चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का अति महत्वाकांक्षी सपना 'प्रोजेक्ट ऑफ सेंचुरी' क्रा कैनाल में सिंक हो (डूब) चुका है। म्यांमार ने बीआरआई के सभी प्रोजेक्ट रद्द कर दिए हैं। थाईलैण्ड और म्यांमार ने चीन को ऐसी चोट मारी है कि शी जिनपिंग तो क्या नहीं चीन की आने वाली सरकारें सदियों तक इस दर्द को नहीं भूलेंगी। म्यांमार और थाईलैण्ड का दर्द झेल रहे शी जिनपिंग के सामने अब सीपेक (चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) को बचाने का संकट मुंह बाय खड़ा है। पाकिस्तान में सरकार और सेना के कट्टर दुश्मन टीटीपी और लश्करे झांगवी एक साथ मिल गये हैं।
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भारत से पंगा लेने वाले चीन को अब एक के बाद एक नई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। दुनिया में चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट का पर्दाफाश इतने बड़े पैमाने पर हो चुका है। चीन के जिगरी दोस्त भी बीआरआई प्रोजेक्ट से पल्ला झाड़ रहे हैं। थाईलैण्ड ने न केवल 72.4 करोड़ डॉलर की कीमत वाली दो पनडुब्बियों की खरीद भी टाल दी बल्कि चीन के अति महत्वाकांक्षी क्रा कैनाल प्रोजेक्ट को थाईलैण्ड ने रद्द कर दिया है।
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लगभग 130 किलोमीटर लंबा क्रा कैनाल प्रोजेक्ट शी जिनपिंग का ड्रीम प्रोजेक्ट था। अगर यह प्रोजेक्ट पूरा हो जाता तो चीन के जहाज सीधे साउथ चाईना सी से हिंद महा सागर पहुंच सकते थे। अगर ऐसा हो जाता तो चीन न केवल भारत पर भारी पड़ जाता बल्कि एशिया का बेताज बादशाह बन जाता। मलक्का स्ट्रेट का सी रूट चीन की सबसे बड़ी कमजोरी है। पूर्वी लद्दाख में तनाव के बीच इंडियन नेवी ने यहीं पर अपना जंगी बेड़ा तैनात कर दिया था। जंग के हालात में भारत और उसके मित्र देश मलक्का स्टेट पर नाकेबंदी से चीन के सप्लाई रूट को बंद कर सकते हैं। इसी रुट से चीन का 60 फीसदी व्यापार होता है। क्रा कैनाल को थाईलैण्ड ने कचरे के डिब्बे में डालने के साथ ही म्यांमार ने भी कोविड रिकवरी प्लान के बहाने चीन के ऐसे उन सभी प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया जो बीआरआई प्रोजेक्ट के तहत विकसित किए जाने वाले थे। थाईलैण्ड और म्यांमार से मार खाया चीन इतना बौखला गया है कि उसे चारों ओर युद्ध ही युद्ध दिखाई दे रहा है।
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चीन को युद्ध का एक खतरा पाकिस्तान के भीतर से भी दिखाई दे रहा है। क्यों कि जिस पाकिस्तान में (सीपेक पर ) चीन 73 बिलियन डॉलर से ज्यादा खर्च कर चुका है और अरबों डॉलर जिस पाकिस्तान को नकद दे चुका है उसी पाकिस्तान में तालिबान मोर्चे पर आ खड़ा हुआ है। ध्यान रहे, यह तालिबान अफगान तालिबान से अलग है। इस तालिबान को तहरीक-ए-तालिहबान-पाकिस्तान या टीटीपी कहा जाता है। टीटीपी, पाकिस्तान सरकार के खिलाफ ही आतंकी वारदतों को अंजाम देता है। पेशावर के आर्मी स्कूल पर पाकिस्तान तालिबान का सबसे बड़ा आतंकी हमला था। उसके बाद तत्कालीन आर्मी चीफ राहिल शरीफ ने पाकिस्तानी तालिबान के खिलाफ रद्दुल फसाद नाम का ऑप्रेशन चलाया और इस संगठन को लगभग निष्क्रिए कर दिया था।
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बताया जा रहा है कि तीन गुटों में विभाजित टीटीपी अब इकट्ठे हो गये हैं। जमात-उद-अहरान, और हिज्ब उल-अहरार के साथ हकीमुल्लाह महसूद भी आ गया है। चीन और पाकिस्तान के लिए सबसे बड़े सिर दर्द की यह बात है कि टीटीपी के यह तीनों गुट बलूचिस्तान के खूंखार संगठन लश्कर-ए-झांगवा से साथ मिल गये हैं। इस तरह अब लश्कर-ए-झांगवी इतना शक्तिशाली हो गया है कि उसे रोक पाने की ताकत और हिम्मत न तो पाकिस्तान सरकार में है और न ही सेना में। टीटीपी पाकिस्तान सरकार के खिलाफ बड़ा आतंकी हमला करने वाला है। उस के निशाने पर चीन के पैसों से बन रहे सीपेक के कई प्रोजेक्ट हैं। टीटीपी उस ग्वादर पोर्ट पर भी हमला कर सकता है जहां चीनी नेवी की टुकड़ी तैनात है।
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पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल बाजवा, विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी और खुद पाकिस्तान के पीएम इमरान खान ने चीन यात्रा के दौरान शी जिनपिंग को इस खतरे से अवगत कराते हुए मुकम्मल हिफाजती इंतजाम की दरख्वास्त की थी। हालांकि चीन ने सीपेक की हिफाजत के इंतजाम भी किए हैं, लेकिन इससे भी खतरा टला नहीं बल्कि बढ़ गया है। क्यों कि जो सीपेक की हिफाजत में जो सुरक्षाबल हैं वो स्थानीय जनता के निशाने पर हैं और उनकी लगातार मुखबरी हो रही है। इस तरह चीन को सीपेक के आस-पास के इलाकों की आवाम और टीटीपी जैसे खूंखार संगठन से लोहा लेना और सीपेक को महफूज रख पाना मुश्किल लग रहा है।
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ताईवान, हांगकांग, मलेशिया, इंडोनेशिया फिलीपींस ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को अपनी आक्रामक नीतियों से परेशान करने वाले चीन को पाकिस्तान और थाईलैण्ड में जोर की ठोकर लगी है। भारत के खिलाफ पाकिस्तान को खड़ा करने की शी जिनपिंग की रणनीति पर टीटीपी पलीता लगा दिया है तो म्यांमार के अलावा थाईलैण्ड ने क्रा कैनाल  जैसे प्रोजेक्ट रद्द शी जिनपिंग के खतरनाक मंसूबों को ध्वस्त कर दिया है।
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