अफगानिस्तान के हालात पहले से ज्यादा खतरनाक हो चुके हैं। तालिबान के सभी गिरोहों में आपस में मारकाट जैसी मची हुई है। पाकिस्तान साम-दाम-दण्ड-भेद किसी भी तरह अफगानिस्तान को अपने पंजे में जकड़ना चाहता है। इसी बीच एक पखबाड़े से ज्यादा हो चुका है, मुल्ला ब्रादर का कुछ अता-पता नहीं है। अफगानिस्तान की कुछ हद तक ही विश्वसनीय जर्नलिज्म करने वाला अल जजीरा चैनल भी मुल्ला ब्रादर पर खामोश है।
अल जजीरा को कुछ हद विश्वसनीय इसलिए कह सकते हैं क्यों कि वो कतर सरकार वित्तीय सहायता हासिल करता है और काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान के साथ अगर दुनिया का कोई मीडिया चैनल साथ-साथ घूम रहा था तो वो अल जजीरा ही था।काबुल में आईएसआई की कठपुतली सरकार बन रही तो भी सबसे ज्यादा भरोसेमंद अलजजीरा को माना जा रहा था।
अशरफगनी के भाग जाने के तुरंत बाद माना जाने लगा था कि अफगानिस्तान में अब मुल्ला ब्रादर तालिबान की कमान संभालेगा। अन्य डिप्टी लीडर के साथ शेर मुहम्मद अब्बास स्तानिक जई विदेश मंत्री होगा। काफी लंबी खींचतान के बाद जब पाकिस्तान को तालिबान अपने हाथ से खिसकता नजर आया तो आतंकियों के माई-बाप फैज हामिद काबुल पहुंचे और अमेरिका या भारत के प्रति कट्टर रुख रखने वालों के हाथ में सरकार की कमान दे दी।
मुल्ला ब्रादर और स्तानिक जई जैसे लोगों को साइड लाइन कर दिया गया। इतना ही नहीं जिस को लोग तालिबान का नया संस्कृति मिनिस्टर मान चुके थे, ऐलान भी हो चुका था कि जबीहउल्ला मुजाहिद नया संस्कृति मिनिस्टर होगा, लेकिन जब अंतरिम सरकार का ऐलान हुआ तो मुल्ला ब्रादर, स्तानिकजई के साथ जबीहउल्लाह मुजाहिद को भी डिप्टी बनाकर साइड लाइन कर दिया गया।
ऐसा कहा जाता कि ये तीनों और इनके सहायक ‘उदारवादी’ तालिबान माने जाते हैं। तीनों ही इनक्लूसिव सरकार के हिमायती हैं। यही वो खास तीन लोग हैं जिन्होंने दुनिया को भरोसा दिलाया था कि अफगानिस्तान में 20 साल पहले वाला दौर नहीं आएगा। अफगानियों को खुली हवा में सांस लेने का मौका मिलेगा। इन्हीं लोगों के वादे-भरोसे पर अमेरिका ने अफगानिस्तान से सेना हटाने का फैसला किया था। जैसे ही अमेरिकी सेनाएं अफगानिस्तान से बाहर गईं वैसे ही इन तीनों उदारवादी तालिबान नेताओं को साइड लाइन कर दिया गया। सत्ता की कमान भारत और अमेरिका विरोधी खूंखार कट्टरपंथी हक्कानी गुट के हाथों में चली गई।
मुल्ला ब्रादर और उनके सहयोगियों को इस तरह के व्यवहार की भनक नहीं थी। यह भी कहा जाता है कि मुल्ला ब्रादर, शेर अब्बास और उनके सहयोगी दोहा ऑफिस चले गए। कुछ कहते हैं कि मुल्ला ब्रादर और हक्कानी गुट में सत्ता पर कब्जे के लिए गोलीबारी भी हुई। इस गोलीबारी में मुल्ला ब्रादर गंभीर घायल हो गया। हक्कानी गुट ने उसे हिरासत में लेकर किसी गुप्त अस्पताल में भर्ती करा दिया है। इस थ्योरी की पंजशीर से भी पुष्टि हुई है। मगर कुछ लोग यह भी कह रहे हैं मुल्ला ब्रादर अब इस दुनिया में नहीं है। इसके विपरीत तालिबान के एक प्रवक्ता सोहेल शाहीन ने कहा है कि मुल्ला ब्रादर पूरी तरह स्वस्थ्य है। सोमवार की शाम को तालिबान की ओर एक संदिग्ध ऑडियो टेप भी जारी किया गया। दावा किया गया कि टेप में आवाज मुल्ला ब्रादर की है।
मगर मुल्ला ब्रादर के पहले की वीडियो और सोमवार की शाम जारी किए गए टेप की आवाज में जमीन-आसमान का फर्क नजर आ रहा था। आश्चर्यजनक तौर पर अल जजीरा ने मुल्ला ब्रादर की गुमशुदगी या मौजूदगी के बारे में चुप्पी साध रखी है। सोशल मीडिया पर जरूर तमाम तरह के दावे किए जा रहे हैं।
यहां यह भी ध्यान देने वाली बात है कि जो मुल्ला ब्रादर और शेर अब्बास दोहा में रह कर चीन-अमेरिका-रूस या भारत से बात-व्यवहार कर रहे थे वो कतर के डिप्टी पीएम मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल थानी के काबुल दौरे के वक्त नदारद थे। खबरें तो ये भी हैं कि मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल थानी अचानक काबुल यही देखने पहुंचे थे कि तालिबान ने जो मुहायदे किए थे उनका पालन हो रहा है या नहीं। काबुल के हालात देखकर मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल थानी ने मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद और उसकी कैबिनेट को जमकर लताड़ लगाई। इस लताड़ का कितना असर हुआ यह अभी तक पता नहीं चला है, लेकिन हक्कानी गुट तालिबान सरकार पर हावी जरूर हो रहा है।
इन सभी बातों के बीच लाख टके का सवाल बना हुआ है कि आखिर मुल्ला ब्रादर कहां है? अगर मुल्ला सही सलामत ब्रादर कहीं से नमूदार हो जाता है तो माना जाएगा तालिबान विरोधी गुट अफवाहें फैला रहा है, लेकिन मुल्ला ब्रादर सही सलामत नहीं है, अगर वो जख्मी भी है तो ये हालात अफगानिस्तान ही नहीं बल्कि पूरे रीजन के लिए चिंता की बात होगी। खास तौर पर चीन के लिए, क्यों कि शिनजियांग में ईस्ट तुर्किस्तान मूवमेंट के हथियारबंद गुटों पर पाबंदी का मुहायदा मुल्ला ब्रादर ने ही किया था, किसी हक्कानी ने नहीं।