रामकृष्ण उपाध्याय
बेंगलुरु: कांग्रेस पार्टी के सत्ता संभालने के बाद कर्नाटक में सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच भयंकर राजनीतिक लड़ाई का संकेत मिला। मई 2023 के चुनावों के बाद विधानसभा के पहले सत्र का पहला दिन “पूरी तरह से बर्बाद” रहा, क्योंकि “कांग्रेस सरकार के जनता के साथ धोखे ” के ख़िलाफ़ बीजेपी विधायकों ने नारेबाज़ी की और हंगामा किया।
सत्तारूढ़ कांग्रेस ने पिछली बोम्मई सरकार के ख़िलाफ़ कथित भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग नियुक्त करके जवाबी कार्रवाई की।
विधानसभा और विधान परिषद दोनों की कार्यवाही नारेबाज़ी, आरोप-प्रत्यारोप और सदन के वेल में दिये जाने वाले धरने से प्रभावित हुई, क्योंकि भाजपा ने कांग्रेस की सरकार बनने के 45 दिन बाद भी लोगों के लिए अपनी “पांच गारंटी” को लागू करने में सरकार की विफलता पर तत्काल चर्चा की मांग करते हुए स्थगन प्रस्ताव पेश किया।
पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने इस स्थगन का नोटिस दिया था।उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने “वोटों की ख़ातिर लोगों को गुमराह किया और धोखा दिया” और विपक्ष को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से स्पष्टीकरण मांगने का अधिकार है।
सिद्धारमैया ने खोया आपा
सिद्धारमैया ने कहा कि सरकार इस विषय पर चर्चा के लिए तैयार है, लेकिन प्रोटोकॉल के अनुसार प्रश्नकाल और शून्यकाल के बाद ही ऐसा संभव हो सकेगा। जब विपक्षी दलों का शोर जारी रहा, तो सिद्धारमैया ने अपना आपा खो दिया और कहा कि नियमों का पालन करना होगा और वह विपक्ष के “जिद्दी व्यवहार” को बर्दाश्त नहीं करेंगे, जिससे अराजकता और बढ़ेगी।
विधानमंडल के बाहर पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य भाजपा के दिग्गज नेता, बीएस येदियुरप्पा अपने सहयोगियों के साथ कांग्रेस पार्टी के वादे के अनुसार “पांच गारंटियों के पूर्ण कार्यान्वयन” की मांग करते हुए गांधी प्रतिमा के सामने धरने पर बैठ गये। येदियुरप्पा ने विधानमंडल सत्र के सभी दिन धरने पर बैठने की योजना बनायी है। वह चाहते हैं कि सिद्धारमैया सरकार लोगों को केंद्र द्वारा दिए जा रहे 5 किलो के की जगह 10 किलो चावल दे और “हम एक ग्राम चावल भी कम स्वीकार नहीं करेंगे।” “अन्न भाग्य” योजना के तहत प्रति माह 2.28 लाख किलोग्राम की आवश्यकता को पूरा करने के लिए बाज़ार में पर्याप्त चावल नहीं मिलने पर सरकार 34 रुपये प्रति किलो की दर से पांच किलो के लिए नक़द मुआवज़ा देने की योजना बना रही है।
संतो की चेतावनी
चुनाव नतीजों के बाद से सिद्धारमैया सरकार के कई मंत्री पिछली भाजपा सरकार पर ज़हर उगल रहे हैं, या तो “भ्रष्टाचार के आरोपों” के संबंध में मामले दर्ज करने या भूमि सुधार अधिनियम और एपीएमसी अधिनियम, धर्मांतरण विरोधी और गोहत्या विरोधी अधिनियम के संबंध में कुछ क़ानूनों को वापस लेने की धमकी दे रहे हैं। हालांकि, विभिन्न लिंगायत और वोक्कालिगा मठों के वरिष्ठ संतों ने चुनावों के दौरान कांग्रेस पार्टी का समर्थन किया था,उन्होंने राज्य में धर्मांतरण विरोधी क़ानून या गोहत्या पर प्रतिबंध को रद्द करने के किसी भी क़दम पर कड़ा विरोध व्यक्त किया है और अगर सरकार इस पर आगे बढ़ती है,तो आंदोलन शुरू करने की चेतावनी दी है।
पिछले दो दिनों में सिद्धारमैया सरकार ने “बिटकॉइन मामले” को फिर से खोलकर और उनके ख़िलाफ़ लगाये गये भ्रष्टाचार के आरोपों की उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में न्यायिक जांच स्थापित करके राज्य भाजपा को बैकफुट पर लाने की कोशिश की है। राज्य ठेकेदार संघ के अध्यक्ष, केम्पैया, ने एक साल पहले यह आरोप लगाया था, लोकायुक्त, न्यायमूर्ति शिवराज पाटिल को अपने इस आरोप के समर्थन में एक भी सबूत प्रस्तुत करने में विफल रहे, जिन्होंने गहन जांच करने की पेशकश की थी।
राज्य सरकार ने लगभग तीन साल पहले सामने आये बिटकॉइन मामले की “पुनः जांच” करने के लिए सीआईडी में आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ के एडीजीपी मनीष खरबिकर की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल का भी गठन किया है। संदिग्ध ड्रग तस्कर और ‘मास्टर हैकर’ श्रीकृष्ण उर्फ़ श्रीकी से जुड़े बिटकॉइन मामले में कुछ राजनेताओं और वरिष्ठ नौकरशाहों को कथित तौर पर मौद्रिक लाभ प्राप्त हुआ था। श्रीकृष्ण को सीसीबी ने 17 नवंबर, 2020 को ड्रग तस्करी मामले में गिरफ़्तार किया था। पुलिस ने ई-गवर्नेंस और अन्य वेबसाइटों की हैकिंग और बिटकॉइन के माध्यम से पैसे निकालने से जुड़े एक व्यापक नेटवर्क का पर्दाफ़ाश किया था। बोम्मई सरकार पर मामले की गंभीरता से पैरवी न करने और यहां तक कि आरोपी श्रीकी को पुलिस हिरासत से भागने देने का भी आरोप लगाया गया था। हालांकि, बोम्मई ने इन आरोपों से इनकार किया था और कहा था कि जांच जारी है।
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