कला

रैप-पॉप खा गए इंडियन फोक डांस, मगर धोबिया नाच कैसे बचा रहा देखें यहां

आजकल के वक्त में जहां युवा लोक कलाओं से दूरी बना रहे हैं। वहीं कई कलाकार पुरानी लोक विधाओं को न सिर्फ संजोए हुए हैं, बल्कि दूसरे लोगों को भी सिखाने में जुटे हुए हैं। कुछ ऐसी लोक नृत्य की विधाएं हैं, जिन्हें जानने वाले बहुत कम कलाकार ही बचे हैं, इन्हीं में से एक लोक नृत्य की विधा है धोबिया नाच। आज प्रदेश में इस लोकनृत्य की विधा को जानने वाले बहुत कम कलाकार बचे हैं।

कलाकार  धोबिया नाच की विधा को बचाने के लिए काफी ज्यादा प्रयास कर रहे हैं। गाजीपुर(Ghazipur) के सलटू राम विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके। मंचीय कला धोबिया नाच को संरक्षित करने की जद्दोजहद में लगे हैं। एक समय था जब हर एक मांगलिक कार्यों पर धोबिया नाच का आयोजन सामान्य रवायत का हिस्सा था। परन्तु, कालांतर में ब्रास बैंड और उसके बाद डीजे ने धोबिया नाच के कलाकारों को हाशिए पर ठेल दिया।

सलटू ने एनबीटीऑनलाइन से बातचीत के दौरान बताया की यह विधा पिछले तीन पीढ़ियों से उनके परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रही है। अब वह अपने बेटे को धोबिया नाच का हुनर सीखा रहे हैं। सलटू के दादा मुसन राम त्रिनिदाद टोबैगो के साथ अफ्रीकी देशों में अपने परफॉर्मेंस दे चुके हैं। सलटू अपने दादा की विदेशी यात्राओं के हवाई जहाज के टिकट और तस्वीरों को संरक्षित करके रखे हुए हैं।

सलटू राम को आई बचपन की याद

सलटू अपने बचपन की यादों को ताजा करते हुए बताते हैं कि, एक दौर था जब लगभग हर मांगलिक अवसरों पर धोबिया नाच का परफॉर्मेंस होता था। धीरे-धीरे ब्रास बैंड और उसके बाद डीजे ने धोबिया नाच की विधा को हाशिए पर धकेल दिया। सलटू आगे बताते हैं कि उनके बाबा मुसन राम जब मंच पर चढ़कर वीर रस में आजादी की लड़ाई से जुड़ी घटनाओं का वर्णन अपनी मंचीय कला धोबिया नाच के माध्यम से वर्णित करते थे, तो मानो पूरा माहौल जीवंत हो जाता था। सलटू बताते हैं कि अब इस विधा के कुछ गिने-चुने कद्रदान ही रह गए हैं।

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गाजीपुर के मरदह ब्लाक के पांडेपुर राधे गांव के रहने वाले सलटू बताते हैं कि कभी-कदार उनसे लोग संपर्क करते हैं और उनसे परफॉर्म करने के लिए कहते हैं। कभी कुछ संस्थाओं के तरफ से भी कार्यक्रम करने का निमंत्रण मिलता है। सलटू ने पिछले दिनों मॉरीशस के प्रधानमंत्री के वाराणसी आगमन पर उनके स्वागत में धोबिया नाच का परफॉर्मेंस दिया था। वाराणसी में भी सलटू को परफॉर्म करने का मौका मिला था।

सबसे बड़ी चिंता इस कला को कैसे आगे बढ़ाया जाये

सलटू की चिंता यह है कि जिस विधा को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे जाना चाहिए, वह विलुप्त होने की कगार में है।अब धोबिया नाच के गिने-चुने कलाकार ही रह गए हैं। सलटू बताते हैं कि जहां लोग डीजे ऑर्केस्ट्रा को महंगे दरों पर बुक करते हैं, वही धोबिया नाच के कलाकारों को कुछ पैसों की ही आमदनी इस परफार्मिंग आर्ट से हो पाती है। सलटू की मंडली में कुल 15 कलाकार हैं। प्रतिदिन 1200 से 2000 रुपए की आमदनी हर कलाकार को हो पाती है। धोबिया नाच का कार्यक्रम 1 दिन से लेकर 4 दिन तक के होते हैं। यह आयोजक के ऊपर निर्भर है कि वह कितने दिनों का कार्यक्रम रखते है।

जल्‍द सिंगापुर में करेंगे धोबिया नाच

सलटू अब तक दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, पूना, पटना, हैदराबाद के साथ ही दक्षिण कोरिया में भी अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं। सलटू ने यह भी बताया इसी साल जून के महीने में इंडियन काउंसिल आफ कल्चरल रिलेशन के जरिए उन्हें सिंगापुर में भी धोबिया नाच के परफॉर्मेंस करने का मौका मिल सकता है।

आईएन ब्यूरो

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