विजयाधशमी पर संघ मुख्यालय पर संघ प्रमुख मोहन भागवत के संबोधन से देश द्रोहियों और पड़ोसी पाकिस्तान में खलबली मच गई है। मोहनभागवत ने एक वर्ग विशेष की जनसंख्या वृद्धि और दुष्टों को सबक सिखाने के लिए शक्ति सामर्थ्य हासिल करने का आह्वान किया है। संघ प्रमुख ने 370 हटाने के बाद कश्मीर में हो रहे डेवलपमेंट का जिक्र किया। मोहनभागवत ने कहा कि जिस तरह मतांतरित मुसलमान हमारे अपने हैं उसी तरह हिंदु-मुसलमानों के पूर्वज एक हैं। हमें पदाक्रांत करने वाले मुगल आक्रांता हिंदुस्तानी मुसलमानों के पूर्वज नहीं हो सकते। मोहन भागवत ने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया लेकिन चीन और पाकिस्तान को इशारों ही इशारों में चेतावनी भी दे डाली है। ध्यान रहे, पाकिस्तान के पीएम इमरान खान हर बात में संघ को बीच में ले आते हैं और स्यापा करने लगते हैं। मोहनभागवत ने कहा कि देश की युवा पीढ़ी को भारत के इतिहास का ज्ञान होना चाहिए ताकि उससे सीखकर आगे बढ़ा जा सके।
संघ प्रमुख मोहन भागवत का भाषण
अपने संबोधन के दौरान मोहन भागवत ने कहा कि यह वर्ष हमारी स्वाधीनता का 75वां वर्ष है। 15अगस्त 1947 को हम स्वाधीन हुए। हमने अपने देश के सूत्र देश को आगे चलाने के लिए स्वयं के हाथों में लिए। स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर हमारी यात्रा का वह प्रारंभ बिंदु था। हमें यह स्वाधीनता रातों रात नहीं मिली। स्वतंत्र भारत का चित्र कैसा हो इसकी, भारत की परंपरा के अनुसार समान सी कल्पनाएँ मन में लेकर, देश के सभी क्षेत्रों से सभी जातिवर्गों से निकले वीरों ने तपस्या त्याग और बलिदान के हिमालय खड़े किये।
उन्होंने इस दौरान कहा, देश के विभाजन की टीस अभी तक गई नहीं है। वह अत्यंत दुखद इतिहास है। लेकिन इस इतिहास का सामना करना चाहिए। खोई हुई एकता और अखंडता को दोबारा लाने के लिए इस इतिहास को जानना चाहिए। उस इतिहास को विशेषकर नई पीढ़ी को जानना चाहिए, ताकि उसकी पुनरावृत्ति न हो। खोया हुआ वापस आ सके। पहले हमने अपने स्व, स्वजनों को भुला दिया तो भेद जर्जर हो गए। इसलिए दूर देशों से मुठ्ठी भर लोग आए और हम पर आक्रमण कर दिया। ऐसा एक बार नहीं बार-बार हुआ। ब्रिटिशों के अपने यहां राजा बनने तक यही इतिहास हुआ।
व्यवस्था तो व्यवस्था है, लेकिन व्यवस्था बदलने के साथ-साथ या उसके पहले मन बदलना चाहिए। मन से वचन, कर्म और वाणी में प्रकट होती है। इसलिए उस व्यवस्था के साथ-साथ इस मन को बदलने का प्रयास होना चाहिए। संघ के स्वंयसेवक सब तरह के प्रयास करते हैं। समाज के भेद बढ़ाने वाली भाषा नहीं चाहिए, जोड़ने वाली भाषा चाहिए। हर प्रसंग पर भाष्य करते समय प्रेम को बढ़ाने वाली भाषा होनी चाहिए।
बता दें कि यह आयोजन कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए किया जा रहा है। इस बार सिर्फ 200 लोगों ने ही इसमें हिस्सा लिया है। विजयादशमी के दिन 1925 में संघ की स्थापना हुई थी। इस दिन संघ की शाखाओं पर स्वयंसेवक शक्ति के महत्व को याद रखने के लिए प्रतीकात्मक रूप से शस्त्र पूजन करते हैं।