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पुणे के डॉक्टर की अद्भुत सर्जरी से यमन की 11 साल की बच्ची अपने पैड़ों पर खड़े होने में सक्षम

यमन की मरीज़ हादिया के साथ पूना हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के डॉ. अभिषेक घोष

यमन की 11 साल की बच्ची का खिलखिलाता चेहरा उसकी अपार ख़ुशी को बयां कर रहा है। उसका नाम हादिया है और उसकी हाल ही में पूना हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में एक जटिल और दुर्लभ सर्जरी हुई है, जिससे उसे चलने में मदद मिली है !

हादिया अपने पैर की बड़ी संवहनी विकृति से पीड़ित थी। इसमें उसके पैर के साथ-साथ पैर की उंगलियां भी शामिल थीं। इस स्थिति को और भी ख़राब यह बात बना देती है कि संवहनी विकृति जन्मजात होती है, जो जन्म से मौजूद होती है और जब बड़ी उम्र के साथ ही यह ध्यान में आ पाती है।

हादिया की स्थिति को लेकर विवरण साझा करते हुए ऑपरेशन करने वाले माइक्रोवैस्कुलर और पुनर्निर्माण सर्जन, डॉ. अभिषेक घोष ने  इंडिया नैरेटिव को बताया: “उसने यमन, मिस्र और भारत में कई डॉक्टरों को दिखाया, लेकिन कोई राहत नहीं मिली। घाव बढ़ता जा रहा था और वह अपने पैर पर वजन नहीं डाल पा रही थी और ठीक से चल भी नहीं पा रही थी। उसका पहले भी ऑपरेशन किया गया था और स्क्लेरोथेरेपी की भी कोशिश की गयी थी, लेकिन घाव फिर से हो गया।”

अपनी जाँच के दौरान डॉ. घोष ने देखा कि घाव बहुत व्यापक था, जिसमें आधे से अधिक पैर और उसका तलवा भी शामिल था। इसके अलावा, उन्होंने पाया कि दूसरी और तीसरी पैर की अंगुली पूरी तरह से शामिल थी, जबकि पैर के बड़ा और बीच का अंगूठा भी घाव से पीड़ित था।

डॉ घोष ने कहा,”ऐसे कई मामलों में आंशिक या पूर्ण फोरफुट विच्छेदन किया जाता है। लेकिन, यह तय किया गया कि पैर के दूसरे अंगूठे को बचाते हुए दूसरे पैर के अंगूठे से पूरे घाव को निकाल दिया जाए, ताकि मरीज़ ठीक से चल सके।”

हादिया को ऑपरेशन के लिए ले जाया गया और पूरे संवहनी ट्यूमर को आवर्धन के तहत विभिन्न धमनियों, नसों, कोमल ऊतकों और बोनी संरचना से इसके जुड़ाव से सावधानीपूर्वक अलग किया गया। इसके बाद स्थानीय फ्लैप के साथ पैर का पुनर्निर्माण किया गया।

सर्जरी जटिल होने के कारण इसे पूरा करने में पांच घंटे का समय लगा

हादिया के टैक्सी ड्राइवर पिता, अबोबक्र ने अपनी ख़ुशी व्यक्त करते हुए कहा कि वह चाहते थे कि वह पुणे के डॉक्टरों से मिले,अगर पहले मिले होते, तो उनकी बेटी को पहले ही मदद मिल गयी होती।

उसे 3 जून को छुट्टी दे दी गयी और वह अपने पिता और दादी के साथ पुणे में रहती है। एक बार टांके हटा दिए जाने और उसके पुनर्वास का प्रारंभिक चरण समाप्त हो जाने के बाद हादिया भारत से वापस अपने वतन चली जायेगी।