दुनिया के कई देशों को कर्ज का लालच देकर दिवालिया कर चुका चीन (China) अब कुदरत के इंसाफ का सामना कर रहा है। ऐसा लग रहा है कि चीन की आर्थिक तरक्की का बुलबुला बस फूटने ही वाला है। चीन में बहुत बड़ी आर्थिक मंदी आ सकती है और ये मंदी राष्ट्रपति जिनपिंग को कहीं का नहीं छोड़ेगी. इसके वजह से जिनपिंग आर्थिक मंदी को बारूद के शोर में दबाना चाहते हैं। इसके लिए उनका टारगेट शायद ताइवान बनने जा रहा है।
कुछ लोगों का कहना है कि आज जो हालात चीन के हैं, वही हालात कभी सोवियत संघ के थे। इन हालातों ने सोवियत संघ के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या चीन भी उस तरफ आगे बढ़ रहा है? कुछ लोगों का कहना है कि आज जो हालात चीन के हैं, वही हालात कभी सोवियत संघ के थे। इन हालातों ने सोवियत संघ के टुकड़े-टुकड़े कर दिए थे।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या चीन (China) भी उस तरफ आगे बढ़ रहा है? विशेषज्ञों की मानें तो ऐसा नहीं है। उन्होंने सोवियत संघ से चीन की तुलना करने से इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि चीन, सोवियत संघ की तुलना में एक विशाल देश है। ऐसे में इसका उस तरह से पतन नहीं होगा मगर यह बात भी सच है कि देश में हालात ठीक नहीं है। इन हालातों की वजह से चीन एक बड़ी मुसीबत की तरफ बढ़ चुका है। सोवियत संघ कई देशों का एक ऐसा समूह था जिसकी अर्थव्यवस्था सन् 1980 के दशक के अंत में तेजी से ढह गई। कई लोग अब सोवियत संघ की तर्ज पर कहने लगे हैं कि चीन का आर्थिक चमत्कार अब खत्म हो चुका है।
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पिछले कुछ दिनों चीन (China) की मुद्रा युआन कमजोर हुआ है, प्रॉपर्टी सेक्टर में तनाव आया और कई ऐसी बातें हुई हैं जो अर्थव्यवस्था के खराब होने की तरफ इशारा करते हैं। ब्रिटिश अखबार द गार्डियन में अर्थव्यवस्था के मामलों पर लिखने वाले लैरी इलियट लिखते हैं कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को संरचनात्मक आर्थिक परिवर्तन करने की सख्त जरूरत है। साथ ही यह भी जरूरी है कि कठोर राजनीतिक नियंत्रण को कम किया जाए। उनका कहना है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक ताकतवर व्यक्ति हैं। वह आजादी और लोकतंत्र के लिए कोई रियायत देने को तैयार नहीं होंगे। ऐसे में देर-सबेर चीन, सोवियत संघ की राह पर ही होगा।
चीन के नीति निर्माता बार-बार यह बात कह रहे हैं कि सब कुछ ठीक रहेगा मगर फिर भी विकास संभावनाओं के बारे में मंदी जारी है। इलियट की मानें तो कोविड-19 महामारी के लॉकडाउन की वजह से ऐसा नहीं हुआ है। अर्थव्यवस्था में महामारी से पहले ही सुस्ती के संकेत दिखाई दे रहे थे।
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