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बेबस पिता बैग में बच्चे के शव को डालकर पहुंचा 200 किमी दूर अपने घर!

बेबस पिता की कड़वी हक़ीक़त

यह घटना तड़पा देने वाली है। यह एक ऐसी हक़ीक़त है,जो सिस्टम और उसकी संवेदना पर सवाल उठाती है। पश्चिम बंगाल का दिनाजपुर। एक बेबस पिता के पास एंबुलेंस के लिए पैसे नहीं थे,तो बेटे का शव बैग में डालकर बस में 200 किमी का सफर तय कर घर पहुंचा।

इंसानियत को शर्मसार करने वाली ये घटना उस पश्चिम बंगाल से है,जहां वर्षों तलक ग़रीब गुरबों के हिमायती कही जाने वाली वाम दलों की सरकार हुआ करती थी। दिल के पसीज जाने वाली यह घटना उस पश्चिम बंगाल से है,जहां इस समय तृणमुल कांग्रेस की मुखिया और जनता के प्रति कथित विशाल हृदय रखने वाली ममता दीदी की सरकार है। लेकिन, इस हृदय विदारक धटना से शायद ममता दीदी और उनके सिस्टम की दिल लगता है कि नहीं पसीज पाया।

जानकारी के मुताबिक, पश्चिम बंगाल के उत्तर दिनाजपुर ज़िले के अस्पताल में बच्चे की मौत के बाद उसे घर वापस लाने के लिए पिता के पास एंबुलेंस के किराये के लिए पैसे नहीं थे। दीदी की सरकार में इस बेबस पिता से एंबुलेंस वाला 8,000 रुपया मांग रहा था,जो एक दिहारी मज़दूरी करने वाले पिता के लिए भारी भरकम रक़म थी। लाचार पिता ने मजबूरी में अपने बच्चे के शव को अपने बैग में डाला,बैग को पैक किया और सिलीगुड़ी से कालियागंज के लिए बस पकड़ लिया। फिर उस बेबस पिता ने 200 किलोमीटर की यात्रा पूरी की। सूचना मिलते ही विपक्षी पार्टी बीजेपी ने घटना पर रोष जताते हुए ममता सरकार की कड़ी निंदा की है।

‘‘इगिये बांग्ला’ यानी उन्नत बंगाल मॉडल की दुर्भाग्यपूर्ण तस्वीर

कालियागंज प्रखंड के मुस्तफ़ानगर ग्राम पंचायत के डांगीपारा गांव निवासी असीम देवशर्मा की पत्नी ने दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया था। पांच महीने बाद, दोनों बच्चे बीमार पड़ गये। दोनों को बीते रविवार को कालियागंज राजकीय सामान्य अस्पताल में भर्ती करा दिया गया । वहां उनकी हालत बिगड़ने पर बच्चों को सिलीगुड़ी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में रेफ़र कर दिया गया। जहां मंगलवार को दोनों बच्चों को सिलीगुड़ी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में भर्ती कराया गया।

गुरुवार को एक बच्चे की हालत में सुधार होने पर उसे मेडिकल कॉलेज से छुट्टी दे दी गयी। गुरुवार को बच्चे की मां एक बच्चे को लेकर कलियागंज चली गई। उस दौरान पिता असीम देवशर्मा दूसरे बच्चे के साथ अस्पताल में ही रहे। वहीं, शनिवार की रात दूसरे बच्चे की मौत हो गयी। आसिम ने जब बच्चे को लाने के लिए एंबुलेंस किराये पर लेनी चाही, तो एंबुलेंस चालक ने आठ हज़ार रुपये की मांग कर डाली। दिहाड़ी मज़दूर असीम अपने बच्चे के इलाज पर 16 हजार ख़र्च कर चुका था। ऐसे में अब एक एंबुलेंस के लिए 8 हज़ार रुपये ख़र्च करना उनके लिए नामुमकिन था। कोई रास्ता न सूझने पर वह रविवार की सुबह पांच बजे बच्चे को बैग में भरकर मेडिकल कॉलेज से निकल गया। असीम अपने बच्चे के शव को बैग में डाला और सिलीगुड़ी से कालियागंज तक 200 किमी की यात्रा बस से पूरी की। उसने इस बात की भनक किसी अन्य यात्रियों को नहीं लगने दी, क्योंकि उन्हें डर था कि अगर किसी सहयात्रियों को पता चल गया, तो उसे बस से उतार दिया जायेगा।

बता दें कि पश्चिम बंगाल की टीएमसी सरकार प्रदेश में ‘स्वास्थ्य साथी’ बीमा योजना चला रही है,बावजूद इस तरह की घटना होना योजना पर सवाल ज़रूर खड़ी करता है। साथ ही इस घटना ने एक बार फिर से 2016 में ओडिशा के भवानीपटना में दाना माझी की घटना याद दिला दी है,जिसमें दाना मांझी अपनी पत्नी की लाश को अपने कंधे पर डाल पैदल घर के लिए निकल गया था।

भारतीय उपमहाद्वीप में पश्चिम बंगाल की सभ्यता और संस्कृति के साथ इतिहास भी समृद्ध रहे हैं। संगीत का क्षेत्र हो या फिर रंगमंच का या फिर समाज सुधार का क्षेत्र,बंगाल की धरती हमेशा से समृद्ध रही है। महान संत राम कृष्ण परम हंस, नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर,महान समाज सुधारक राजा राम मोहन राय, स्वामी विवेकानंद, विद्यासागर जैसे समाज सुधारकों का निवास स्थान पश्चिम बंगाल रहा है। ये सब राज्य के समृद्ध इतिहास की गवाही देते हैं। लेकिन, इस समय पंश्चिम बंगाल की ये घटना दुर्भाग्य से ही सही, पर ‘‘इगिये बांग्ला’ यानी उन्नत बंगला मॉडल की दुर्भाग्यपूर्ण तस्वीर पेश करती है।’’