शायद ही कोई ऐसा देश हो जो चीन (China) से परेशान न हो। चीन की पैंतरेबाजी और उसके हड़पने की भूख के चलते उससे सीमा साझा करने वाले सारे देश परेशान हैं। चीन उनमें से है जो कभी भी शांत नहीं बैठ सकता है इसलिए वह अक्सर कोई न कोई गेम प्लान करता रहता है। ऐसे में चलबाज चीन की अक्सर सबके सामने पोल भी खुल जाती है। अब अमेरिका के साथ टेंशन के बीच चीन अपनी न्यूक्लियर फोर्स का आधुनिकीकरण और विस्तार कर रहा है। अब तक चीन की परमाणु प्रतिशोध नीति सीमित परमाणु शस्त्रागार पर आधारित थी।
चीन (China) परमाणु हथियारों के नो-फर्स्ट- यूज नीति को भी मानता था, लेकिन अब इनमें तेजी से बदलाव हो रहा है। चीन (China) के सुरक्षा वातावरण और उसकी परमाणु रणनीति की भविष्य की दिशा के बारे में बात करने वाले चीनी थिंक टैंकों से पता चलता है कि अमेरिका और चीन के बीच एक परमाणु और पारंपरिक सुरक्षा चिंता तेजी से बढ़ रही है। दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी सेना की मौजूदगी और अमेरिका के छोट हमले करने वाले परमाणु हथियारों के विकास ने चीन की चिंताओं को कई गुना बढ़ा दिया है। चीन परमाणु हमला को अंजाम देने के लिए नए-नए मिसाइल साइलो, बमवर्षक विमानों और पनडुब्बियों का बेड़ा भी विकसित कर रहा है। इससे चीन के पास दुनिया में कहीं भी और कभी भी हमला करने की ताकत भी आ जाएगी।
चीनी (China) रणनीतिकारों का मानना है कि अमेरिका की गैर-परमाणु सामरिक क्षमताएं (पारंपरिक हथियार) चीन की परमाणु ताकतों के लिए खतरा हैं। हालांकि इसकी परमाणु रणनीति में बदलाव के सीमित सबूत हैं, लेकिन चीन अपनी दूसरी-स्ट्राइक क्षमता सुनिश्चित करने के लिए अपनी रणनीतिक मुद्रा बदल रहा है, जिसमें उन्नत पारंपरिक हथियारों (जैसे, काउंटरस्पेस क्षमताओं, साइबर हथियार और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध) पर भरोसा करना शामिल है, जो परमाणु हमला होने के बाद अमेरिकी मिसाइल डिफेंस के खिलाफ जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं। चीन के इस कदम से पूरी दुनिया में हथियारों की दौड़ तेज होने की आशंका है। चीन का अपने पड़ोसी मुल्कों सहित कई देशों के साथ गंभीर विवाद भी है।
2021 की गर्मियों में पता चला था कि चीन अपने परमाणु हथियारों के विस्तार के तौर पर तीन साइलो क्षेत्रों का निर्माण कर रहा है। साइलो ऐसे कंटेनर होते हैं, जिनके अंदर से मिसाइलों को लॉन्च किया जा सकता है। नवंबर 2021 में अमेरिकी रक्षा विभाग ने अनुमान लगाया था कि चीन के पास 2030 तक 1000 परमाणु हथियार होंगे। यह उसके वर्तमान परमाणु हथियारों के जखीरे में लगभग पांच गुना की वृद्धि होगी।
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इन घटनाक्रमों से संकेत मिलता है कि चीन परमाणु हथियारों के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदल रहा है। कुछ समय पहले तक चीन ने परमाणु हमला होने के बाद प्रतिशोध की रणनीति अपनाई थी और छोटी लेकिन जीवित रहने वाली सेना विकसित की थी। परमाणु हथियारों ने चीन की समग्र सैन्य रणनीति में केवल एक सीमित भूमिका निभाई है, क्योंकि चीनी नेताओं ने ऐसे हथियारों को केवल परमाणु हमले को रोकने या परमाणु ब्लैकमेल और ज़बरदस्ती को रोकने के लिए उपयोगी माना है। चीन का अतीत का दृष्टिकोण ‘पहले इस्तेमाल नहीं’ की घोषणा के अनुरूप रहा है।
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