एलन मस्क, “एलन मस्क” बन गए क्योंकि उनके पास संसाधन थे। यदि केवल बिलाल अहमद के पास भी संसाधन होते, तो उनका मानना है कि वे भी भारत के एलन मस्क बन सकते थे। जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के गणित के शिक्षक और स्व-सिखाए गए इनोवेटर ने 13 साल की कड़ी मेहनत के बाद गल विंग दरवाजों वाली सौर ऊर्जा से चलने वाली ई-कार बनाई है। अगर उन्हें वित्तीय सहायता मिलती, तो बिलाल का मानना है कि वह इस कामयाबी को कई साल पहले हासिल कर सकते थे और कौन जानता है, वो टेस्ला बॉस को कंपनी चलाने के लिए पैसे दे रहे होते!
बिलाल ने गौसिया कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, बैंगलोर से सिविल इंजीनियरिंग की है और एक निजी ट्यूशन सेंटर में कक्षा 11 और 12 के छात्रों को गणित पढ़ाते हैं। वह 2009 से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। उन्हें एक अख़बार में एक लेख पढ़ने के बाद कार चलाने के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करने का विचार आया, जिसमें 15-20 वर्षों में पेट्रोल और संकट का सामना कर रही दुनिया के बारे में बात की गई थी।
बिलाल कहते हैं, “मैंने हाइड्रोजन के साथ परियोजना शुरू की लेकिन बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा और साथ ही, हाइड्रोजन के साथ काम करना खतरनाक था। इसलिए, मैंने यह विचार छोड़ दिया।”
इसके बाद उन्होंने अपने निसान माइक्रा 1988 मॉडल वाहन को पेट्रोल इंजन के साथ सौर ऊर्जा से चलने वाली ई-कार में बदलने पर काम किया। इसमें गल विंग के दरवाजे लगे हैं जिनमें सोलर पैनल लगे हैं। सौर पैनल रिमोट से नियंत्रित होते हैं और सूर्य की बदलती दिशाओं के साथ अपनी दिशा बदल सकते हैं।
कार बनाने के लिए, बिलाल ने कम से कम सौर ऊर्जा के साथ भी अधिकतम बिजली उत्पन्न करने की उनकी क्षमता के कारण एक विशिष्ट प्रकार के सौर पैनल्स का उपयोग किया है। पैनल्स को भी कुशल होना चाहिए और लो सर्फ़ेस एरिया को (कम सतह के क्षेत्र) को घेरना चाहिए।
उन्होंने कार पर काम करना शुरू कर दिया और विभिन्न वीडियो देखकर इसे संशोधित किया और इसमें सुविधाओं को जोड़ना शुरू कर दिया।
वह बताते हैं,“कश्मीर में, ज्यादातर समय, मौसम उदास रहता है। मैंने सोलर पैनल का इस्तेमाल किया, जो कम धूप वाले दिनों में भी ज्यादा दक्षता दे सकता है। मैं सौर पैनलों की दक्षता की जांचने के लिए कई सौर कंपनियों के पास गया।”
कार पर सौर पैनल्स का उपयोग कैसे किया जा सकता है और यह लो सर्फ़ेस एरिया पर कितनी दक्षता दे सकता है, इस चुनौती को उन्होंने मोनोक्रिस्टलाइन सौर पैनल्स के उपयोग से दूर किया।
बिलाल बताते हैं, “एक कार की सतह का क्षेत्रफल घर की छत के सर्फ़ेस एरिया की तुलना में कम होता है। मुझे सौर पैनल मिले जो कम जगह लेते हैं लेकिन उच्च दक्षता (efficiency) देते हैं।”
इसके अलावा, सौर पैनल स्वचलित रूप से सूर्य की बदलती दिशाओं के साथ अपनी दिशा बदल सकते हैं। इसके लिए उन्होंने एक रिमोट कंट्रोल बनाया है जो 1.5 किलोमीटर के दायरे में काम करता है, जो पैनल की दिशा को नियंत्रित कर सकता है ताकि वे ज्यादा रोशनी ऑबज़र्व कर सकें।
साथ ही बिलाल ने कार की सीटिंग कैपेसिटी को भी बढ़ाया है। वो बताते हैं,“स्पोर्ट्स कार में केवल दो लोगों के बैठने की क्षमता है लेकिन यहां चार लोग आराम से बैठ सकते हैं। साथ ही ब्रेकिंग सिस्टम ऊर्जा, इसकी बैटरी को बचाने के लिए फिर से पावर जेनरेट करेगा। यह पर्यावरण के अनुकूल है और मुक्त ऊर्जा संसाधनों पर काम करता है। इसमें बाजार में क्रांति लाने की बहुत बड़ी क्षमता है।”
यह बताते हुए कि उनकी कार एक प्रोटोटाइप नहीं है, बिलाल कहते हैं, “यह एक स्वचलित और पूर्णरूप से सौर कार है, जिसमें सिस्टम ब्रेक फिर से उत्पन्न होते हैं। यह एक दोहरी प्रणाली है। हम बैटरी भी चार्ज कर सकते हैं। मैंने लेड एसिड बैटरी का इस्तेमाल किया है, जो 72 वोल्ट की पावर पैदा करती है और जो हाई स्पीड के साथ अच्छा माइलेज देती है। अगर मैं लिथियम बैटरी का उपयोग करता हूं, तो यह 100 किमी/प्रति घंटे की गति के साथ 200-300 किमी का माइलेज देगी।"
बिलाल के अनुसार, श्रीनगर में मौसम की स्थिति के कारण सौर पैनल 20-30 प्रतिशत कम दक्षता परफॉर्म करते हैं। वे कहते हैं कि "इसलिए मैंने मोनो क्रिस्टलीय सौर पैनल्स का उपयोग किया है, जो कम दृश्यता में भी काम करते हैं।"
उन्होंने सड़कों पर कार चलाई है और उन्हें राहगीरों से अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। उन्होंने आगे कहा कि कश्मीर के युवाओं में प्रतिभा अधिक है लेकिन उन्हें पेश करने के लिए एक्सपोज़र और मंच की कमी है। वह बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए जल्द ही अपनी कंपनी शुरू करना चाहते हैं, जिससे कश्मीर के युवाओं के लिए रोज़गार भी पैदा हो सके।
बिलाल ने कार बनाने पर 15 लाख रुपये से अधिक खर्च किए हैं और कहते हैं कि इसकी क़ीमत पेट्रोल और डीजल कारों के बराबर होगी। वह ई-कार को और अपग्रेड करने और सोलर पैनल को और आकर्षक बनाने के बारे में सोच रहे हैं।
उसका एकमात्र पछतावा? “मैं आर्थिक रूप से मज़बूत नहीं था। अगर किसी ने मेरी प्रोजेक्ट को आर्थिक रूप से समर्थन दिया होता, तो मैं अब तक भारत का एलन मस्क बन गया होता।"
(लेखकःडॉ शुजात अली क़ादरी, पत्रकार- मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑफ़ ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ इंडिया के चेयरमैन हैं)