पाकिस्तानी आर्मी का 'बेबी' है आतंकवाद, दुनिया की आंखों में धूल झोंक रही इमरान सरकार!

देश हो या विदेश पाकिस्तानियों की जुबान पर आजकल दो-तीन जुमले चढ़े हुए हैं। पहला भारत कोई फॉल्स फ्लैग ऑपरेशन कर सकता है, दूसरा भारत पाकिस्तान में दहशतगर्दी करवा रहा है और पाकिस्तान ने भारत की दहशतगर्दी के खिलाफ डोजियर तैयार किया है और सभी मुमालिकों (देशों) को डोजियर दिया गया है। आखिर ये सब क्या है? कहने के लिए तो पाकिस्तान में एक एंटी टेररिज्म डिपार्टमेंट भी चलता है। लेकिन एंटी टेरर डिपार्टमेंट के पास अपनी उपलब्धियां दिखाने के लिए शायद कुछ खास नहीं। डिपार्टमेंट की विफलता के पीछे राज है पाकिस्तानी सरकार के मंसूबे । जिस सरकार के मंत्री फवाद चौधरी पुलवामा हमले को अपनी सरकार की सफलता मानते हो, उस सरकार में एंटी टेरर डिपार्टमेंट भले कैसे कोई उपलब्धि ले सकता है।  अभी हाल में पाकिस्तान के पेशावर में 16 दिसंबर को आज से 6 साल पहले  तहरीक-ए-तालिबान (Tehrik-i-Taliban) आतंकी हमले की बरसी मनाई गई । पेशावर के आर्मी स्कूल में हुए इस हमले में 132 बच्चों की हत्या की गई थी । पाकिस्तानी प्रधानमंत्री समेत सभी विपक्षी पार्टियों ने इस हमले की निंदा करते हुए अफसोस जताया । इस हमले में 3 अरब दो अफगानी और एक आतंकवादी चेचन्या के थे ।
<h4>जर्ब-ए-अज्ब का बदला था पेशावर स्कूल पर हमला</h4>
इस हमले की जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (Tehrik-i-Taliban)  नाम के आतंकी संगठन ने ली थी। तहरीक-ए-तालिबान ने इस हमले को पाकिस्तानी आर्मी द्वारा चलाए जा रहे ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब का बदला बताया था। हालांकि इस हमले में मारे गए बच्चों को श्रद्धांजलि देते हुए भारत की संसद ने एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें इस हमले की निंदा की गई । लेकिन फिर भी पाकिस्तान इस हमले पर राजनीति करने से बाज नहीं आया। प्रधानमंत्री इमरान खान के स्पेशल असिस्टेंट मोईद यूसुफ ने इस हमले के लिए भारत को जिम्मेदार ठहरा ही दिया। उसके बाद हद तो तब हुई जब पाकिस्तानी सरकार ने अपनी एक डोजियर में भारत पर तहरीक-ए-तालिबान को हथियार और पैसे से समर्थन देने का आरोप लगाया।
<h4> क्या है पाकिस्तानी आर्मी  और सरकार का आतंकवाद से निपटने का रवैया</h4>
इस हमले का मास्टरमाइंड और तहरीक-ए-तालिबान (Tehrik-i-Taliban) का प्रवक्ता एहसानुल्लाह एहसान । 2014 में हुए आर्मी स्कूल नरसंहार के बाद आखिरकार पाकिस्तानी सिक्योरिटी फोर्स स्कोर कामयाबी मिल ही गई। एहसानुल्लाह एहसान को हमले के 3 साल बाद गिरफ्तार कर लिया गया। केस चल रहा था लेकिन इसी साल जनवरी में वह पाकिस्तानी आर्मी के चंगुल से भाग निकला। कैसे भाग निकला इतने बड़े नरसंहार का मास्टरमाइंड कौन-कौन इस में मिले थे। क्या पाकिस्तानी आर्मी की हाई सिक्योरिटी के बीच से भाग जाना इतना आसान है किसी भी आतंकवादी के लिए या उसे जानबूझकर भगाया गया। भारत के दो कैदी कुलभूषण जाधव और सरबजीत इन दोनों