Hindi News

indianarrative

वन्यजीवों को बचाने के लिए प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी की परंपरा को आज भी निभा रहे हैं ओडिशा के आदिवासी

हीराकुंड वन्यजीव प्रभाग ने महान स्वतंत्रता सेनानी वीर सुरेंद्र साईं (23 जनवरी, 1809- 28 फ़रवरी 1884) की युद्ध कथाओं को दर्शाते हुए एक स्मारक बनाया है (फ़ोटो: सौजन्य: Twitter/@HirakudDFO)

ओडिशा के संबलपुर के रहने वाले वीर सुरेंद्र साई ने 18 साल की उम्र में अपना नाम इतिहास में दर्ज करवा लिया था, जब उन्होंने 1827 में औपनिवेशिक शासकों,यानी अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ ज़ोरदार विरोध किया था। इस घटना को हुए आज लगभग 200 साल बीत चुके हैं,लेकिन इस इलाक़े में उनके नाम का जादू आज भी क़ायम है और इस क्षेत्र के ग्रामीणों और आदिवासियों के कानों में आज भी उनके शब्द गूंजते हैं।

इस वीर स्वतंत्रता सेनानी के प्रति इसी आदर और श्रद्धा ने बरगढ़ के डेब्रीगढ़ अभ्यारण्य की सात ग्राम पंचायतों के ग्रामीणों में वन्य जीवों के प्रति प्रेम क़ायम रखे हुए है। इन जंगलों और यहां के जानवरों ने साईं के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।

सुरेंद्र साईं के स्मारक
यह स्मारक वीर सुरेंद्र साईं की वीरता के 12 प्रमुख दृष्टांतों को प्रदर्शित करता है

यह स्मारक वीर सुरेंद्र साईं की वीरता के 12 प्रमुख दृष्टांतों को प्रदर्शित करता है

उनकी स्मृति को मनाने के लिए हीराकुंड वन्यजीव प्रभाग ने अभयारण्य के बाहरी इलाक़े बाराबखरा में एक स्मारक बनाया है। बारबाखरा एक ऐसा विशाल गुफा है, जिसमें एक झरना है। साईं के जीवन से जुड़ी प्रमुख घटनाओं के चित्रित करने के अलावा इस स्मारक में मूर्तियों के माध्यम से इस महान सेनानी की युद्ध की कहानियों को भी दर्शाया गया है।

पांच एकड़ में फैला यह स्मारक संघर्ष के दौरान साई की वीरता के 12 प्रमुख दृष्टांतों को प्रदर्शित करता है। महिलाओं को प्रोत्साहन देने के लिए पांच स्वयं सहायता समूहों को स्मारक के प्रबंधन में लगाया गया है। विभागीय वन अधिकारी एचडब्ल्यूडी अंशु प्रज्ञान दास ने बताया कि इन समूहों के सदस्यों को पूरे एक साल तक हर महीने इको-टूरिज्म का प्रशिक्षण दिया जायेगा।

औपनिवेशिक शासकों और कुछ उच्च जातियों के ख़िलाफ़ आंदोलन का नेतृत्व करते हुए साई ने दलित आदिवासी समुदायों की संस्कृति और भाषा को बढ़ावा दिया था। अपने सशस्त्र संघर्ष के दौरान डेब्रीगढ़ ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, क्योंकि उसने पहाड़ियों के शीर्ष पर पत्थर और मिट्टी से बने पहाड़ी क़िलों की एक श्रृंखला बनायी थी। ये संबलपुर को रायपुर, रांची और कटक से जोड़ने वाली मुख्य सड़कों के साथ आबद्ध थे।

सुरेंद्र साईं की मूर्ति
यह स्मारक दूर-दराज़ से आये आगंतुकों को आकर्षित करता है

यह स्मारक दूर-दराज़ से आये आगंतुकों को आकर्षित करता है

ये क़िले पश्चिमी ओडिशा से लेकर छत्तीसगढ़ के सिंघोड़ा तक बारापहाड़ा पहाड़ी श्रृंखला में बनाए गए थे।

इस पूरे क्षेत्र के ग्रामीण साईं की पूजा करते हैं और आज भी अभयारण्य और इसके वन्य जीवन की रक्षा के लिए उनके सिद्धांतों से आश्वस्त दिखते हैं और उन्होंने कभी भी अवैध शिकार नहीं किया है।