हालांकि पुनर्जागरण काल के उस्तादों की कलाकृतियां मंत्रमुग्ध कर देने वाली हैं, फिर भी उनकी रचनात्मक प्रक्रिया और उन्होंने अपने चित्रों में रंगों का उपयोग कैसे किया, इस संदर्भ में उनमें एक पहेली का तत्व भी है। Sciencenews.org की एक रिपोर्ट के अनुसार, कला इतिहासकार अक्सर इस तरह के रहस्यों से पर्दा उठाने की प्रबल इच्छा रखते हैं।
यह एक बार फिर सच हो गया है। भौतिकी और रसायन विज्ञान की सहायता से वैज्ञानिकों ने यह पता लगा लिया है कि 15 वीं शताब्दी में इटली में लियोनार्डो दा विंची और सैंड्रो बोथिकेली जैसे कलाकारों ने ऑयल और अंडे से बने पेंट का इस्तेमाल क्यों किया था। यह वह चरण था, जब अंडे से बने टेम्परा पेंट्स को तेल आधारित पेंट्स से बदला जा रहा था।
जर्मनी के कार्लज़ूए इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के एक केमिकल इंजीनियर, ओफ़ेली रैंक्वेट ने कहा कि कला के बारे में और भी बहुत कुछ है, जो केवल सौंदर्यशास्त्र है,उन्होंने कहा: “आमतौर पर जब हम कला के बारे में सोचते हैं, तो हर कोई उस विज्ञान के बारे में नहीं सोचता है, जो इसके पीछे होता है।”
तेल-अंडे के संयोजन को समझने के लिए रैंकेट और प्रयोगशाला में उनके सहयोगियों ने ऑयल और अंडे का उपयोग करके दो चीज़ें बनायीं और इसे सादे तेल के रंग के साथ मिला दिया।
एक मिश्रण में उन्होंने ताज़े अंडे की ज़र्दी और ऑइल पेंट का इस्तेमाल किया और इसका स्थायित्व मेयोनेज़ के समान थी। दूसरे के लिए वैज्ञानिकों ने जर्दी में एक पिगमेंट मिला दिया, इसे सुखाया और इसे तेल में मिला दिया। कुछ ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार, जो आज अस्तित्व में हैं, संभवत: यह महान उस्तादों द्वारा चुना गया तरीक़ा था।
इन दोनों तैयारियों को इसकी नमी, द्रव्यमान, ताप क्षमता, ऑक्सीकरण, सूखने में लगने वाले समय और अन्य विवरणों के बारे में जानने के लिए परीक्षणों की एक श्रृंखला के माध्यम से गुज़रना पड़ा था।
नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित अपने अध्ययन का विवरण प्रदान करते हुए टीम ने कहा कि दोनों मिश्रणों ने धीमी पेंट ऑक्सीकरण होने दिया, जिससे पेंट समय के साथ पीला हो गया। यह ज़र्दी में एंटीऑक्सिडेंट, प्रोटीन और फॉस्फोलिपिड्स की उपस्थिति के कारण होता है।
यह मिश्रण, जिसमें कि मेयोनेज़ का स्थायित्व था, वर्णक के कणों के बीच ठोस लिंक के परिणामस्वरूप पेंट सख़्त हो गया। यह मिश्रण उभरी हुई और मोटी शैली के लिए सबसे उपयुक्त होता, जिसे इम्पैस्टो कहा जाता है, जिसने कला में बुनावट ला दी।
अंडे का उपयोग करने से पपड़ियां भी कम हो जाती हैं, जो पेंट की स्थिरता के कारण आती हैं। कभी-कभी ये पपड़ियां झुर्रियों का कारण शीर्ष परत तेल पेंट के नीचे की तुलना में तेज़ी से सूखने का लिए ज़िम्मेदार होता है। यह सूखे फ़िल्म को पेंट के ऊपर गुहा बना देता है, जो अभी भी गीली और ढीली होती है।
रैंकेट ने पाया कि ब्लेंडेड पेंट्स के जहां कुछ ख़ास फायदे होते थे, वहीं उनके कुछ नकारात्मक पहलू भी थे। उन्हें सूखने में अधिक समय लगा, उस अवधि के कलाकारों को अगली परत लगाने से पहले लंबे समय तक प्रतीक्षा करने के लिए मजबूर होना पड़ता था।
शिकागो के कला संस्थान में वैज्ञानिक अनुसंधान के निदेशक केन सदरलैंड ने इन उस्तादों को उनके अभिनव विचारों के लिए सराहना करते हुए कहा: “जितना अधिक हम समझते हैं कि कलाकार अपनी सामग्री का चयन और हेरफेर कैसे करते हैं, उतना ही हम सराहना कर सकते हैं कि वे क्या कर रहे हैं, रचनात्मक प्रक्रिया और अंतिम उत्पाद की हम तारीफ़ किये बग़ैर नहीं रह सकते।
सदरलैंड इस अध्ययन दल का हिस्सा तो नहीं थे, लेकिन उनका कहना था कि ऐतिहासिक कला माध्यमों पर शोध कला के संरक्षण में मदद करता है और स्वयं कार्यों की गहरी समझ और गुण-दोष विवेचना में भी सक्षम बनाता है।
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