Shri Mahakaleshwar Jyotirlinga Ujjain: मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर (Shri Mahakaleshwar Jyotirlinga Ujjain) 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मान्यता है कि दक्षिणामुखी मृत्युंजय भगवान श्री महाकालेश्वर मंदिर (Shri Mahakaleshwar Jyotirlinga Ujjain) के गर्भगृह में विराजमान होकर सृष्टि का संचार करते हैं। उज्जैन को अवंती, अवंतिका, उज्जयिनी, विशाला, नंदिनी, अमरावती, पद्मावती, प्रतिकल्पा, कुशस्थली जैसे नामों से भी जाना जाता है। यहां लाखों भक्त महादेव का दर्शन करने आते हैं। लेकिन, अब भर्तों को यहां पर शिव पुराण के बारे में जानकारी मिलेगी।
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क्या है इस कॉरिडोर में
महाकालेश्वर मंदिर (Shri Mahakaleshwar Jyotirlinga Ujjain) कॉरिडोर विकास परियोजना की शुरुआत हो चुकी है और इसका पहला चरण भी पूरा कर लिया गया है। इसके लिए 856 करोड़ रुपये की भारी-भरकम बजट पास किया गया है। ये कॉरिडोर सनातन धर्म की झलक प्रदान करता है, जहां 9 से 18 फीट की 76 बड़ी मूर्तियां और लगभग 110 छोटी मूर्तियां स्थापित की गई हैं। इसमें दो भव्य प्रवेश द्वार, बलुआ पत्थरों से बने जटिल नक्काशीदार 108 अलंकृत स्तंभों की एक आलीशान स्तम्भावली, फव्वारों और शिव पुराण की कहानियों को दर्शाने वाले 50 से अधिक भित्ति-चित्रों की एक श्रृंखला ‘महाकाल लोक’ की शोभा बढ़ाएंगे।
2 हेक्टेयर से 20 हेक्टेयर का हुआ महाकालेश्वर मंदिर परिसर
पहले महाकाल सिर्फ 2 हेक्टेयर का था, अब पूरा कॉरिडोर 20 हेक्टेयर का हो जाएगा। महाकाल कॉरिडोर में देवी-देवताओं की अद्भुत प्रतिमाएं हैं। भगवान शिव के ही 190 रूप हैं। यानी नजारा देवलोक जैसा है। इसके तहत पहले चरण में महाकाल पथ, रूद्र सागर का सौंदर्यीकरण, विश्राम धाम आदि काम पूरे किए जा चुके हैं।
चारों ओर भगवान शिव की नजर आएंगी कहानियां
महाकालेश्वर मंदिर में अब चारो ओर भगवान शिव की कहानियां नजर आएंगी। भगवान शिव और देवी पार्वती की अपने बच्चों यानी गणेश और कार्तिकेय के साथ वाली जीवंत मूर्तियां दिखेंगी तो शिव-पार्वती विवाह, त्रिपुरासुर वध, तांडव स्वरूप और सप्तऋषियों की मूर्तियां भी आपको ऐसी रहस्यमय दुनिया में ले जाएंगी जिसके बारे में आपने कभी कल्पना नहीं की होगी। रुद्रसागर झील को उसका पुराना रूप वापस मिल गया है, पवित्र शिप्रा नदी के पानी के साथ। श्रद्धालुओं के लिए तमाम आधुनिक सुविधाएं भी हैं। इसे आप भक्ति का पुनर्जागरण कह सकते हैं।
सिर्फ नाग पंचमी पर नागचंद्रेश्यर लिंग के होते हैं दर्शन
मंदिर परिसर की बात करें तो ये तीन मंजिला है। सबसे नीचे महाकालेश्वर, मध्य में ओंकारेश्वर और ऊपरी हिस्से में नागचंद्रेश्वर के लिंग स्थापित हैं। कहा जाता है कि, तीर्थयात्री केवल नाग पंचमी पर ही नागचंद्रेश्यर लिंग के दर्शन कर सकते हैं। इस मंदिर-परिसर में कोटि तीर्थ नाम का एख बहुत बड़ा कुंड भी है, जिसकी शैली सर्वतोभद्र बताई जाती है। हिंदू धर्म में इस कुंड और इसके पवित्र जल का बहुत महत्व माना जाता है। इस कुंड की सीढ़ियों से सटे मार्ग पर परमार काल के दौरान बनाए गए मंदिर की मूर्तिकला की भव्यता को दर्शाने वाले कई चित्र देखे जा सकते हैं। वहीं कुंड के पूर्व में एक बड़ा बरामदा है जिसमें गर्भगृह की ओर जाने वाला रास्ता व प्रवेश द्वार है। इसी बरामदे के उत्तरी भाग में एक कोठरी में है, जिसमें श्रीराम और देवी अवंतिका की पूजा की जाती है।
