिन पहले ही पूरा करते हुए चलता बना और अब भी कई नागरिकों को अफगान में छोड़ गया। अब एक के बाद एक कदम उठा कर तालिबान ने अमेरिका के जख्मों पर नमक के साथ-साथ मिर्च भी रगड़ रहा है क्योंकि, तालिबान की अंतरिम सरकार का शपथ ग्रहण 9/11 की 20वीं बरसी के दिन हो सकता है।
अककायदा के आतंकवादियों ने अमेरिका पर 20 साल पहले 2001 में अब तक का सबसे भयानक हमला किया था। विमानों को हाईजैक करके आतंकवादियों ने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टावर और पेंटागन मुख्यालय से टकरा दिया था। इन हमलों में 3 हजार से अधिक लोग मारे गए थे। इसका बदला लेने के लिए ही अमेरिका ने अफगानिस्तान में सैनिक अभियान की शुरुआत की थी। इस दौरान तालिबान को सत्ता से हटाया गया तो अलकायदा सहित कई आतंकी ठिकानों पर बमबारी की गई। अफगानिस्तान में अरबों डॉलर खर्च करने के बाद और 20 सालों तक अपने सैनिकों को रखने के बाद भी अमेरिका तालिबानियों की जड़े नहीं काट सका।
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी से पहले ही तालिबान ने काबुल सहित पूरे देश पर कब्जा जमा लिया। अलकायदा और हक्कानी नेटवर्क सहित कई आतंकवादी संगठनों को अफगानिस्तान में एक बार फिर खुला मैदान मिल गया है, जहां से वह अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने की कोशिश कर सकते हैं। अपने शपथ ग्राहण समारोह में शामिल होने के लिए तालिबान ने पहले चीन, तुर्की, पाकिस्तान, ईरान, कतर और भारत जैसे पड़ोसी देशों को न्योता दिया है।
तालिबान के सुप्रीम लीडर हिबातुल्लाह अखुंदजादा को सर्वोच्च पद दिया गया है तो मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद को पीएम बनाया जाएगा। सरकार में हक्कानी नेताओं को भी अहम पद दिया गया है, जिससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता बढ़ गई है। तालिबानियों ने जिन्हें अपना मंत्री का दर्जा दिया है इनमें से कई अमेरिका के ब्लैकलिस्ट में शामिल हैं। यहां तक की हक्कानी नेटवर्क पर ते अमेरिका ने 10 मिलियन डॉलर का इनाम भी रखा है। इसपर भी तालिबान अमेरिका को धमकी दे दिया कि वो इन लोगों को सूची से बाहर करे।