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Pentagon में इंडिया की डायरेक्ट एंट्री, चौखट की झलक देखने को तरसते हैं चीन और पाकिस्तान

अमेरिका की रक्षा की रीढ़ कहे जाने वाले पेंटागन में भारत की एंट्री

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद से विश्व में भारत की एक अलग पहचान बनी है। आज भारत के साथ दुनिया के महाश्किशाली देश रिश्ता मजबूत करने पर लगे हैं। चाहे वो अमेरिका हो, फ्रांस, जर्मनी, जापान या फिर कोई और बड़ा देश हर कोई भारत के साथ अपने रिश्ते मजबूत करने पर लगा है। जब दुनिया में कोई बड़ी आपदा आ रही है तो लोग भारत की ओर देख रहे हैं। कोरोना महामारी में भारत ने पूरी दुनिया को वैक्सीन की सप्लाई की। छोटे देशों की लगातार मदद कर रहा है। यहां तक कि अमेरिका भी भारत के साथ रिश्ता मजबूत करने पर लगा है। अब अमेरिका और भारत के संबंधों में एक बड़ा डेवलपमेंट देखने को मिल रहा है। इससे ये साबित हो जाता है कि भारत अब विश्व गुरु बनने से ज्यादा दूर नहीं है। अमेरिका की रक्षा की रीढ़ कहे जाने वाले पेंटागन में भारत को एंट्री मिल गई है। दरअसल, अमेरिका के रक्षा मंत्रालय ने भारतीय रक्षा अताशे को अब बिना किसी रोक-टोक (अनएस्कॉर्ट) पेंटागन में जाने की इजाजत दी है।

रक्षा अताशे आमतौर पर राजनयिक मिशन से संबद्ध एक सैन्य विशेषज्ञ होता है। अमेरिकी वायु सेना के सेक्रेटरी फ्रैंक केन्डाल ने बताया कि ये एक बहुत बड़ा फैसला है। उन्होंने कहा, 'अगर किसी को लगता है कि पेंटागन में बिना बाधा पहुंचना आम बात है तो मैं बता दूं कि मैं भी वहां बिना एस्कॉर्ट के नहीं जा सकता। दो मंजिला अंडरग्राउंड फ्लोर समेत पांच मंजिला और पांच कोणों वाली ये बिल्डिंग वॉशिंगटन डीसी के पास वर्जीनिया में स्थित है। इसी में अमेरिकी सेना, नौसेना और एयरफोर्ट का ऑफिस भी है। ये सबसे बड़ी बिल्डिंग्स में से एक है। इसे द्वित्तीय विश्वयुद्ध के दौरान (1941-43) के बीच बनाया गया।

25 हजार लोग कर सकते हैं काम

पेंटान को बनाने के लिए सबसे पहले अरलिंगटन फार्म को चुना गया, जो उसके आकार का था। हालांकि, बाद में इसके निर्माताओं को पता चला कि इससे अर्लिंगटन नेशनल कब्रिस्तान और वाशिंगटन का व्यू ब्लॉक होगा। इस समत तक पांच कोणों वाला आकार निश्चित हो चुका था और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूसवेल्ट ने भी इसके लिए मंजूरी दे दी थी। बाद में एक नई साइट हूवर फील्ड्स को चुना गया।  रुसवेल्ट ने भी कहा था कि उन्हेंन ये डिजाइन काफी पसंद है, क्योंकि इससे पहले ऐसा कुछ नहीं बना था। नेशनल कब्रिस्तान का ब्लू ब्लॉक न हो इसी के चलते ईसकी ऊंचाई 77 फीट पर रोक दी गई थी। विश्वयुद्ध को दौरान सैन्य दफ्तर को एक केंद्र से जोड़ना अमेरिका के लिए काफी अहम हो गया था। सिर्फ आठ महीनों में ही पेंटागन इतना बड़ा आकार का बन गया कि तत्कालीन सेक्रेटरी ऑफ वॉर हेनरी स्सिमसन ने अपने दफ्तर को यहां शिफ्ट कर दिया था। इसे 13,000 से भी ज्यादा श्रमिकों ने दिन-रात कर बनाया। ये कितना बड़ा है इसका अंदाजा इसी से लगा लें कि इसके बीच में पांच एकड़ का पार्क है। एक रिपोर्ट के मुताबकि इसे बनाने में 83 मिलियन डॉलर लगा। उस समय की ये सबसे बड़ी ऑफिस बिल्डिंग था। 29 एकड़ में बनाए गए पेंटागन में 25 हजार लोग काम कर सकते हैं।

डिजाइन के कारण 9/11 हमले में पेंटागन सुरक्षित बच सका

अमेरिका में हुए 9/11 आतंकी हमले में 184 लोगों की जान गई थी, जिसमें से 120 पेंटागन के कर्मचारी थे। सबसे बड़ा एक संयोग यह है कि जिस दिन यह हमला हुआ इसी तारीख को इसका निर्माण शुरू हुआ था। दरअसल, पेंटागन बिल्डिंग का निर्माण 11 दिसंबर 1941 को शुरू हुआ था और इसी तारीख के 60 साल बाद 9/11 को हमला हुआ. इस दौरान अमेरिकी एयरलाइंस को हाइजैक कर ओसामा बिन लादेन के आतंकियों ने पेंटागन बिल्डिंग पर क्रैश करा दिया। विमान के क्रैश होने के चलते पहले फ्लोर तक बिल्डिंग का एक हिस्सा टूट गया था। इस हमले में पेंटागन सुरक्षित बच सका इसके पीछे विशेषज्ञों का मानना है इसी डिजाइन। वरना काफी बड़ा हादसा हो सकता है।