चीन के शिनजियांग प्रांत (Xinjiang) में उइगुर मुस्लिम समुदाय के साथ अक्सर चीन की सरकार द्वारा अत्याचार और प्रताड़ना की खबरें सामने आती रहती है। इसी के साथ ही चीन के सुदूर पश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र में जबरन श्रम के जरिए कपास का उत्पादन भी करवाया जा रहा है। यही नहीं श्रमिकों की प्रताड़ना और योन शोषण वहां आम बात है। ऐसे में कपास के आयात को रोकने में विफलता को चुनौती देने के लिए एक उइगर संगठन और एक मानवाधिकार समूह ब्रिटिश कोर्ट (British court) में चीन (China) के खिलाफ सुनवाई हो रही है।
लंदन हाईकोर्ट या किसी विदेशी अदालत में पहले बार शिनजियांग में जबरन श्रम के मुद्दे पर उइगरों की कानूनी दलीलें सुनी गई। उइगुर मुसलमानों के मामले पर मानवाधिकार संगठन अक्सर चीन की सरकार की आलोचना करते हुए देखे जाते हैं, लेकिन फिर भी चीन की सरकार इन दलीलों पर कोई खास ध्यान नहीं देती।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि क्षेत्र कपास का एक प्रमुख वैश्विक आपूर्तिकर्ता है, लेकिन मानवाधिकार संगठनों ने लंबे समय से आरोप लगाया है कि चीन के उइगर और अन्य तुर्क मुस्लिम अल्पसंख्यकों द्वारा यहां श्रमिकों से जबरम श्रम कार्य करवाया जा रहा है। वहीं शोधकर्ताओं की अगर मानें तो उनके अनुसार शिनजियांग चीन में उगाए जाने वाले कपास का लगभग 85% उत्पादन करता है, जो पूरी दुनिया के कपास का लगभग पांचवां हिस्सा है।
इसपर मानव अधिकार समूहों का तर्क है कि शिनजियांग में चीन के अधिकारों के उल्लंघन का पैमाना मानवता के खिलाफ अपराध हो सकता है। इसका मतलब यह है कि कई अंतरराष्ट्रीय फैशन ब्रांड मजबूर श्रम और अन्य अधिकारों के हनन के साथ दागी कपास का उपयोग करने के उच्च जोखिम में हैं। गौरतलब है कि चीन में तो मीडिया भी उइगुर मुसलमानों के मामले पर चीनी सरकार को बचाने का प्रयास करता है। जिसकी वजह से पारदर्शी तौर पर कभी उइगुर मुसलमानों का दर्द सामने नहीं आ पाता है।
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ग्लोबल लीगल एक्शन नेटवर्क के निदेशक गियरॉइड ओ क्यूइन ने कहा कि समूह ने अपने मामले को वापस लेने के लिए 2020 में यूके और अमेरिकी सरकारों को कंपनी के रिकॉर्ड, एनजीओ जांच और चीनी सरकारी दस्तावेजों सहित लगभग 1,000 पृष्ठों के साक्ष्य प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि ब्रिटिश अधिकारियों ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है।
शोधकर्ताओं का अनुमान है कि उइगर और अन्य अल्पसंख्यक समूहों के 10 लाख से अधिक लोग शिनजियांग (Xinjiang) में नजरबंद हैं। यहां उन्हें प्रताड़ित किया गया। उनका यौन उत्पीड़न किया गया। उन्हें अपनी भाषा और धर्म को छोड़ने के लिए मजबूर किया गया। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने भी इसकी पुष्टि की थी। चीन इन आरोपों को झूठा बताता रहा है। चीनी सरकार का तर्क है कि उसकी नीतियों का उद्देश्य चरमपंथ को खत्म करना था।
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