अर्थव्यवस्था

केवल संयुक्त अरब अमीरात ही भारतीय रुपये के व्यापार में दिलचस्पी नहीं रखता

भारत और संयुक्त अरब अमीरात ने रुपया दिरहम प्रणाली के माध्यम से भुगतान स्थापित करने के लिए बातचीत शुरू कर दी है। इस मुद्दे को प्रमुखता मिलने की इसलिए संभावना है, क्योंकि संभावित व्यापार समझौते पर खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) देशों और नई दिल्ली के बीच बातचीत गति पकड़ रही है।

रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका द्वारा SWIFT भुगतानों के निलंबन के मद्देनजर रुपये के व्यापार को बढ़ावा देकर एक वैकल्पिक भुगतान प्रणाली स्थापित करने के उद्देश्य से इसे एक नये चलन के रूप में देखा गया था, जिसे न केवल गति मिल रही है, बल्कि अब इसे एक स्वतंत्र प्रणाली के रूप में भी देखा जा रहा है।

एक उद्योग निकाय के लिए काम करने वाले एक विश्लेषक ने बताया कि कई देश अब भारत में वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखला स्थापित करने पर विचार कर रहे हैं, “रुपये के व्यापार को स्वीकार करने को लेकर खुलापन आ रहा है।”

एक साल पहले रुपये का व्यापार एक अवधारणा के रूप में मुख्य रूप से काग़ज़ पर ही था। लेकिन, आज 18 देश रुपये में व्यापार करने को लेकर पहले ही सहमत हो चुके हैं और कई अन्य देशों के इसमें शामिल होने की संभावना है।

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) भी रुपये के वैश्वीकरण के लिए आक्रामक रूप से बल दे रहा है।

भारत और अन्य देशों के बढ़ते वैश्विक आर्थिक जोखिमों के बीच यह चलन से क़ीमती विदेशी मुद्रा भंडार को बचाने में मदद करता है।

जहां कई देशों के लिए विडॉलरीकरण राडार पर रहा है, वहीं अमेरिकी मुद्रा ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपना प्रभुत्व को जारी रखे हुआ है। अमेरिकी डॉलर को उसके सिंहासन से उतार पाना कोई आसान काम नहीं है। विश्लेषकों का कहना है कि आने वाले समय में भी डॉलर का दबदबा बना रहेगा।

इंटरनेशनल बैंकर का कहना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पिछले एक साल के दौरान “दुनिया ने आर्थिक, भू-राजनीतिक और सांस्कृतिक रेखाओं में ज़बरदस्त बदलाव की प्रवृत्ति देखी है।”

पिछले साल अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने खुलासा किया था कि आईएमएफ़ के आधिकारिक विदेशी मुद्रा भंडार डेटा की मुद्रा संरचना के अनुसार, वैश्विक विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर की हिस्सेदारी 2021 की अंतिम तिमाही में 59 प्रतिशत से नीचे गिर गयी है, जो दो दशकों से गिरावट की ओररही है।

राष्ट्रीय सह-संयोजक अश्विनी महाजन ने इंडिया नैरेटिव को बताया, “आज भुगतान प्रणाली को हथियार बनाया जा सकता है और हम अन्य देशों की दया पर निर्भर नहीं रह सकते हैं। भारत को इस मुद्दे को देखना चाहिए और रुपये को अधिक स्वीकार्य बनाने की दिशा में भी काम करना चाहिए।”

उन्होंने कहा, “भुगतान प्रणाली में आत्मनिर्भर होना अत्यंत महत्वपूर्ण है और हमें इस दिशा में काम करने की ज़रूरत है।”

एक विश्लेषक ने कहा कि अमेरिकी क़दम ने केवल वैश्विक व्यापार के विडॉलरीकरण की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित किया है।

 

यह भी पढ़ें: US Dollar नहीं भारत का बज रहा डंका, रूबल और रुपये में इंटरनेशल ट्रे़ड

Mahua Venkatesh

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