अर्थव्यवस्था

अब चीनी युआन के सामने भारतीय रुपये की चुनौती

रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आरबीआई) ने भारतीय मुद्रा में ट्रेडिंग की अनुमति देने के लिए अपना विशेष वोस्ट्रो रुपये खातों को खोलने के लिए 18 देशों को संकेत दे दिया है,शुरुआती समस्याओं के बावजूद और अधिक देशों के लिए इस सुविधा का दरवाज़ा खोला जा सकता है। जो समस्यायें पेश आ रही हैं,उसे हल करने की दिशा में काम किया जा कर रहा है।

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने भारत के एक वरिष्ठ अधिकारी को बताया, “इन मुद्दों को गंभीरता से लेने की ज़रूरत है और हर कोण को शामिल करने के बाद समाधान तो आख़िरकार होगा ही, लेकिन इसमें थोड़ा समय लगेगा।”

आरबीआई ने आक्रामक रूप से रुपये को अंतर्राष्ट्रीयकरण करने की क़वायद शुरू कर दी है, लेकिन  इसमें अभी और तेज़ी लायी जा रही है।

रुपये को अंतर्राष्ट्रीयकरण करने की क़वायद रूस या अन्य देशों पर अमेरिकी प्रतिबंधों से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह एक दीर्घकालिक नीति का हिस्सा है।

प्रधान मंत्री को आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल ने इंडिया नैरेटिव को बताया,“रुपये के व्यापार के साथ कुछ समस्यायें हैं। ये शुरुआती समस्यायें बहुत ही स्वाभाविक हैं, लेकिन चर्चा जारी है और हम इसे (रुपये-रुपये भुगतान संरचना) को एक दीर्घकालिक प्रणाली के रूप में देख रहे हैं।“

पिछले हफ़्ते आरबीआई-नियुक्त वर्किंग ग्रुप ने इस क़वायद के लिए उपायों का एक नुस्खा अपनाया है।

चीन पहले से ही अपनी मुद्रा युआन के वैश्वीकरण को लेकर दौड़ में है। हालांकि विदेश नीति थिंक टैंक द्वारा प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि रुपये के अधिक बाज़ार संचालित होने के कारण  “भारत के पास चीन की तुलना में अपनी मुद्रा को अंतर्राष्ट्रीयकरण करने का एक बेहतर मौक़ा है।”

भारत रुपये की विनिमय दर मुख्य रूप से मांग और आपूर्ति के आधार पर बाज़ार में संचालित होती है, हालांकि केंद्रीय बैंक विदेशी मुद्रा बाज़ार में अत्यधिक अस्थिरता के मामले में कभी-कभी हस्तक्षेप करता है।

इस थिंक टैंक ने यह भी कहा है कि चीन की तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था अधिक पारदर्शी है। यह कहते हुए कि चीन में हाल के नियामक गतिरोध के साथ भारत में “संपत्ति और व्यक्तिगत अधिकारों के एक बड़े सम्मान,” को देखते हुए थिंक टैंक का कहना है कि युआन को वैश्विक मुद्रा के रूप में आगे बढ़ाने की क़वायद को सेंध भी लगा सकते हैं।

रूस पर अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद कई देश अब सक्रिय रूप से वैकल्पिक भुगतान प्रणाली स्थापित करने की ओर देख रहे हैं। स्विफ्ट भुगतान प्रणाली तक पहुंच बनाने को लेकर रूस को मिले झटके से आयी प्रतिक्रिया ने एक ऐसी भुगतान प्रणाली की आवश्यकता को रेखांकित कर दिया है, जो अमेरिकी डॉलर के फ्रेम के बाहर हो।

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने इंडिया नैरेटिव को बताया, “यह विचार अमेरिकी डॉलर को बदलने को लेकर नहीं है- यह निकट भविष्य में संभव नहीं है, लेकिन इसका उद्देश्य एक वैकल्पिक भुगतान प्रणाली स्थापित करने की अवश्य है, जो अमेरिकी मुद्रा पर निर्भर नहीं हो। अमेरिकी डॉलर को प्रभावित करने वाले अचानक नीतिगत निर्णयों के मामले में इन देशों के बीच व्यापार को प्रभावित नहीं किया जाना चाहिए।”

Forex.com  का कहना है कि वैश्विक स्तर पर औसतन अमेरिकी डॉलर में लगभग $ 6.6 ट्रिलियन का दैनिक व्यापार होता है।

अमेरिकी डॉलर पर अनिश्चितता मई में तब बढ़ गयी थी, जब वाशिंगटन अपनी ऋण सीमा को बढ़ाने के मुद्दे पर एक दुविधा की स्थिति में खड़ा था।

यूएस ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन ने एक साक्षात्कार में सीएनएन को बताया था, “जब हम वित्तीय प्रतिबंधों का उपयोग करते हैं, जो डॉलर की भूमिका से जुड़ा होता है, तो यह एक जोखिम भरी स्थिति होती है कि समय के साथ यह डॉलर के आधिपत्य को कम कर सकता है।”

आईएन ब्यूरो

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