पर भी कुछ ऐसे ही आरोप थे लेकिन इनको हाई सिक्योरिटी में रखा गया और यह कभी भी भागने में कामयाब नहीं हो पाए तो फिर एहसानुल्लाह कैसे भाग गया। जानकारों का मानना है कि एहसानुल्लाह से पाकिस्तानी आर्मी के कुछ लोग डर गए थे उन्हें डर था कहीं यह अदालत में उन लोगों का नाम ना ले ले जो तहरीक-ए-तालिबान (Tehrik-i-Taliban) को हथियार और पैसा देते रहे हैं। गौरतलब है कि एहसानुल्लाह एहसान पर नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई पर भी गोली चलाने का आरोप है। ऐसे में पूरी दुनिया की नजर इस एहसानुल्लाह पर होती और उससे कुछ और देश भी पूछताछ की मांग रख सकते थे।
<h4>जेल से कैसे भागा मुशर्रफ पर हमले का आरोपी आतंकवादी</h4>
यह पहला किस्सा नहीं था जबकि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान का कोई आतंकवादी हाई सिक्योरिटी से भागा हो इससे पहले एक आतंकवादी अदनान राशिद जिस पर परवेज मुशर्रफ पर हमले का आरोप था वह भी बन्नू जेल से भागा था। अदनान रशीद को उस समय मुक्त किया गया जब लगभग 200 तालिबान आतंकवादियों ने बंदूक, ग्रेनेड और रॉकेटों से लैस होकर उच्च सुरक्षा वाले बन्नू सेंट्रल जेल पर हमला किया और 384 कैदियों को रिहा कर दिया था । इतना बड़ा हमला हुआ 200 आतंकवादी इकट्ठे किए गए, असला जमा किया गया और पाकिस्तानी इंटेलिजेंस को खबर तक नहीं लगी। ऐसा मानना बहुत मुश्किल लगता है। लेकिन एक सच यह भी है कि अदनान पाकिस्तानी एयर फोर्स का पूर्व अधिकारी था और उसकी जान पहचान आर्मी में अंदर तक थी शायद यही कारण है कि इतना बड़ा हमला मुमकिन हो पाया।
<h4>सोवियत संघ का अफगानिस्तान पर हमला और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान</h4>
सोवियत संघ को अफगानिस्तान से  निकालने के लिए पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ मिलकर पूरी दुनिया से लड़ाके अपने देश में बुलाए थे। सोवियत संघ को अफगानिस्तान से बाहर निकालने के लिए पाकिस्तान का साथ देने वालों में पहला शख्स था ओसामा बिन लादेन। लादेन ने अपनी अरबों की दौलत का सहारा लेकर अल कायदा बनाई और इसमें साथ आया पेशे से डॉक्टर अयमान अल जवाहिरी। अल जवाहिरी ने पूरी दुनिया घूम कर अपना एक नेटवर्क बनाया जहां से उसने पूरी दुनिया में इस्लामिक कट्टरपंथी युवाओं को इकट्ठा किया और अफगानिस्तान पहुंचा दिया । इन सब युवाओं को दिखाया गया एक सपना इस्लामिक राष्ट्र का जो कि शरीयत के हिसाब से चलता हो। मिशन पूरा हुआ और अफगानिस्तान से सोवियत यूनियन बाहर निकला । मिशन पूरा होने के बाद इन युवाओं को अपने देश वापस जाने के लिए बोल दिया गया जाहिर है अब इनकी न पाकिस्तान को जरूरत थी और न ही अमेरिका को। ये युवक अपने अपने देश वापस लौटे और वहां पर इन्होंने इस्लामिक कट्टरपंथ फैलाना शुरू कर दिया । इसी के बाद पूरी दुनिया में इस्लामी कट्टरपंथ की एक लहर सी दिखी चाहे वह इंडोनेशिया का जेमा इस्लामिया आतंकी संगठन हो या फिलीपींस के अबू सय्यफ । ऐसी ही मांगे पाकिस्तान में भी मांगी जाने लगी तालेबान से टूटा हुआ एक संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने भी ऐसी मांगे रखी। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (Tehrik-i-Taliban) की पाकिस्तानी आर्मी और आईएसआई का ही बच्चा है।