वैज्ञानिक शोध के लिए प्रसिद्ध थी ये नगरी
उज्जैन इसलिए भी खास है क्योंकि, यहां की काल गणना विश्व मानक बनी हुई है। यह नगर एक समय में वैज्ञानिक शोध के लिए भी प्रसिद्ध रहा। गणित और ज्योतिष शास्त्र के प्रकांड विद्वानों में वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त और भास्कराचार्य विभिन्न स्थानों से भारत भ्रमण करते हुए यहां आकर बस गए और उन्होंने दुनिया को बताया कि उज्जैन शून्य देशांतर (जीरो मेरीडियन) पर बसा है, जहां कर्क रेखा उसे काटती है। यही कारण है कि इसे पृथ्वी की नाभि माना जाता था और इसे ‘भारत का ग्रीनविच’ कहा जाता है।
महाकाल मंदिर पर मुगलों का आक्रमण
इतिहास के पन्नों पर जाएं तो उज्जैन में 1107 से 1728 ई. तक यवनों का शासन था। इनके शासनकाल में 4500 वर्षों की हिंदुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराओं-मान्यताओं को खंडित और नष्ट करने का प्रयास किया गया। 11वीं सताब्दी में गजनी के सेनापति ने मंदिर को नुकसान पहुंचाया। इसके बाद सन् 1234 में दिल्ली के शासक इल्तुतमिश ने महाकालेश्वर के प्राचीन भव्य मंदिर का विध्वंस कर दिया था। धार के राजा देपालदेव हमला रोकने निकले। वे उज्जैन पहुंचते, इससे पहले ही इल्तुतमिश ने मंदिर तोड़ दिया। इसके बाद देपालदेव ने मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया।
मराठा राजाओं ने मालवा पर आक्रमण कर 22 नवंबर 1728 में अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुनः लौटा। 1731 से 1809 तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही। मराठों के शासनकाल में उज्जैन में दो महत्वपूर्ण उठाए गए कदम इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हैं। पहली- महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को पुनः प्रतिष्ठित किया गया। दूसरा- शिप्रा नदी के तट पर सिंहस्थ पर्व कुंभ शुरू हुआ।
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महाकाल मंदिर की दुर्दशा देख राणोजी सिंधिया का खौल उठा खून
मंदिर का पुनर्निर्माण ग्वालियर के सिंधिया राजवंश के संस्थापक महाराजा राणोजी सिंधिया ने कराया था। बाद में उन्हीं की प्रेरणा पर यहां सिंहस्थ समागम की भी दोबारा शुरुआत कराई गई। मराठा साम्राज्य विस्तार के लिए निकले ग्वालियर-मालवा के तत्कालीन सूबेदार और सिंधिया राजवंश के संस्थापक राणोजी सिंधिया ने जब बंगाल विजय के रास्ते में उज्जैन में पड़ाव किया, तो महाकाल मंदिर की दुर्दशा देख उनका खून खौल गया। जिसके बाद उन्होंने अपने अधिकारियों और उज्जैन के कारोबारियों को आदेश दिया कि बंगाल विजय से लौटने तक महाकाल महाराज के लिए भव्य मंदिर बन जाना चाहिए। जब वो वापस उज्जैन पहुंचे तो नवनिर्मित मंदिर में उन्होंने महाकाल की पूजा अर्चना की। इसके बाद उन्होंने ही 500 साल से बंद सिंहस्थ आयोजन को भी दोबारा शुरू कराया।
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