अफगानिस्तान में भारत का असली दुश्मन तालिबान या पाकिस्तान, पानी में न बह जाएं इंडिया के 3 अरब डॉलर!

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भारत और अफगानिस्तान के मध्य सुदृढ़ आर्थिक एवं व्यापारिक एवं सांस्कृतिक संबंध है। भारत के सामरिक संबंधों को 2011 में नया रूप मिला जब भारत ने अफगान पुनर्निर्माण का जिम्मा उठाने का निर्णय लिया। भारत ने अफगानी विकास के लिए तीन अरब डॉलर की सहायता दी है। वहां पर 400 से अधिक भारतीय प्रोजेक्ट्स हैं। जिनमें सड़कें, बांध, विद्युत संचरण के संसाधन, पाठशाला, अस्पताल आदि के निर्माण में महत्वपूर्ण हैं भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत निर्मित अफगानी संसद-भवन  का उद्घाटन करते हुए इसे अफगान लोकतंत्र के लिए समर्पित किया था। भारत ने अफ़ग़ानिस्तान को 400 बसें, 200 मिनी बसें , 10 एंबुलेंस,  615 नगरपालिका उपयोगी गाड़ियां इत्यादि भेंट में दीं। अफगानी सेना को 285 गाड़ियां भी  दी गई थी। अफगानी राष्ट्रीय हवाई सेवा  'एरियाना' को एयर इंडिया के 3 जहाज भी दिए गए थे।</p>
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<strong>पाकिस्तान नहीं चाहता भारत-अफगान के रिश्ते अच्छे रहे</strong></p>
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भारत  का  अफगान  के साथ  निर्यात 90 करोड़ डॉलर  एवं आयात 50 करोड़ डॉलर का व्यापार है। भारत-अफगान संबंधों की  प्रगाढ़ता पाकिस्तान को फूटी आंख नहीं सुहाते हैं । वह ठगा सा एवं असहाय महसूस करता है। पिछले दशक में बिगड़ते घटनाक्रम एवं अपनी निष्क्रियता से खीझ कर उसने तालिबानियों को ‘आई एस आई’ से ट्रेनिंग दिलाई। अशांति फैलाने के लिए आवश्यक संसाधन दिए। अतः 15 अगस्त को पाकिस्तान स्वयं को सफल समझ रहा था। उसकी खुशी तब काफूर हो गई, जब तालिबानी मंत्रिमंडल का गठन होने लगा। उसे खेल हाथों से निकलता दिखा। फल स्वरूप पाकिस्तानी सेना अध्यक्ष जनरल बाजवा  को बिना बताए आई. एस. आई. प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल फैज़  हामिद का काबुल  दौरा हुआ, और हक्कानी ग्रुप को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। पाकिस्तान के इन कदमों को अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान दोनों में पसंद नहीं किया गया।</p>
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<strong>भारत के प्रयासों से तालिबान पर टिकी है पूरी दुनिया की नजरें</strong></p>
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भारत कूटनीतिक तौर पर सक्रिय हुआ और विदेश मंत्री श्री शंकर ने विभिन्न मंचों पर इस मुद्दे पर विश्व का ध्यान आकर्षित कराया। संयुक्त राष्ट्र संघ में 16 अगस्त को भारतीय अध्यक्षता में प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें यह तय हुआ कि अफगानिस्तान अपनी भूमि का उपयोग किसी भी पड़ोसी देश में आतंकवादी गतिविधियां चलाने के नहीं लिए करेगा। गत जी-23 समूह की सभा में सदस्य देशों ने इस विचार का पूर्ण समर्थन व्यक्त कर इसे शक्ति दी। जिस प्रकार से ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, फ्रांस, जापान, जर्मनी आदि देशों भारत से  विचार- विमर्श  कर रहे हैं, उससे विदित होता है कि इस क्षेत्र में होने वाली सभी गतिविधियों में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।</p>
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भविष्य में भारत के विरुद्ध पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की संभावनाएं बढ़ गई है। जिस प्रकार से तालिबान के काबुल नियंत्रण पर पाकिस्तान बल्लियों उछल रहा था। पाकिस्तान को लगता था जैसे भारत को परेशान एवं हैरान करने का नया हथियार मिल गया है  वर्तमान में अफगानिस्तान में भारतीय इंफ्रास्ट्रक्चर  प्रोजेक्ट स  के संबंध में कुछ करना आत्मघाती हो सकता है। अनुकूल वातावरण होने तक यथास्थिति बनाए रखना ही उचित होगा।</p>
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<strong>भारत पड़ोसी देशों में चाहता है अमन</strong></p>
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मानवीय मूल्यों के सम्मान के लिए भारत सहित कई देश रसद एवं अन्य मदद भेजना चाहते  हैं।  ऐसे में अफगानिस्तान में हर प्रकार की सहायता आवश्यक है। आर्थिक मार झेल रहे तालिबानी अभी सुधरने का दिखावा भी  कर सकते हैं।  ऐसी संभावनाएं भी है कि पाकिस्तान अपने अनैतिक इरादे लिए कुछ और भी नियोजित  कर सकता है। ऐसी संभावनाओं को समूल नष्ट करने के लिए चरण बद्ध तरीके से मानव अधिकारों का सम्मान करने की शर्तों पर ही आर्थिक एवं अन्य सहायता दी जानी चाहिए।</p>
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तालिबान को अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी सेना द्वारा छोड़े गए हथियार एवं अन्य साजो सामान के इस्तेमाल एवं किसी अन्य देश, अथवा किसी दल को देने पैर रोक लगाई जाए।  संयुक्त राष्ट्र संघ के संरक्षण में एक बहुदेशीय आब्जर्वर समूह का गठन कर तालिबानी गतिविधियों पैर पैनी नज़र रखी जाए। विश्व समुदाय को तालिबान को मानव अधिकार  के सम्मान एवं महिलाओं के प्रति क्रूरता पर रोक लगाने के लिए बाध्य  करना होगा।</p>
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<strong> लेखक: डॉ. डी. के. पान्डेय,</strong><strong> (ग्रुप कैप्टन से.नि. भारतीय वायु सेना) </strong><strong>गलगोटिया विवि में प्रोफसर हैं।</strong></p>
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Gyanendra Kumar

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