मौजूदा समय में देखा जाय तो भारत की युवा पीढ़ी जातिवाद से आगे बढ़ चुकी है। युवाओं को जात-पात में कोई दिलचस्पी नहीं है। अगर है को अपने भविष्य की फिक्र, जिसके लिए वो रात दिन मेहनत कर रहे हैं। लेकिन, कुछ कट्टरपंथी आज भी ऐसे हैं जो जात-पात के नाम पर राजनीति कर रहे हैं और उनकी यही रोजी-रोटी भी है। कई मुस्लिम कट्टरपंथियों का तो यह तक कहना है कि मुस्लिम महिलाओं को घर से बाहर नहीं निकलने देना चाहिए। उन्हें चारदीवारी के अंदर बंद कर बाहरी सुविधाओं से वंचित कर के रखना चाहिए। ऐसे लोगों के मुंह पर मुमताज खान ने करारा तमाचा जड़ा है। जो मुस्लिम कट्टरपंथी महिलाओं को लेकर ये सोच रखते हैं उनके लिए यह किसी सबक के कम नहीं है। क्योंकि, मुमताज खान को भारतीय महिला हॉकी टीम ने जूनियर विश्व कप के सेमीफाइनल में 'द प्लेयर ऑफ द मैच' से सम्मानित किया गया है।
भारतीय महिला हॉकी टीम ने जूनियर विश्व कप के सेमीफाइनल में धमाकेदार एंट्री कर ली है। दक्षिण अफ्रीका में भारतीय टीम ने क्वार्टर फाइनल में दक्षिण कोरिया को 3-0 से हराया जिसमें मुमताज खान को द प्लेयर ऑफ द मैच से सम्मानित किया गया। वह इस पूरे टूर्नामेंट में तीसरे दौर की खिलाड़ी थीं और उन्होंने अब तक 6 गोल किए हैं। उनकी उपलब्धि उन रूढ़ियों को तोड़ती है जो कहती हैं कि भारत में मुस्लिम प्रतिभा को दबाया जाता है, साथ ही यह उन लोगों के लिए एक बड़ा सबक है जो मुस्लिम लड़कियों को घर की दीवारों के पीछे कैद रखना चाहते हैं।
19 वर्षीय मुमताज खान भारत की एक नई उभरती हुई महिला हॉकी खिलाड़ी हैं। वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करीब 40 मैच खेल चुकी हैं। मुमताज ने अपने करियर की शुरुआत अंडर-18 एशिया कप में भारतीय टीम के साथ की थी। जहां उनकी टीम ने कांस्य पदक जीता। इसके बाद उन्होंने अंडर-18 यूथ ओलंपिक में अपने शानदार प्रदर्शन को दोहराया और भारतीय टीम सिल्वर मेडल जीतने में सफल रही. हालांकि मुमताज का सपना ओलिंपिक में भारत के लिए मेडल जीतना है।
नवाबों के शहर लखनऊ की रहने वाली मुमताज बेहद साधारण परिवार से आती हैं। उसके पिता हफीज खान सब्जी की दुकान चलाते हैं। जहां भी उनकी पत्नी कैसर उनकी मदद करती हैं। 8 लोगों के बड़े परिवार का भरण-पोषण करने के लिए दोनों ही प्रतिदिन केवल 300 रुपये ही कमा पाते हैं। परिवार में मुमताज के अलावा उनकी पांच बहनें और एक छोटा भाई है। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण मुमताज 12वीं तक ही पढ़ पाई और उसके बाद उनका चयन हॉकी के लिए हो गया। हालांकि, मुमताज के लिए पोटचेफस्ट्रूम का सफर इतना आसान कभी नहीं रहा।
पिता हाफिज खान कहते हैं, ''मुमताज़ को बचपन से ही हॉकी का शौक रहा है। वह हमेशा हॉकी और दौड़ प्रतियोगिताओं में अव्वल रही। मुमताज की हॉकी यात्रा 2011 में आगरा में चल रही प्रतियोगिता में भाग लेने के बाद शुरू हुई, जहां कोच नीलम सिद्दीकी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें प्रशिक्षण के लिए लखनऊ के केडी सिंह बाबू स्टेडियम भेजा। ट्रायल के बाद मुमताज ने ही सिद्दीकी को हॉकी के गुर सिखाए। वह अपनी बेटी की इस कामयाबी को किसी ईद से कम नहीं मानते। उनका कहना है कि इस साल ईद हमारे लिए जल्दी आ गई है। मुमताज की सफलता से न सिर्फ उनका परिवार बल्कि पूरा लखनऊवासी भी गौरवान्वित महसूस कर रहा है। दूसरी ओर, मुमताज की मां कैसर जहां शुरू में मुमताज के खिलाफ थीं। वह कहती हैं कि 'मुझे बहुत गर्व होता है कि मेरी बेटी देश के लिए खेल रही है। उनकी वजह से हमें काफी सम्मान मिल रहा है।
लोग अक्सर मुझे पांच बेटियां होने के लिए ताना मारते थे। लेकिन आज मेरी बेटी ने मुझे गौरवान्वित किया है। वह मुमताज को 100 बेटों के बराबर मानती हैं। वह कहती हैं, 'मेरा हमेशा से मानना था कि खाली समय में उन्हें सब्जियां बेचकर अपने पिता को थोड़ा आराम देना चाहिए था। लेकिन, उनके दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत ने आज हम सभी को गलत साबित कर दिया।” वह कहती हैं, "आज भी लोग बेटे के बिना परिवार को अधूरा मानते हैं, लेकिन बेटियां अल्लाह का दिया हुआ एक स्वर्गीय उपहार है जिसे मुमताज ने साबित किया है।" अपनी हॉकी स्टिक की मदद से, मुमताज ने पुराने पितृसत्तात्मक रवैये का करारा जवाब दिया और साबित किया कि बेटियां किसी भी तरह से बेटों से कम नहीं होती हैं। बेटियां भी एक दिन वो सब हासिल कर सकती हैं जो बेटों से उम्मीद की जाती है।