इस्लाम के नाम पर बने देश Pakistan में मुसलमानों के साथ भेदभाव क्यों? ये सवाल इसलिए की पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों के मस्जिद को तोड़ा गया है। दरअसल,पाकिस्तान के कराची में एक अहमदी समुदाय से जुड़ी मस्जिद को तोड़ दिया गया है।
पाकिस्तान में अहमदी समुदाय के मुसलमानों को मुस्लिम नहीं माना जाता है। अहमदी समुदाय की जिस मस्जिद पर हमला किया गया है, वह पाकिस्तान के निर्माण के बाद से ही अस्तित्व में थी। बता दें कि 1974 के संवैधानिक संशोधन में अहमदी समुदाय को गैर-मुस्लिम घोषित किया गया था।
पाकिस्तान में अहमदी मस्जिद पर हमला
पाकिस्तान में रह रहे अहमदी खुद को मुसलमान बताते हैं, लेकिन पाकिस्तान में उन्हें मुसलमान नहीं माना जाता है। अहमदी समुदाय की यह मस्जिद कराची के ड्रिघ रोड पर बनी हुई है। जिसे कुछ लोगों के द्वारा तोड़ दिया गया है,साथ ही इस मस्जिद की दीवारों पर कालिख भी पोती गई है।
जमात-ए-अहमदिया के प्रवक्ता आमिर महमूद के एक बयान में कहा गया है कि सोमवार दोपहर करीब 3:45 बजे एक दर्जन लोग मस्जिद में घुस आए। महमूद ने कहा कि लोगों ने हथौड़ों से मीनारों को नष्ट कर दिया और दीवारों पर कालिख पोत दिए।
2023 में अहमदी मुसलमानों पर 11वां हमला
जमात-ए-अहमदिया के प्रवक्ता आमिर महमूद की मानें तो इस साल अहमदिया मुसलमानों पर अबतक 11 हमले हो चुके हैं।कहा जा रहा है कि बैत उल मुबारिक नाम की जिस मस्जिद पर सोमवार को हमला हुआ, वह पाकिस्तान के निर्माण के बाद से ही अस्तित्व में थी। वहीं पुलिस का दावा है कि बार-बार अनुरोध करने के बावजूद अहमदियों ने कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई है।
चेहरे को ढक कर आए थे हमलावर
अहमदियों की जिस मस्जिद पर हमला हुआ, वह शाह फैसल पुलिस स्टेशन की सीमा के भीतर आता है। शाह फैसल थाने की पुलिस ने बताया कि मस्जिद पर हमला शाम चार बजे के आसपास की है। हालांकि, पुलिस का दावा है कि इस हमले में दर्जनभर की जगह सिर्फ चार से पांच लोग ही शामिल थे। साथ ही उन्होंने बताया कि सभी हमलावर चेहरे को ढके हुए थे।
अवैध रूप से बनी थी मीनार-पुलिस
पुलिस का कहना है कि इस मस्जिद का मीनार अवैध रूप से बनाई गई थी, इसके लिए अहमदिया समुदाय के लोगों ने प्रशासन से कोई अनुमति नहीं ली थी। वहीं,पुलिस का कहना है कि अहमदी समुदाय की ओर से अबतक कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई है, जबकि पुलिस ने उनसे बार-बार ऐसा करने का अनुरोध किया था।
समुदाय ने दर्ज कराया मामला
हालांकि, समुदाय ने कहा कि उन्होंने घटना की पूरी जानकारी के साथ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। उन्होंने यह भी कहा कि मस्जिद पर हमले का सीसीटीवी वीडियो भी पुलिस को सौंप दिए गए हैं। इसमें कहा गया है कि इमारत 1948 से अस्तित्व में है, जबकि मीनारें 1955 में जोड़ी गईं।
अहमदियों के पूजा स्थल को मस्जिद नहीं कह सकते
1974 के एक संवैधानिक संशोधन में परिभाषित किया गया कि किसे मुस्लिम कहा जा सकता है और किसे गैर-मुस्लिम। जो कोई भी पैगंबर मोहम्मद की भविष्यवाणी की अंतिमता में विश्वास नहीं करता, वह मुसलमान नहीं है। संशोधन में विशेष रूप से कहा गया है कि “कादियानी समूह या लाहौरी समूह के व्यक्ति (जो खुद को ‘अहमदी’ कहते हैं)” गैर-मुस्लिम हैं।
बाद में 1984 के अध्यादेश में अहमदियों को उनके पूजा स्थल को “मस्जिद” कहने और उनके विश्वास का प्रचार करने से रोक दिया। उसी कानून के विस्तार में, 1993 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया कि अहमदियों को मुस्लिम पहचान से जुड़ी चीजों का उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
मीनारों के भी बनाने पर है प्रतिबंध
पाकिस्तान के कानूनविदों का कहना है कि अहमदी न तो पूजा स्थलों को मस्जिद कह सकते, न ही अजान के रूप में पूजा कर सकते हैं। साथ ही अहमदी मीनारों का उपयोग भी नहीं कर सकते हैं, क्योंकि वे मुस्लिम पूजा स्थलों से जुड़े हुए हैं।
हालांकि अहमदी मुसलमानों का तर्क है कि मीनारें एशियाई वास्तुकला की एक विशेषता हैं जो हिंदू मंदिरों में भी पाई जाती हैं। लिहाजा मीनारों के रहने और नहीं रहने से पूजा और आस्था में कोई फर्क नहीं पड़ता।
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