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 दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल में उत्तर भारत का पहला Skin Bank

नई दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल में उत्तर भारत का पहला स्किन बैंक जलने, चोट लगने, त्वचा कैंसर और अल्सर से पीड़ित रोगियों की मदद करेगा (फ़ोटो: सौजन्य: Twitter/@SJHDELHI)

नई दिल्ली के प्रमुख सरकारी संस्थानों में से एक सफ़दरजंग अस्पताल आजकल ख़बरों में है, क्योंकि यहां न केवल राजधानी, बल्कि उत्तर भारत का पहला स्किन बैंक खुल गया है। यहां ज़रूरतमंद मरीज़ों की मदद के लिए मृतक दाताओं की त्वचा को संग्रहित किया जायेगा।

इस बैंक का उद्घाटन एसएच के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. बी.एल. शेरवाल ने किया। इसे एक महत्वपूर्ण अवसर बताते हुए उन्होंने कहा: “यह स्किन बैंक इस अस्पताल की उपब्धियों में एक और उपलब्धि है। दान की गयी त्वचा, जल जाने के इलाज में बहुत मददगार होगी, विशेष रूप से व्यापक रूप से जलने वाले और अन्य घावों वाले रोगियों के लिए तो यह बेहद अहम होगी।

इस समय भारत में 16 स्किन बैंक हैं, जिनमें से सात महाराष्ट्र, चार चेन्नई, तीन कर्नाटक और एक-एक ओडिशा और मध्य प्रदेश में हैं।

मीडिया से बात करते हुए बर्न एंड प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. शलभ कुमार ने कहा कि पहले लोग उन्हें त्वचा दान के लिए बुलाते थे, लेकिन वे इस पर कार्रवाई करने में असमर्थ होते थे। इस बैंक की स्थापना से अब काफ़ी मदद मिलेगी।

भारत में हर साल सात से एक करोड़ लोग झुलस जाते हैं और इनमें से 1.4 लाख लोग अपनी जान गंवा देते हैं, जबकि 1.5 लाख विभिन्न विकृतियों का शिकार हो जाते हैं। कैडेवरिक त्वचा मृत्यु दर को कम करने और इन रोगियों की उत्तरजीविता दर को बढ़ाने में मदद करेगी। यदि गंभीर रूप से जली हुई या क्षतिग्रस्त त्वचा को त्वचा के विकल्प से नहीं कवर किया जाता है, तो इससे संक्रमण हो सकता है।

जलने के मामलों के अलावा, स्किन ग्राफ्टिंग से त्वचा के संक्रमण, त्वचा के अल्सर, बड़े घावों और उन लोगों को भी मदद मिलेगी, जो मोहस सर्जरी जैसे त्वचा कैंसर के उपचार से गुज़रे हैं।

स्किन ग्राफ्टिंग की प्रक्रिया के बारे में बताते हुए कुमार ने कहा कि मृत व्यक्ति की त्वचा को मृत्यु के छह घंटे के भीतर दान करना होता है। फिर इसे निकाल लिया जाता है, काटा जाता है और संसाधित किया जाता है, जिसमें पांच से छह सप्ताह लगते हैं।

उन्होंने कहा कि किडनी और लीवर को स्टोर नहीं किया जा सकता और दान के कुछ घंटों के भीतर ट्रांसप्लांट करना पड़ता है,लेकिन त्वचा को तीन से पांच साल तक स्टोर किया जा सकता है।

इसके अलावा, किसी भी रोगी में किसी भी दाता की त्वचा का उपयोग किया जा सकता है। पोस्ट-ऑपरेटिव अवधि में इम्यूनोसप्रेसेन्ट्स और स्टेरॉयड की कोई आवश्यकता नहीं होती है।