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चीन-पाकिस्तान के चयन के बाद संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की साख पर उठे सवाल

चीन-पाकिस्तान के चयन के बाद संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की साख पर उठे सवाल

क्या संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) पूरी तरह अप्रासंगिक हो गई है? क्या यह विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरह अपनी विश्वसनीयता खो चुका है? यह प्रश्न उठना लाजिमी है, क्योंकि चीन और पाकिस्तान का खराब मानवाधिकार रिकॉर्ड रहा है और इसके बावजूद दोनों देशों को बुधवार की रात संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में दोबारा चुन लिया गया है।

मानवाधिकार परिषद, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर एक अंतर-सरकारी निकाय है, जो क्षेत्रीय समूह के आधार पर तीन साल की शर्तों के लिए चुने गए 47 राष्ट्रों से बना है। इसमें सभी विषयगत मानव अधिकारों के मुद्दों और स्थितियों पर चर्चा करने की क्षमता है, जिस पर पूरे वर्ष इस संबंध में ध्यान बनाए रखने की भी जिम्मेदारी है। यह कहा जा सकता है कि इसके सदस्य देश दुनिया भर के सभी मानवाधिकारों के संवर्धन और संरक्षण के लिए जिम्मेदार हैं।

अब आप चीन और पाकिस्तान की कल्पना कीजिए, जो खुद दुनिया के सबसे खराब मानवाधिकार अपराधी माने जाने वाले देश हैं। क्या कहीं से भी ऐसा लगता है कि ये देश समाज की 'रक्षा' और 'मानवाधिकारों को बढ़ावा' देने जैसे कार्यों के लिए गंभीर हो सकते हैं!

चीन और उसके समर्थक बेशक यह दर्शाएंगे कि चीन फिर से इसमें जगह बनाने में कामयाब हो गया। मगर यह भी देखने वाली बात है कि चीन को इस बार सदस्य देश बनने के लिए कुल 139 अंक प्राप्त हुए, जबकि पिछली बार 2016 में उसे 180 अंक प्राप्त हुए थे। यानी चीन पर विश्वास जरूर घटा है, इसलिए उसे अबकी बार 41 अंकों की गिरावट का सामना करना पड़ा है। इससे यह स्पष्ट होता है कि चीन की छवि वास्तव में हाल के दिनों में बिगड़ी है।

हर कोई जानता है और सोशल मीडिया पर भी यह ट्रेंडिंग में है कि चीन झिंजियांग, हांगकांग, तिब्बत या ताइवान के साथ क्या कर रहा है। उसे यहां रहने वाले लोगों के मानवाधिकारों की जरा सी भी परवाह नहीं है। हालांकि शी जिनपिंग शासन को दंडित करने के लिए यह पर्याप्त नहीं रहा, इसलिए वह दोबारा से सदस्य के तौर पर चुन लिया गया।

चीन के फिर से चुनाव ने साबित कर दिया है कि उइगरों, तिब्बतियों या हांगकांग के विरोधियों की आजादी की मांग शायद ही दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए मायने रखती है। ऐसा लगता है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के लिए तो इसका कोई महत्व ही नहीं है।

सोशल मीडिया पर भी चीन के चुनाव को लेकर लोग कटाक्ष कर रहे हैं। एक यूजर ने ट्वीटर पर लिखा, "उत्तर कोरिया को भी शामिल होने के लिए क्यों नहीं आमंत्रित किया? इससे भी बेहतर, हिटलर को यूएनएचआरसी का हिस्सा बनाने के लिए फिर से जीवित क्यों नहीं किया गया?"

जून महीने में 50 संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र विशेषज्ञों ने चीनी सरकार को मानवाधिकार उल्लंघनों को लेकर चेताया था। दुनिया के कई देशों ने शिनजियांग और तिब्बत में अल्पसंख्यक समूहों पर अत्याचार को लेकर चीन की आलोचना की। इसके अलावा हांगकांग में नए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के मानवाधिकारों पर पड़ने वाले बुरे असर पर चिंता व्यक्त की।

अमेरिका, कई यूरोपीय देशों, जापान और अन्य देशों ने चीन से कहा कि वह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रमुख मिशेल बेचलेट और स्वतंत्र पर्यवेक्षकों को शिनजियांग में जाने की निर्बाध रूप से अनुमति दे। साथ ही उइगुर मुस्लिमों और अस्पसंख्यक समुदाय के अन्य लोगों को कैद में बंद करना रोके।

इसके साथ ही शिनजियांग और तिब्बत में रहने वाले लोग चीन की ओर से किए जाने वाले धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों के सामूहिक दमन से परेशान होकर अपने मानवाधिकारों की बहाली की मांग कर रहे हैं।

वहीं हांगकांग भी चीन के साथ अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है और यहां रहने वाले लोग चीन के हस्तक्षेप को खत्म करने के लिए बड़े विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं।

अंत में यह सब भी वास्तव में चीन को शीर्ष मानवाधिकार निकाय में अपना रास्ता बनाने से नहीं रोक सका।

अमेरिका ने चीन को चुने जाने पर संयुक्त राष्ट्र निकाय की निन्दा की है। अमेरिका ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से 2018 में अमेरिका के हटने का फैसला सही साबित हुआ है। अमेरिका ने नाखुशी जाहिर करते हुए कहा कि मानवाधिकार परिषद के नियमों के तहत भौगोलिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों को सीट आवंटित की जाती हैं।.