जुमे के दिन 'पोर्क' खाने पर मजबूर मुसलमान, पाकिस्तानी पीएम इमरान खान ने आंखें मूंदीं!

उइगर मुस्लिमों (Uyghur Muslims) के खिलाफ चीन का दमनचक्र और तेज होता जा रहा है। चीन उइगर मुस्लिमों (Uyghur Muslims) को हर शुक्रवार को 'री एजुकेशन कैंप' में मुसलमानों के लिए नापाक पशु का मांस (पोर्क) खाने को मजबूर रहा है। चीन सरकार की इस नापाक हरकत का शिकार रहीं  <a href="https://hindi.indianarrative.com/world/china-carrying-genocide-of-uighurs-muslims-in-xinjiyang-14045.html"><strong><span style="color: #000080;">उइगर मुस्लिम</span> </strong></a>समुदाय की <a href="https://en.wikipedia.org/wiki/Sayragul_Sauytbay"><strong><span style="color: #000080;">सयारगुल सौतबे</span></strong></a> ने इसका खुलासा किया है। सयारगुल सौतबे आज कल स्वीडन में रहती हैं। उन्‍होंने कहा कि अगर कोई उइगर मुस्लिम (Uyghur Muslims) ऐसा करने से मना कर देता है तो उसे कठोर सजा दी जाती है। यही नहीं शिंजियांग इलाके में चीन की कम्युनिस्ट सरकार के इशारे पर सूअर पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है।

सयारगुल ने एक टीवी इंटरव्‍यू में बताया कि मुसलमानों को हर शुक्रवार को पोर्क खाने के लिए मजबूर किया जाता है…चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने जानबूझकर शुक्रवार का दिन चुना है जो मुस्लिमों के लिए पवित्र दिन माना जाता है। अगर आप ऐसा करने से मना कर देते हैं तो आपको कड़ी सजा दी जाती है।' सयारगुल सौतबे स्‍वीडन में चिकित्‍सक और शिक्षक हैं। हाल ही में उन्‍होंने अपनी एक किताब प्रकाशित की है और इसमें अपने साथ हुई यातनाओं और का जिक्र किया है।

चीन के दमन का शिकार रही एक और महिला बिजनसमैन जुमरेत दाउत हैं जिन्‍हें मार्च 2018 में उरुमेकी में पकड़ा गया था। उन्‍होंने कहा कि दो महीने तक मेरे साथ केवल पाकिस्‍तान के साथ संबंधों को लेकर पूछताछ होती थी क्यों कि उनके पति पाकिस्तानी नागरिक थे। चीनी अधिकारियों ने न केवल सवाल पूछे बल्कि उनके बच्‍चों की संख्‍या, धर्म और कुरान के पढ़ने के बारे में जानकारी मांगी। दाउत ने बताया कि एक बार तो उन्‍हें अपने कैंप के पुरुष अधिकारियों से शौचालय जाने के लिए दया की भीख मांगनी पड़ी। उन्‍हें शौचालय तो जाने दिया गया लेकिन उनके हाथ बंधे हुए थे और पुरुष अधिकारी शौचालय तक उनक पीछा करते हुए गए थे।

दाउत ने बताया कि पोर्क को उइगर मुस्लिमों के शिविर में परोसा जाता है। उन्‍होंने कहा, 'जब आप यातना शिविर में बैठे हैं तो आप यह निर्धारित नहीं कर सकते हैं कि क्‍या खाना है और क्‍या नहीं खाना है। जिंदा रहने के लिए हमें पोर्क खाना पड़ता है।'.

सतीश के. सिंह

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