अरुणेंद्र कुमार,रेलवे बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष
आज देहरादून से दिल्ली के बीच चलने वाली 17वीं वंदे भारत (VB) एक्सप्रेस का उद्घाटन किया गया। अगले कुछ दिनों में देश उत्तर पूर्व में 18वीं वंदे मातरम एक्सप्रेस का गवाह बनेगा। सवाल है कि यह ट्रेन इतनी ख़ास क्यों है कि जब भी कोई वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखायी जाती है,इसकी चर्चा उत्सुकता से होने लगती है और उसी हैरानी के साथ उसका विश्लेषण भी किया जा रहा होता है ? ज़ाहिर है कि इसका कारण यह है कि यह राइजिंग इंडिया के सपने और आकांक्षाओं से पूरी तरह मेल खाता है। पिछले बीस वर्षों में भारतीय रेल पर यात्री कोचों पर नये डिज़ाइन को लेकर एक सूखे की स्थिति थी । उस सुखाड़ में वंदे भारत एक्सप्रेस किसी रिमझिम बारिश की तरह है।
जहां ऑटो सेक्टर लगभग हर साल नई पेशकशों का गवाह बन रहा था, वहीं रेलवे केवल एलएचबी कोचों की संख्या को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा था। जब वंदे मातरम को सामने लाया गया, तो सही मायने में भारतीय रेलवे और यात्रियों के लिए विकास की एक बड़ी छलांग थी। ऐसा नहीं कि यह एक वायुगतिकीय फ्रंट प्रोफाइल वाली थोड़ी देर की एक चमक-दमक वाली ट्रेन थी। यह जल्दी से प्रगति का प्रतीक और भारतीय रेलवे का गेम चैंजर बन गयी।
यह सब पीएम मोदी के गतिशील नेतृत्व और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव की निगरानी में संभव हो सका। भारतीय रेलवे ने बदलाव को लेकर पारंपरिक रूप से थोड़े-थोड़े आगे बढ़ने वाले दृष्टिकोण को पीछे छोड़ दिया, क्योंकि ज़रूरी प्रभाव छोड़ने में वह दृष्टिकोण विफल रहा था। चेन्नई की प्रमुख निर्माण इकाई ICF, वंदे भारत शैली की ट्रेनों का पहला संस्करण लेकर आयी। प्रमुख रेल कोच प्लेयरों के बीच यह ट्रेन मोहक और आकर्षक दिखायी दे रही थी। द मेक इन इंडिया गतिशीलता ने इस राह को और सरल बना दिया और जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी,उसे वास्तविकता का रूप दे दिया । भारतीय रेलवे को पता था कि भूमि अधिग्रहण के मुद्दों के कारण एक नया कारखाना स्थापित कर पाना एक बड़ी चुनौची बन जाता है। इसलिए. भारतीय रेलवे ने विनिर्माण मॉडल पर फिर से काम किया और बीडिंग दस्तावेजों में निजी कंपनियों को इसके निर्माण के लिए आधार के रूप में उत्पादन इकाइयों की अपनी स्वयं की बुनियादी सुविधायें प्रदान कीं। यह सोने पर सुहागा इसलिए था, क्योंकि निजी क्षेत्र के निवेश अब उत्पाद पर केंद्रित हो सकते हैं। विशेष रूप से लुक और फील सबसे पहले था और ऐसा होना भारतीय रेलवे के लिए चमत्कार से कम नहीं था।
