First Ever Silver Jublee Star : वह एक शानदार एक्टर तो थे ही, बेहतरीन सिंगर भी थे। जब वह कॉलेज में थे,तभी से लेखन की शुरुआत हो गयी थी और लिखने का यह शगल उन्हें पत्रकारिता के क्षेत्र में ले आया।बाद में वह उर्दू फ़िल्म मैगज़ीन-‘जगत लक्ष्मी’ के एडिटर हो गए। फ़िल्मों के बारे में ऐसा लिखते कि पाठकों को उनके मैगज़ीन का इंतज़ार होता।
चेहरा मोहरा शानदार था और चुपके-चुपके एक्टिंग की प्रैक्टिस भी करने लगे। एक दिन अचानक राजश्री प्रोडक्शन की नींव रखने वाले ताराचंद बड़जात्या से मुलाक़ात हो गयी। ताराचंद बड़जात्या उन दिनों के लोकल डिस्ट्रीब्यूटर चंदनमल इंदर कुमार के डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ़िस में मैनेजर हुआ करते थे। उन्हें कोलकाता आने का सुझाव दिया गया और साल 1939 में वह कोलकाता आ गये।यहां उन्हें पंजाबी फ़ीचर फ़िल्म ‘पूरण भगत’ मिल गयी और फिर शुरू हो गया एक्टिंक का सिनेमाई सफ़र,इस सफ़र की मंज़िल साधारण नहीं,बेहद असाधारण थी।
उनका नाम था करण दीवान। जन्म 6 नवंबर 1917 में पाकिस्तान के गुजरांवाला में हुआ था। करण दीवान ने 70 से ज़्यादा फ़िल्मों में एक्टिंग की थी।
करण की शुरुआत भले ही पंजाबी फिल्म से हुई थी। लेकिन,1944 में आयी हिंदी फ़िल्म, ‘रतन’ से उनकी धूम मच गयी। रतन 1944 की ज़बरदस्त हिट फ़िल्म थी। इस फ़िल्म के प्रोड्यूसर जैमिनी थे और जैमिनी ख़ुद करण दीवान के भाई थे। इस फ़िल्म के म्यूज़िक डायरेक्टर नौशाद थे। नौशाद के लिए भी यह फ़िल्म मील का पत्थर साबित हुई। इस फ़िल्म के गाने ‘जब तुम ही चले परदेस’ को करण दीवान ने ख़ुद अपनी आवाज़ दी थी।उन्होंने ‘पिया घर आजा’, ‘मिट्टी के खिलौने’ जैसी कई फ़िल्मों में गाये।इसी फ़िल्म के गाना था-“मिलके बिछड़ गयी अंखियां,हाय राम मिलके बिछड़ गयी अंखियां”,जिसे अमीरबाई कर्नाटकी ने गाया था।
करण दीवान की हिट फ़िल्मों में 1955 की ‘मुसाफ़िरखाना’ भी थी।इस फ़िल्म में उनके साथ जॉनी वकर और ओम प्रकाश ने काम किया था। उनकी हिट फ़िल्मों में ‘जीनत’, ‘लाहौर’, ‘दहेज’, ‘परदेस’, ‘बहार’, ‘तीन बत्ती चार रास्ता’ आदि थीं।1979 में उनकी आख़िरी फ़िल्म ‘आत्माराम’ थी।
करण दीवान 1941 से लेकर 1979 तक फ़िल्मों में सक्रिय रहे। इस दौरान उन्होंने 70 से ज़्यादा फ़िल्में कीं और इन 70 फ़िल्मों में से 20 फ़िल्में जुबली हिट फ़िल्में थीं। इस तरह,सही मायने में करण दीवान ही हिंदी फ़िल्मों के पहले जुबली स्टरा थे।मगर,जब इस जुबली स्टार का 2 अगस्त, 1979 में मुंबई में निधन हुआ,तो इनकी पहचान इस तरह अतीत में खो गयी थी कि इनकी शवयात्रा में महज़ दो लोग ही थे।