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लालकिले पर फहराएगा भगवा, तलवारें खनकेंगी-घोड़े दौड़ेंगे-हाथी चिंघाड़ेंगे

दिल्ली लाल किले पर छत्रपति शिवाजी के पराक्रम का गौरवगान होगा। इस ऐतिहासिक पल को संजोने के लिए देश-विदेश के गणमान्य लोग उपस्थित रहेंगे। इसका आयोजन राजा शिव छत्रपति महानाट्य आयोजन समिति द्वारा दो से छह नवंबर तक किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि दिल्ली में यह एशिया का सबसे भव्य व बड़ा मंचन होगा। सजीव हाथी और घोड़े की टाप की गूंज के बीच प्रतिदिन ढाई घंटे का मंचन करीब ढाई सौ कलाकार करेंगे। इससे पहले वर्ष 2018 में दिल्ली में इसी नाटक का मराठी में मंचन यहां पर किया गया था, लेकिन इस बार हिंदी में मंचन किया जा रहा है।

दर्शक दीर्घा में कई देशों के राजदूत व वरिष्ठ अधिकारी मौजूद रहेंगे। उनकी सुविधा के लिए ईयरफोन उपलब्ध कराया जाएगा, जिससे कि छत्रपति शिवाजी के पराक्रम से वे भी रूबरू हो सकें। पूर्व में इस नाटक का मंचन अमेरिका, इंग्लैंड सहित अन्य देशों में 1000 से अधिक बार हो चुका है।

नाटक के मंचन का उद्देश्य छत्रपति शिवाजी के पराक्रम व गाैरवगाथा को जन जन तक पहुंचाने की है। आयोजक के मुताबिक अभी तक इतिहास में मुगलों का महिमामंडन किया गया। इस बीच हमारे देश के शूरवीरों को जो सम्मान मिलना चाहिए वह नहीं मिल सका। कोशिश है कि लोग अपने वीरों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानें। वीर शिवाजी की न सिर्फ युद्ध नीति बेमिसाल थी, बल्कि राज्य व्यवस्था, प्रशासनिक व्यवस्था, कृषि व्यवस्था व अर्थव्यवस्था पर उनकी सोच अनुकरणीय रही है। उस दौर में ढेरों चुनौतियों के बीच वे जनकल्याण को लेकर सतत प्रत्यनशील रहते थे।

आयोजकों के मुताबिक शिवाजी के जन्म से लेकर उनके पूरे जीवन के बारे में इन पांच दिनों में बताया जाएगा। बेहतर राष्ट्र का निर्माण कैसे हो सकता है यह छत्रपति शिवाजी के जीवन दर्शन में सामने आता है। उन्होंने देश को एक गौरवपूर्ण इतिहास दिया है।

छत्रपति शिवाजी के युद्ध कौशल के मंचन को सजीव बनाने के लिए ध्वनि व प्रकाश का संयोजन किया जाएगा। घोड़े पर सवार सैन्य बल दिखाई देंगे। आयोजकों ने बताया कि यह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है और इस दिशा में कार्य करना बहुत जरूरी है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों की सहायता से एक योग्य एवं प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया।

छापामार युद्ध की नयी शैली विकसित की और अपने विरोधियों को परास्त किया। मराठी और संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। इनके ये कार्य उस दौर में किए गए जब स्थितियां बिल्कुल विपरीत थीं। आज भी शिवाजी के विचार प्रासंगिक हैं और आम लोगों तक यह पहुंचे इस दिशा में राजा शिव छत्रपति महानाट्य आयोजन समिति प्रतिबद्ध है।