वंदे भारत की गति भी अपनी विशिष्टिताओं में ख़ास थी। 16 कोच वाली इंजन रहित ट्रेन शून्य से 100 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से सिर्फ 52 सेकंड के भीतर चल ससकती है। ब्रेक लगाने के दौरान भी यह क्षमता इसी तरह बनी रही। इस हक़ीक़त सराहनीय रही। दिल्ली से देहरादून तक शताब्दी में 6 घंटे 10 मिनट लगते हैं, जबकि वंदे भारत 4 घंटे 45 मिनट में ही यह यात्रा पूरी कर लेती है, 315 किलोमीटर की इतनी कम दूरी में यात्रा के समय में 1 घंटे 25 मिनट की भारी कमी आती है। समय में कमी की कहानी अन्य सभी 16 मार्गों में इसी तरह की है। दिल्ली वाराणसी रूट पर ऑक्यूपेंसी 99% से ज़्यादा है। उसी तरह सवारी यात्रा करते समय किसी तरह का झटका भी महसूस नहीं करते। इस तरह का एहसास शताब्दी एलएचबी कोचों में आम था। इसमें कोच इंटीरियर्स, बायो टॉयलेट्स, इंफोटेनमेंट, स्वचालित प्लग वाले दरवाज़ों के साथ बेहतर माहौल था। ये तमाम विशेषतायें बताती हैं कि आख़िर वंदे भारत भारतीय रेलवे की प्रगति का प्रतीक क्यों है।
इस प्रारंभिक सफलता के बाद भारतीय रेल अपनी ख्याति के लिहाज़ से यहीं नहीं रुकती। वंदे भारत के और संस्करण आने वाले हैं। हमें जल्द ही वंदे भारत के स्लीपर बर्थ डिज़ाइन के साथ संशोधित किया जायेगा, जिससे दिल्ली से मुंबई, चेन्नई या कोलकाता की रात भर की यात्रा संभवत: और भी बहुत कम समय में हो सकेगी। इसके बाद स्टील की जगह पैसेंजर कोच शेल निर्माण में एल्युमिनियम एलॉय का उपयोग किया गया है। और भारतीय रेलवे और एक रूसी कंपनी के JV को दिए गए 120 रेक की हालिया निविदा से यह भी पता चलता है कि बेहतर हल्के वजन वाले एल्यूमीनियम कोचों के निर्माण की लागत में और कमी आयेगी। इस अनुबंध के लिए आठ अंतर्राष्ट्रीय बोलीदाता थे।
करिश्माई पीएम मोदी के नेतृत्व में भारतीय रेलवे विकास के लिहाज़ से वैश्विक कंपनियों के आकर्षण का केंद्र बन गया है।
वंदे भारत को चलाने के हाल के अनुभव ने ट्रैक पर मवेशियों के भटकने पर वंदे भारत के कप्लर्स को नुक़सान की घटना को भी दिखाया। भारतीय रेलवे पर इस तरह की घटनायें दुर्लभ तो नहीं हैं, लेकिन वंदे भारत की उच्च गति के कारण नये सिरे से इस पर विचार किया जा रहा है। नए संस्करणों में कैटल गार्ड्स होंगे, जो टकराव की अधिक ऊर्जा को अवशोषित करेंगे और ट्रैक पर जानवरों को घसीटने से बचा पायेंगे।
अगला क़दम निर्यात बाज़ार में उतरना है। इसके लिए प्राथमिक बाधा विदेश में विभिन्न रेल गेज का होना है। भारतीय रेलवे में रेल के बीच की दूरी 1676 मिमी होती है, जबकि अधिकांश विकासशील देशों में यह दूरी 1435 मिमी गेज की होती है। स्पष्ट रूप से इस लिहाज़ से यह नया संस्करण ICF, MCF, RCF और RDSO के लिए एक ऐसा अवसर होगा।ये भारतीय रेलवे के प्रमुख संगठन हैं। बहुत जल्द यह विदेश में यह भारती रेल चलती हुई दिखेगी।
वंदे भारत कोई प्रयोग नहीं है। यह एक वास्तविकता है। यह श्वेत सुंदर ट्रेन विश्व को दिया जाने वाला भारत की शांति और प्रगति का संदेश भी है। इसमें संपूर्ण परिकल्पना का समावेश है। इसकी सार्वभौमिक स्वीकृति अद्वितीय है और देशवासियों का ध्यान ख़ासकर इस पर तुरंत तब जाता है, जब हम सुनते हैं कि एक और रास्ता खुल रहा है। वंदे भारत के बिना आज भारतीय रेलवे को लेकर होने वाली कोई भी चर्चा पूरी नहीं होती।