प्रमोद कुमार
रायपुर: विधानसभा चुनाव से छह महीने पहले, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनकी कांग्रेस सरकार हिंदुत्व के एक नरम संस्करण को अपनाने के अपने नवीनतम प्रयास के साथ “राष्ट्रीय रामायण महोत्सव” नामक एक शानदार तीन दिवसीय आयोजन की मेज़बानी कर रही है। यह आयोजन1 जून से शुरू हो रहा है।
पिछले साढ़े चार वर्षों में बघेल सरकार ने राम वन गमन पथ के साथ विकास की अपनी खोज में कोई कसर नहीं छोड़ते हुए भगवान राम की महाकाव्य यात्रा के सार को कुशलता से जोड़ा है।
औद्योगिक नगरी रायगढ़ में आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम के दौरान कंबोडिया और इंडोनेशिया की रामायण मंडलियां अरण्य कांड पर विशेष प्रस्तुति देंगी, जबकि देश के विभिन्न हिस्सों से 12 मंडलियां’ अरण्य कांड’ के मनमोहक विषय पर केंद्रित अपनी मनमोहक प्रस्तुतियों से दर्शकों का मनोरंजन करेंगी। इसके अलावा, तीन दिवसीय इस उत्सव के दौरान केलो नदी में हनुमान चालीसा का सामूहिक जाप और दैनिक महा-आरती होगी।
दिसंबर, 2018 में सत्ता में आने के बाद से बघेल सरकार ने राम वन गमन पथ से संबंधित भव्य समारोहों सहित कई कार्यक्रमों के माध्यम से नरम हिंदुत्व को अपनाने की दिशा में लगातार काम किया है। इस चुनावी वर्ष के बजट में बघेल ने अंतर्राष्ट्रीय रामायण महोत्सव के लिए 12 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जिसमें राज्य के लोगों को दुनिया भर से रामायण के विभिन्न संस्करणों को समझने का अवसर प्रदान करने की संभावना पर बल दिया गया है। भगवान राम की माता को समर्पित प्राचीन माता कौशल्या मंदिर में कौशल्या महोत्सव के लिए रामलीला और मानस गायन दलों के प्रचार-प्रसार के लिए बजट में 10 करोड़ रुपये का प्रावधान भी शामिल है।
2021 में कांग्रेस सरकार ने राम वन गमन पर्यटन सर्किट परियोजना के तहत प्राचीन माता कौशल्या मंदिर के जीर्णोद्धार की पहल की थी। नवरात्रि के पहले दिन भव्य समारोह के दौरान मुख्यमंत्री बघेल ने मंदिर का लोकार्पण किया।
हालांकि, पिछले साल राज्यव्यापी मानस मंडली या रामायण पाठ आयोजित करने के मुख्यमंत्री के प्रयासों को बस्तर क्षेत्र में आदिवासी समुदायों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था। आदिवासी समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाला एक शक्तिशाली निकाय, सर्व आदिवासी समाज ने संविधान की पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों द्वारा शासित एक क्षेत्र में आदिवासी रीति-रिवाज़ों के उल्लंघन का हवाला देते हुए अपना विरोध व्यक्त करते हुए राज्यपाल को लिखा था। नतीजतन, सुकमा में प्रशासन को यह कार्यक्रम रद्द करना पड़ा।
अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दों को लेकर कांग्रेस सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए ‘अतिसतर्क’ रही है कि वह उनका पक्ष लेते हुए न दिखे। हाल के दिनों में बस्तर के नारायणपुर और बेमेतरा ज़िले में सांप्रदायिक हिंसा की कुछ घटनायें हुई हैं, और अल्पसंख्यक समूहों ने शिकायत की है कि मंत्रियों सहित कांग्रेस के किसी भी नेता ने इन क्षेत्रों का दौरा नहीं किया।
छत्तीसगढ़िया की क्षेत्रीय पहचान को ज़ोरदार तरीक़े से बढ़ावा देने के अलावा, पिछले साढ़े चार वर्षों में कांग्रेस के मुख्यमंत्री का प्राथमिक ध्यान किसानों के कल्याण पर भी रहा है। उन्होंने “न्याय” योजनाओं की शुरुआत की, जिसमें किसानों के खातों में सीधे कृषि सब्सिडी प्रदान करना शामिल है। अपने चुनावी घोषणापत्र के वादों को पूरा करते हुए बघेल सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना (MSP) के तहत खरीदे गए प्रत्येक टन धान के लिए किसानों को 2500 रुपये प्रति क्विंटल मिले, साथ ही सरकार कृषि सब्सिडी के रूप में आये अंतर को कवर करती है। कृषि मज़दूरों और अन्य ग्रामीण निवासियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए गाय के गोबर और गोमूत्र की खरीद जैसी अन्य न्याय योजनाओं के अलावा शुरू की गई थी।
मुख्यमंत्री बघेल ने लगातार इस बात पर ज़ोर दिया है कि उनकी सरकार की योजनाओं से किसानों, ग़रीबों, मज़दूरों और समाज के अन्य तबकों को वित्तीय सुरक्षा मिली है। उनका मानना है कि आम आदमी को वित्तीय संसाधनों के साथ सशक्त बनाना उनकी सरकार की कल्याणकारी पहलों के मूल में है, जिसने अंततः ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत किया है।
इसके अलावा, कांग्रेस सरकार का ध्यान गायों पर भी रहा है। सरकार ने गौठान (गायों के लिए आश्रय) जैसी योजनायें शुरू की है।इसमें गाय के गोबर को उचित क़ीमत पर ख़रीदा जाता है और उसे वर्मीकम्पोस्ट में बदल दिया जाता है। सरकार ने गोमूत्र की ख़रीद के लिए एक योजना भी शुरू की है और गाय के गोबर पर आधारित उत्पाद बनाने के लिए गांवों में केंद्र स्थापित किए हैं।
नवंबर में होने वाले चुनावों के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ऐसी अवधारणा को गढ़ना शुरू किया है,जो भगवान राम, किसानों, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और छत्तीसगढ़िया के गौरव के इर्द-गिर्द घूमती हो।
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