चीन और पाकिस्तान (China-Pakistan) की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है। दोनों देश एक दूसरे को आयरन ब्रदर बताते हुए नहीं थकते हैं। वो भी तब, जब चीन ने कर्ज तले दबाकर पाकिस्तान को कंगाल बना दिया है। इस बीच पिछले कुछ महीनों में दो बड़े डेवलपमेंट ने चीन और पाकिस्तान (China-Pakistan) में बढ़ती दूरियों को दुनिया के सामने रख दिया है। पहला, हाल में ही एक अमेरिकी राजदूत ने पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह का दौरा किया है। दूसरा, पाकिस्तान ने यूक्रेन की सहायता के लिए अमेरिका के साथ एक गुप्त हथियार समझौता किया और बाकायदा हथियारों की सप्लाई भी की। इन दोनों डेवलपमेंट ने पाकिस्तान की अमेरिका से बढ़ती नजदीकी और चीन के साथ संबंधों के नाजुक संतुलन को उजागर किया है।
इस महीने की शुरुआत में, अमेरिका स्थित गैर-लाभकारी संगठन द इंटरसेप्ट की एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पाकिस्तान ने गुप्त रूप से हथियारों की आपूर्ति की थी, जिसका इस्तेमाल अंतत रूस के साथ चल रहे युद्ध के बीच यूक्रेनी सेना की सहायता के लिए किया गया था। पाकिस्तानी सेना के एक सूत्र से इंटरसेप्टर को मिले लीक दस्तावेजों के अनुसार, अमेरिका और पाकिस्तान 2022 की गर्मियों से 2023 के वसंत तक युद्ध सामग्री की बिक्री पर सहमत हुए। रूसी आक्रमण फरवरी 2022 में शुरू हुआ था।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पाकिस्तान (China-Pakistan) ने हथियारों की बिक्री से अमेरिका से राजनीतिक सद्भावना अर्जित की। इसी सद्भावना ने हथियारों के बदले में नकदी संकट से जूझ रहे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से राहत पैकेज दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसमें आगे कहा गया कि अमेरिकी विदेश विभाग ने अज्ञात हथियार सौदे के बारे में आईएमएफ को विश्वास में लिया। द इंटरसेप्टर ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि कर्ज पाने के लिए आईएमएफ ने पाकिस्तान से कहा था कि उसे अपने ऋण और विदेशी निवेश से संबंधित कुछ वित्तपोषण और पुनर्वित्त लक्ष्यों को पूरा करना होगा – ऐसे लक्ष्य जिन्हें पूरा करने के लिए पाकिस्तान संघर्ष कर रहा था। लेकिन हथियारों की बिक्री से मिले धन से इस अंतर को पाटने में काफी मदद मिली।
जिस वक्त द इंटरसेप्टर की यह रिपोर्ट जारी की गई, उसी वक्त पाकिस्तान में अमेरिकी राजदूत डोनाल्ड ब्लोम को ग्वादर बंदरगाह का दौरा करना पड़ा। ग्वादर दक्षिण-पश्चिमी बलूचिस्तान प्रांत का एक तटीय शहर है और 50 अरब डॉलर की लागत वाले चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) परियोजना का केंद्र बिंदु। चीन ग्वादर को एक मिलिट्री बेस के तौर पर विकसित कर रहा है, ऐसे में वहां अमेरिकी राजदूत का जाना कई सवाल खड़े करता है। 2021 के बाद से इस क्षेत्र में किसी अमेरिकी राजनयिक की यह पहली यात्रा थी जब प्रभारी डी’एफ़ेयर बंदरगाह पर एक छोटे वक्त के लिए रुके थे। इससे पहले अमेरिकी अधिकारियों ने 2006 के बाद से ग्वादर में कदम नहीं रखा था।
यात्रा के दौरान ब्लोम ने स्थानीय अधिकारियों और पाकिस्तानी नौसेना के पश्चिमी कमांडर से मुलाकात की। निक्केई एशिया की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्होंने बंदरगाह के साथ एक पहाड़ी की चोटी पर पत्रकारों से भी बात की। इस्लामाबाद में अमेरिकी दूतावास ने 12 सितंबर की यात्रा के बारे में कहा था कि राजदूत ब्लोम ने ग्वादर बंदरगाह का भी दौरा किया और बंदरगाह संचालन, क्षेत्रीय ट्रांसशिपमेंट हब के रूप में ग्वादर की क्षमता और पाकिस्तान के सबसे बड़े निर्यात बाजार: संयुक्त राज्य अमेरिका से जुड़ने के तरीकों के बारे में सीखा।
यह हाई-प्रोफाइल दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब बीजिंग पहले से ही देश में अपने हितों और कर्मियों के खिलाफ बढ़ते खतरों के साथ-साथ सीपीईसी के तहत आने वाली कई प्रमुख परियोजनाओं के लिए पाकिस्तान के विलंबित भुगतान को लेकर इस्लामाबाद से निराश है। इस्लामाबाद कथित तौर पर सीपीईसी के सबसे बड़े प्रयास मेन लाइन-1 के नाम से मशहूर रेलवे की लागत को 9.9 अरब डॉलर से घटाकर 6.6 अरब डॉलर करने के लिए बीजिंग के साथ बातचीत कर रहा है। ब्लोम की यात्रा के बारे में बात करते हुए, पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि देश ग्वादर बंदरगाह की क्षमता को देखने के लिए विदेशी गणमान्य व्यक्तियों का स्वागत कर रहा है।
निक्केई एशिया ने विशेषज्ञों से बात की जिन्होंने कहा कि ब्लोम की यात्रा को एक अलग नजरिए से देखा जाना चाहिए। एक सरकारी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर निक्केई को बताया कि इस्लामाबाद सीपीईसी परियोजनाओं पर आगामी वार्ता में बीजिंग पर कुछ लाभ उठाना चाहता है, जिसे अगले महीने अंतिम रूप दिए जाने की संभावना है। अधिकारी ने कहा कि ब्लोम की यात्रा को उसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। ग्वादर के ग्रामीण सामुदायिक विकास परिषद के अध्यक्ष नासिर सोहराबी इस यात्रा को ग्वादर में काम करने की अमेरिकी इच्छा की अभिव्यक्ति के रूप में देखते हैं। अधिकारी की बात दोहराते हुए उन्होंने कहा, “पाकिस्तान किसी तरह से सीपीईसी परियोजनाओं पर रियायतें हासिल करने के लिए चीन पर दबाव बनाने के साधन के रूप में ग्वादर में अमेरिका के साथ काम करने का संकेत दे सकता है। सोहराबी ने कहा कि अमेरिका ने इस यात्रा के माध्यम से ग्वादर में अपनी उपस्थिति महसूस की।
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