IPCC Report:भारत को जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी)IPCC की नवीनतम रिपोर्ट में जारी चेतावनियों के अनुरूप अपने अनुकूलन और शमन प्रयासों को तेज करना चाहिए, क्योंकि देश को धरती के तापमान में वृद्धि के विनाशकारी प्रभावों का सामना करना पड़ सकता है। संयुक्त राष्ट्र(UN) के इस प्रमुख दस्तावेज़ के दो सह-लेखकों ने यह सलाह दी है। सोमवार को जारी की गई आईपीसीसी रिपोर्ट के भारतीय सह-लेखक, दीपक दासगुप्ता और अदिति मुखर्जी ने कहा है कि समुद्र का बढ़ता जलस्तर भारतीय उपमहाद्वीप के लिए चिंता का सबब है, क्योंकि यह तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लाखों लोगों की आजीविका और पारिस्थितिकी को प्रभावित करेगा।
संयुक्त राष्ट्र (UN) के वरिष्ठ अधिकारी ओवेस सरमद ने कहा कि 10 दिन पहले जारी की गई जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल की सिंथेसिस रिपोर्ट (IPCC) सभी देशों के लिए आंखें खोलने वाली है। उन्होंने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए देश जिन प्रतिबद्धताओं पर सहमत हुए हैं वे काफी नहीं हैं। भारत में जन्मे ओवेस सरमद अभी जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के डिप्टी एक्जीक्यूटिव सेकेट्री के पद पर तैनात हैं। उन्होंने कहा कि दुबई में होने वाली COP की अगली बैठक ‘बेहद महत्वपूर्ण’ होने वाली है और उम्मीद जतायी कि सभी देश इस मौके का इस्तेमाल ‘प्रक्रिया में आवश्यक सुधार’ करने के लिए करेंगे।केरल के इस खूबसूरत गांव में वर्तमान में चल रही जी20 शेरपा बैठक से इतर सरमद ने अपने इंटरव्यू में कहा कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) किसी भौगोलिक सीमा तक सीमित नहीं है और उन्होंने देशों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करने के लिए अपनी भूमिका निभाने का आह्वान किया।
आईपीसीसी की 10 मार्च को जारी रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि करीब 3.3 से 3.6 अरब लोग जलवायु परिवर्तन से बहुत प्रभावित हो सकते हैं और उनके बाढ़, सूखा तथा तूफान से जान गंवाने की आशंका 15 गुना अधिक है। सरमद ने कहा, ‘आईपीसीसी की हालिया रिपोर्ट आंख खोलने वाली है। हम इसके बारे में जानते थे कि हम ग्लोबल वार्मिंग के मामले में सही दिशा में नहीं हैं। आईपीसीसी ने ठीक यही संदेश दिया है और उन्हें (राष्ट्रों को) जो करने की जरूरत है वे मूल रूप से बहुत आसान है।सरल शब्दों में कहें तो उन्हें सभी क्षेत्रों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को रोकना होगा।’
भारत जैसे बहुत अधिक आबादी वाले देशों के लिए समुद्री जल स्तर में वृद्धि के खतरे पर किए गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि इस खतरे से निपटने के लिए ऐसे कदम उठाने की जरूरत है जो निचले इलाकों में रहने वाले समुदायों के अनुकूल और लचीले हों.रिपोर्ट के अनुसार, समुद्री जल स्तर में 1971 और 2006 के बीच प्रति वर्ष 1.9 मिलीमीटर बढ़ोतरी की तुलना में 2006 और 2018 के बीच 3.7 मिलीमीटर प्रति वर्ष की वृद्धि हुई। इसके चलते भारत जैसे देशों को एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
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