<h4>9/11 के बाद आतंकियों पर शिकंजा कसना शुरू</h4>
2001 में अमेरिका में 11 सितंबर का हमला हुआ उसके बाद शुरू हुआ पूरी दुनिया में आतंकियों पर शिकंजा कसने का अभियान। दिसंबर 2001 में अमेरिका और नॉर्दर्न अलायंस ने तालिबान को अफगानिस्तान से उखाड़ फेंका। उसके बाद बहुत सारे तालिबानी लड़ाकों ने शरण ले ली पाकिस्तान के ट्राईबल इलाकों में । इसके बाद उन्हीं तालिबानी लड़ाकों को खदेड़ने के लिए पाकिस्तानी आर्मी ट्राइबल इलाके में 55 साल में पहली बार घुसा। यहीं से शुरू हुई तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (Tehrik-i-Taliban) और पाकिस्तानी सेना के बीच तकरार। इससे पहले तालिबान और तहरीक-ए-तालिबान दोनों इस इलाके में खुलेआम रहते थे और पाकिस्तानी आर्मी इनके खिलाफ कुछ भी नहीं करती थी ऐसा नहीं था कि पाकिस्तानी सेना को इस बात की जानकारी नहीं थी कि तालिबान इलाके में है लेकिन क्योंकि तालिबान को और तहरीक-ए-तालिबान को दोनों को पाकिस्तानी आर्मी का संरक्षण प्राप्त था इसलिए सेना उनको देखकर भी नजर अंदाज करती थी । 2001 दिसंबर के बाद से ही तहरीक-ए-तालिबान (Tehrik-i-Taliban) और पाकिस्तानी सेना में कभी दोस्ती कभी दुश्मनी का दौर चलता रहा। आखिरकार 2014 में नवाज शरीफ के साथ बातचीत के बाद दोनों पक्षों में सीजफायर का ऐलान किया गया । सीजफायर टूटी और तहरीक-ए-तालिबान  (Tehrik-i-Taliban) ने कराची एयरपोर्ट पर हमला किया जिसमें 28 लोग मारे गए ।
<h4>पाकिस्तानी सेना का ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब</h4>
इस ऑपरेशन में 30000 पाकिस्तानी सैनिकों को लगाया गया। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने आतंकवादियों को सजा-ए-मौत ना देने के एक पुराने फैसले को वापस लिया इससे पहले आतंकवादियों को सजा-ए-मौत देने पर पाकिस्तानी सरकार ने खुद रोक लगाई थी। ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब में तहरीक-ए-तालिबान को खाता नुकसान हुआ इस ही के बाद तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने आर्मी स्कूल में यह नरसंहार किया और इस नरसंहार को अपना बदला बताया। तहरीक-ए-तालिबान (Tehrik-i-Taliban) जिसने पाकिस्तान में इतना बड़ा नरसंहार किया साथ में बेनजीर भुट्टो की हत्या का आरोपी भी ही इस संगठन पर है । अब हम आपको बताते हैं और किस्सा जिससे साफ होता है कि पाकिस्तानी सरकार आतंकवाद और तहरीक ए तालिबान से निपटने के लिए कितनी दृढ़ संकल्प है।
<h4>तहरीक-ए-तालिबान के कमाण्डर को पाकिस्तान की अदालत ने कर दिया बरी</h4>
