अफगानिस्तान में जब तालिबान ने कब्जा किया था तो इससे अगर सबसे ज्यादा कोई खुश था तो वो है पाकिस्तान। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को जब जब मौका मिला तब-तब वो विश्व मंच पर तालिबान सरकार को मान्यता दिलाने के लिए चिल्लाए। लेकिन, आज आलम यह है कि इसी तालिबान के चक्कर में पाकिस्कान खून के आंसू रो रहा है। दोनों की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई है। पाकिस्तान के साथ चीन का भी तालिबान की वापसी में हाथ रहा है। अब चीन ने पाकिस्तान को अलग कर पूरी तरह से अफगानिस्तान में अपनी घुसपैठ कर ली है। चीन इस वक्त अफगानिस्तान में तालिबान को लालच देकर तेजी से पैर पसार रहा है।
चीन ने अभी तक तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी है, लेकिन अफगानिस्तान में वह अपने पांव तेजी से पसारता जा रहा है। अमेरिका और पूरे पश्चिमी देश इस वक्त यूक्रेन और रूस जंग में बीजी हैं और इसी मौके का फायदा उठाते हुए चीन अफगानिस्तान में अपनी पैठ मजबूत कर रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता को मजूबत करने में चीन मददगार बन गया है। पर्यवेक्षकों का कहना है कि चीन का मकसद अफगानिस्तान में आतंकवादी गुटों- खास कर ईस्ट तुर्केस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ईटीआईएम) का फैलाव रोकना है। अतीत में ईटीआईएम चीन के शिनजियांग प्रांत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दे चुका है।
चीन ने हाल में अपने तुन्क्शी शहर में अफगानिस्तान के पड़ोसी देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक आयोजित की। उसमें रूस, पाकिस्तान, ईरान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के विदेश मंत्रियों ने हिस्सा लिया। बैठक में चीन ने अफगानिस्तान को मानवीय सहायता पहुंचाने की खास अपील की। लेकिन जानकारों की राय है कि चीन का असल मसकद मानवीय मदद पहुंचाना नहीं है। बल्कि उसका ध्यान इस पर है कि सीमा पार से उसके यहां आतंकवादी ना आएं।
तालिबान को अपने पक्ष में रखने की रणनीति के तहत चीन ने अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना को अफगानिस्तान तक ले जाने का प्रस्ताव रखा है। उसने कहा है कि इससे अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में मदद मिलेगी। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने पिछले 25 मार्च को अचानक काबुल की यात्रा की। उसी दौरान उन्होंने बीआरआई से संबंधित अपना प्रस्ताव रखा। बताया जाता है कि इस प्रस्ताव से तालिबानी नेता काफी खुश हैँ।