Taliban 2.0 भारत के लिए हो सकता है खतरनाक? जिहादियों की जन्नत अफगानिस्तान!

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अफगानिस्तान में तख्तापलट होने के बाद से वहां इस्लामी आतंकवाद फिर से पैर पसारने शुरू हो गए हैं। तालिबान ने आते ही अपने तेवर दिखा दिए और अपने विरोधियों पर हमले चालू कर दिए। तालिबान को पाकिस्तान का समर्थन है पीएम इमरान खान कई मौकों पर तालिबना के लिए अंतरराष्ट्रीय मंच पर पैरवी कर चुके हैं। भारत के लिए अफगानिस्तान में तालिबान का फिर से आना खतरनाक है खास कर के जम्मू-कश्मीर के लिए। पाकिस्तान की सह पर तालिबान फिर से कश्मीर को अस्थिर करने की कोशिश करेगा। हालांकि पाकिस्तान के उपर एफएटीएफ और वर्ल्ड बैंक जैसी संस्थाओं का दवाब है। एफएटीएफ कई बार आतंक, आतंकियों तो संरक्षण देने के लिए पाकिस्तान को चेतावनी दे चुका है ऐसे में पाकिस्तान अपने टेरर कैंपों को पीओके से हटाकर अफगानिस्तान में शिफ्ट करा रहा है।</p>
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पाकिस्तान और तालिबान के बीच संबंध कैसे है किसी से छिपा हुआ नहीं है। माना जाता है कि पाकिस्तान की सुरक्षा एजेंसी आईएसआई ही तालिबान सरकार को चला रही है। ऐसे में अफगानिस्तान का जिहादियों के लिए सेफ हेवन बनना लाजमी है। कई रिपोर्ट से ये खुलासा भी हुआ है कि अफगानिस्तान में कई आतंकी कैंप लग चुके हैं और वहां तालिबान के लड़ाके नए-नए जिहादियों को ट्रेंड कर रहे हैं। 2020 के अप्रैल में अफगान फोर्स ने एक तालिबान के कैंप का धावा बोला था, जहां 10 आतंकी मारे गए थे। ये सभी आतंकी जैश-ए-मोहम्मद से थे। आपको बता दें कि जैश-ए-मोहम्मद एक कश्मीरी आतंकी संगठन है जिसने भारत के अंदर कई हमले कराए हैं।</p>
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कश्मीर से आर्टिकल 370 के हटाए जाने के बाद से पाकिस्तान कश्मीर को अशांत करने के फिराक में है। पाकिस्तान ने अल बदर आतंकी ग्रुप को फिर से एक्टिवेट किया है। अल-बदर कश्मीर में 1990 में काफी एक्टिव थी। अब इस संगठन ने हक्कानी और तालिबान के साथ गहरे संबंध स्थापित कर लिए है। इस ग्रुप के कमांडर हामाजा बुरहान ने हक्कानी के कई नेताओं से मुलाकात की है।</p>
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पाकिस्तान अफगानिस्तान से ट्रेंड किए गए जिहादियों को घाटी में भेज सकता है। 370 हटने के बाद से पाकिस्तान कश्मीर में कुछ कर नहीं पा रहा है। भारतीय सेना ने कई आतंकी औऱ संगठनों पर एक्शन लिया। कई जानकारों को कहना है कि अब समय काफी संभल कर रहने वाला है। कश्मीर पर नजर गड़ाए पाकिस्तान तालिबान की  मदद से फिर से बडे़ हमले करवा सकता है। जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन फिर से तालिबान के सपोर्ट से उभर जाएगा।</p>
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रॉ के हेड रह चुके विकर्म सूद का कहना है कि तालिबान के आ जाने से अफगानिस्तान फिर से जिहाद का सेंटर बन गया है। उन्होंन कहा कि भारत में जितन भी आतंकी संगठन है तालिबान के जीत से उत्साहित हैं, सब में फिर से जान सी आ गई है। ये सब इस जीत को अपनी जीत मान रहे हैं।</p>
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भारत के लिए खतरा ये भी है कि अमेरिका ने तालिबान में काफी वेपन छोड़ दिए हैं। सारे एसोल्ट राइफल्स और बम बारुद तालिबान के कब्जे में आ गया है। अब कश्मीर में पिछले 5-6 सालों से आर्म के लिए तरते आतंकियों के पास भी तालिबान से नए आर्म आ सकते हैं। तालिबान कश्मीर के युवाओं के जरिए ड्रग्स का कारोबार भी भारत में फैला सकता है। कश्मीर और पंजाब के रास्ते वो अपना माल भारत के बाजार में बेंच कर पैसा बना लेगा। भारत के लिए दिक्कत यहां के कट्टर मुस्लिम समुदाए भी हैं। कई मुस्लिम संगठन, नेता तालिबान को जायज ठहराने में लगे हुए हैं। उनका कहना है कि तालिबान ने जो किया उसने अपनी आजादी के लिए किया।</p>
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देश में मौजूद एक तबका को लगने लगा कि ये इस्लाम के लिए बहुत बड़ी जीत है। तालिबान की जीत को वो काफिरों के उपर जीत बता रहे हैं। तालिबान ने अफगानिस्तान में शरिया कानून लागू कर दिया है कट्टरपंथी लोग इसकी भी वकालत कर रहे हैं। तालिबान के मजबूत होने से सामान्य तौर पर भारत में जिहादी कट्टरपंथ तेज होगा। भारत का देवबंद पाकिस्तान के देवबंद, यानी तालिबान और जैश-ए-मोहम्मद की धार्मिक विचारधारा से जुड़ा हुआ है, दोनों की सोच और विचार काफी मिलते हैं। आतंकी संगठन ऐसे लड़कों को टारगेट कर जिनकी सोच उनसे मिलती है देश भर में फैलाने को कोशिश करेंगे।</p>
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<strong>(ये लेख - usanasfoundation.com पर प्रकाशित अभिनव पाण्डेय के विश्लेषण पर आधारित है)</strong></p>
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Gyanendra Kumar

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