पिछले साल 4 अक्टूबर को तहरीक-ए-तालिबान (Tehrik-i-Taliban) पाकिस्तान के एक कमांडर रहमान हुसैन को पाकिस्तान की एंटी टेररिज्म कोर्ट ने बरी कर दिया उनके ऊपर हथियार रखना और पाकिस्तान पर हमले करवाने की साजिश करने के आरोप थे। इन आरोपों को पाकिस्तानी अदालत में साबित किया जा सका क्योंकि गवाह पलट के और पाकिस्तानी एजेंसी ने कुछ पुख्ता सबूत नहीं दिए। ऐसा आतंकवादी संगठन जिस पर बेनजीर भुट्टो की हत्या का आरोप था उसका एक कमांडर पाकिस्तानी कोर्ट से रिहा हो गया । एक ऐसा आतंकवादी संगठन पाकिस्तान आतंकवादी संगठन घोषित कर चुके हैं । उसके कमांडर पर यह आरोप सिद्ध नहीं हो पाया कि वह तहरीक-ए-तालिबान का आतंकवादी है । कुछ ऐसे ही आरोप कुलभूषण जाधव के खिलाफ भी थे जिसको पाकिस्तान की अदालत में सारे सबूतों को नजरअंदाज करते हुए मौत की सजा सुना दी । इस सजा के खिलाफ भारत सरकार को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस तक जाना पड़ा जहां पाकिस्तान को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी।
<h4>तालिबान को मिला हुआ पाकिस्तानी आर्मी का संरक्षण</h4>
पाकिस्तानी रक्षा विशेषज्ञ आयशा सिद्दीका का कहना है कि तालिबान का वजूद ही इसलिए है क्योंकि उसके ऊपर पाकिस्तानी सेना का हाथ है वरना तालेबान तो खड़ी ही नहीं हो सकती थी पाकिस्तान के अपने इलाकों में आतंकवाद पनप रहा है और उन्हें संरक्षण है पाकिस्तान की आईएसआई का और पाकिस्तानी सेना का । इसी साल अगस्त में पाकिस्तान के मीरानशाह इलाके में तहरीक-ए-तालिबान (Tehrik-i-Taliban) में किसी भी डीजे बजाने पर, महिलाओं के अकेला घर से बाहर निकलने पर और पोलियो की दवाई पिलाने पर एक हुकुम जारी किया। हुकुम के अनुसार यह सब इस्लाम के खिलाफ था और ऐसा करने वाले को कड़ी सजा दी जाएगी लेकिन यह सब देखते हुए भी पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तानी सरकार किसी भी तहरीक-ए-तालिबान के आतंकवादी को नहीं पकड़ पाई जो इस हुक्म का पालन करवा रहे थे। मीरानशाह कोयला का है जहां पर तहरीक-ए-तालिबान के प्रमुख दावा करते हैं कि हर 3 आदमी में से एक आदमी उनका है इसके बाद भी ऐसे हुकुम धड़ल्ले से दिए जाते हैं और पाकिस्तानी आदमी किसी को भी पकड़ नहीं पाती।
<h4>आतंकियों पर लगाम लगाना पाकिस्तान की मंशा नहीं</h4>
अगर तहरीक-ए-तालिबान के दूसरे नेताओं की बात करें तो बैतुल्लाह मसूद <strong><a href="https://en.wikipedia.org/wiki/Tehrik-i-Taliban_Pakistan"><span style="color: #000080;">तहरीक-ए-तालिबान</span></a></strong> का पहला प्रमुख यह मसूद 2005 से आतंकवाद में लिप्त था और मसूद के साथ पाकिस्तानी मिलिट्री की एक मीटिंग में बैतुल्लाह को पाकिस्तान ने 20 मिलियन डॉलर का ऑफर दिया था अपने इलाके में डेवलपमेंट के नाम पर । बैतुल्लाह मसूद के बाद जितने भी तहरीक-ए-तालिबान (Tehrik-i-Taliban) के प्रमुख रहे चाहे हकीमुल्लाह महसूस हो मौलाना फजलुल्लाह हो यह सब पाकिस्तानी के रहने वाले थे । ऐसे सूरते हाल में क्या पाकिस्तान कभी भी आतंकवाद पर लगाम लगा पाएगा असलियत तो यह है मंशा हो तो लगाम लगाई जा सकती है।.

सतीश के. सिंह

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